Saturday, June 25, 2016






Saturday, June 18, 2016

ये संसार सारहीन है इसमें इतना ही सार है कि मानव - शरीर पा कर हरि एवं गुरु से सच्चा प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो जाये।
........श्री महाराज जी।
कोई भगवान का अवतार, कोई महापुरुष ऐसा नहीं हुआ, कि जीव के अंदर बैठकर उसका कल्याण कर दें, सब जीव को स्वयं करना है I

-------श्री महाराजजी।

बलिहार युगल सरकार, हमरिहुँ ओर निहार।
तुम मात पिता भरतार, हम सेवक सदा तिहार।
तुम पतितन को रखवार, हम पतितन को सरदार।
तुम दीनबंधु सरकार, हम अहंकार अवतार।।

----- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

One should not forget God in times of happiness and should realise His grace even in times of misery.

सुख का अनुभव करते समय भी भगवान् को मत भूलो तथा दुःखकाल में भी उनकी कृपा का अनुभव करो।

........सुश्री श्रीधरी दीदी (जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका)।
Do not procrastinate in the matter of spiritual practise as the human body is transient.

मानव देह क्षणभंगुर है अतः उधार न करो।


----SHRI MAHARAJ JI.

Tuesday, June 7, 2016

जो सदा मुझसे युक्त हैं, और प्रेमपूर्वक मेरी आराधना करते हैं, उन्हें मैं वह मेधा (बुद्धियोग) प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझे पूर्ण रूप से प्राप्त करते हैं।

—भगवान् श्रीकृष्ण।
जय जय राम,जय जय राम,जय जय राम,जय जय राम।
आओ भरत शत्रुघन लछिमन राम,लाओ जनकनंदिनीहुँ सँग महँ राम।
जिओ जुग जुग चारिहुँ भइयन राम, जय जय जुग जुग जिये जोरी सीता राम।

------- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
हरि गुरु के प्रति अनन्य भक्ति हो और निष्काम हो। उनकी इच्छा में इच्छा रखना ,उनको सुख देना, तन मन धन से सेवा करना,अपना सर्वस्व मानना,निरंतर मानना,यही प्रेम है,शरणागति है। जिसने ये शर्तें पूरी कर दीं वो कृतार्थ हो गया। जिसने नहीं पूरी कीं वो चौरासी लाख योनियों में जैसे कोल्हू का बैल होता है ऐसे घूम रहा है बेचारा ।

..........जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाप्रभु।
शास्त्रीय सिद्धांतों को प्रवचन, साहित्य, टी. वी. के माध्यम से एवं प्रचारकों को शिक्षित करके देश-विदेश में भेजकर उनके द्वारा जनसाधारण तक पहुँचाकर, सम्पूर्ण विश्व का महान् उपकार करने वाले करुणावतार श्री कृपालु गुरुदेव के कोमल चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम...!!!

ब्रजधाम के एक साधु श्री का श्री महाराजजी के लिए उदगार...!!!
"कृपालु जी महाराज तो साक्षात् राधारानी हैं, वे तो अवढरदानी हैं। उन जैसा अवढरदानी, महान् दाता पृथ्वी पर दूसरा कोई नहीं हो सकता। उन्होंने तो सदा से लुटाया ही लुटाया है, लूटने वालों ने खूब लूटा और न लूटने वालों ने कुछ नहीं लूटा, वे चूक गये..... !"


यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

शीश दियो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।


जय श्री राधे।
ये मन दुश्मन है, इससे सदा सावधान रहो। मन को सदा हरि-गुरु के चिंतन में लगाये रहो तो मन शुद्ध होगा। भगवान कहते हैं सदा सर्वत्र मेरा स्मरण करते रहो ताकि मरते समय मेरा स्मरण हो और तुम्हें मेरा लोक मिले,मेरी सेवा मिले।

------ जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

मन एवं सांसारिक पदार्थ सजातीय होने के कारण एक दूसरे के सहयोगी हैं।

----श्री महाराजजी।
कुसंग से बचो ......!!!

