गुरुवर तो कृपा की मूर्ति ही हैं यानी अंदर,बाहर,सर्वत्र कृपा ही कृपा है।यही उनका वास्तविक स्वरूप है।"कृपालु" का तो अर्थ ही है कृपा लुटाने वाला।कोई दुर्भावना या सदभावना जिससे भी उनके पास आए,वे सब पर कृपा ही करते है।ऐसा प्रतीत होता है की गुरुवर का तन मन सब कृपा का ही बना हुआ है।सोते जागते उठते बैठते उनका एक ही काम है जीवो पर कृपा करना ।बिना कृपा किए गुरुवर रह ही नहीं सकते। हम जिस दिन उन्हे सेंट परसेंट "कृपालु" मान लेंगे,बस हमारा काम बन जाएगा।
राधे-राधे।
राधे-राधे।
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