Thursday, September 29, 2011


सब झूठो जग व्यवहार रे |
जब लौं तन मन धन जन सब रह, पुछत सब संसार रे |
जब उन कहँ अभाव देखत तब, तजत सकल परिवार रे |
जब लौं काम बनत काहू सों, जोरत नात हजार रे |
जब ही काम बनत नहिं देखत, रहति न यारी यार रे |
...
ताते भजु ‘कृपालु’ मन छिन-छिन, नागर नंदकुमार रे ||

भावार्थ- अरे मन ! इस संसार का समस्त व्यवहार झूठा है | जब तक किसी के पास तन, मन, धन एवं सहायक जन रहते हैं तब तक उसे सब संसार पूछता है किन्तु जब इनका अभाव देखता है तब अपना परिवार भी उसे छोड़ देता है | जब तक किसी से स्वार्थ सिद्ध होता रहता है तब तक उससे हजारों नाते जोड़ता है किन्तु जैसे ही अपना काम बनते नहीं देखता वैसे ही वह मित्र भी अपनी मित्रता छोड़ देता है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अरे मन ! इसलिए तू संसार से किसी प्रकार की आशा न रखते हुए प्रतिक्षण श्यामसुन्दर का भजन कर |


(प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त-माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.

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