भक्ति विरोधी हर ज्ञान , वस्तु , व्यक्ति कुसंग है। अपने गुरु , मार्ग , इष्ट को छोड़कर अन्य का संग कुसंग है।
......श्री महाराजजी।
तृष्णा की नदी गहरी है, शरीर रूपी नाव जीर्ण है, अतएव बिना कुशल नाविक सद्गुरु के तुम भवसागर से कैसे पार उतरोगे। सद्गुरु की शरण ही संसार -सागर से बचाने वाली है।

जय श्री राधे।
जितनी देर जिस गहराई से मन भगवदीय उपासना में तल्लीन रहेगा , वही भगवदीय उपासना नोट होगी। बाकि सब की सब माया की उपासना में नोट की जायेगी।
.......श्री महाराजजी।

"छोटी काशी, जयपुर (गुलाबी नगरी) ,राजस्थान" में त्रि-दिवसीय भक्तियोग साधना शिविर का आयोजन।
इस युग के परमाचार्य पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की असीम अनुकम्पा से उनकी प्रचारिका सुश्री श्रीधरी जी द्वारा 'जगद्गुरु कृपालु परिषत' की तीनों अध्यक्षाओं परमपूज्या सुश्री डॉ.विशाखा त्रिपाठी(बड़ी दीदी),सुश्री डॉ.श्यामा त्रिपाठी(मझली दीदी),सुश्री डॉ.कृष्णा त्रिपाठी(छोटी दीदी) के पावन सानिध्य में गुलाबी नगरी ,जयपुर में तीन दिवसीय भक्तियोग साधना शिविर का आयोजन।
दिनाँक: 1जुलाई से 3 जुलाई,2016.
नोट: इस साधना शिविर में रजिस्ट्रेशन हेतु कृपया 'sharadgupta40@yahoo.com' पर ई-मेल करें या अन्य जानकारी हेतु मेरे inbox में भी सम्पर्क कर सकते हैं। शिविर में भाग लेने हेतु रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। रजिस्ट्रेशन की अंतिम तिथि 15 जून 2016 है।

रक्षिष्यतीति विश्वास:- ये विश्वास रखो कि हरि-गुरु हमारी रक्षा करेंगे। हम चलें निर्भय होकर चलें ईश्वर की ओर ,वे योगक्षेम वहन करेंगे उनका कानून है। अकाट्य कानून है। करेंगे कि नहीं करेंगे,करेंगे कि नहीं करेंगे मुँह से पूछें या लिखकर पूछें। अरे लिखना पढ़ना पूछना कुछ नहीं है। वो कानून है वो तो करना ही पड़ेगा उनकी ड्यूटि है और रक्षा कर रहे हैं ये भी realize करना है।

--------सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका),जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

श्री महाराजजी के श्रीमुख से:
एक बात है बड़ी इंपोर्टेंट(IMPORTANT)। हरि- गुरु को अपने साथ ,सर्वत्र ,सर्वदा महसूस करो। इसका अभ्यास करो। दस दिन ,बीस दिन, महीने, छ: महीने में यह अभ्यास पक्का हो जायेगा कि हम अकेले नहीं हैं। हम जहां अपने को अकेला मानते हैं वहीं पाप कर बैठते हैं - प्राइवेट। अरे, वेद कहता है, अगर तुम गुरु को न भी मानो तो भगवान को तो मानो कि अंत:करण में वो नित्य हमारे साथ है, हमारे आइडिया नोट कर रहा है। तो हरि-गुरु को अपने साथ अपना रक्षक मानो। यह फीलिंग हो - हम अकेले नहीं हैं,सदा वे हमारे साथ है।गलत काम न करें ,गलत चिंतन न करें । सावधानी आयेगी तो अपराध से बचेंगे।