Monday, April 28, 2014

आवृत्ति रसकृदुपदेशात...................
बार-बार सुनो,बार-बार सुनो, तब तत्त्वज्ञान परिपक्व होगा। ये जो हम लोगों को भ्रम होता है कि यह तो मैंने बहुत सुना है, ये तो मैं जानता हूँ। यह बहुत बड़ी भूल है। बार-बार सुनो। इससे दो लाभ हैं। बार-बार सुनने से तत्त्वज्ञान परिपक्व होगा ही दूसरे जिस समय हम उपदेश सुनते हैं, उस समय हमारी चित्तवृत्ति जिस प्रकार की होती है, उसी प्रकार से हम उपदेश ग्रहण करते हैं। अगर उस समय हमारी श्रद्धा 50 प्रतिशत है तो 50 प्रतिशत लाभ होगा, 60 है तो 60, यदि श्रद्धा 80 प्रतिशत है तो 80 प्रतिशत लाभ होगा और श्रद्धा अगर सेंट-परसेंट(cent-percent) है तो उसी समय ही हमारा काम बन जायेगा।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

मानव देह की क्षणभंगुरता पर विचार करते हुए तुरंत वास्तविक महापुरुष द्वारा निर्दिष्ट साधना प्रारम्भ करो, संसारी कमाई पर नहीं, ईश्वरीय कमाई पर ध्यान दो। वो ही साथ जायेगी।
.......श्री महाराज जी।

Saturday, April 26, 2014

साधकों को सावधान करते हुये कहा गया है ; भगवान् एवं भगवज्जन के कार्य लीला मात्र हैं। लीला रसास्वादन हेतु होता है। बुद्धि का प्रयोग लीला में वर्जित है। भगवान् के सभी नाम , रूप , लीला , गुण , धाम व जन दिव्य हैं। यानी सांसारिक बुद्धि का प्रयोग करने से जीव भ्रम में पड़ जायगा। ' संशयात्मा विनश्यति ' रामावतार में सीता को खोजते हुये , अज्ञता का अभिनय करते हुये श्रीराम को देखकर सती को भ्रम हो गया। वे उन्हें साधारण राजकुमार समझ कर परीक्षा ले बैठीं। परिणाम स्वरूप भगवान् शिव ने उसका परित्याग कर दिया। पुनः पार्वती के रूप में भगवान् शिव के मुख से श्रद्धा पूर्वक रामचरित्र सुना। सती द्वारा संशय किये जाने से संसार को रामचरित्र प्राप्त हुआ। सती ने स्वयं शंका कर संसार को यह दिखाया कि भगवत्लीला में संशय नहीं करना चाहिये।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
Whether it is material know-how or spiritual knowledge, it is essential to trust the instructor in order to learn. Even in school, the student who doubts the teacher cannot progress on the path of education. The instruction given by the teacher must be accepted. So it is with the divine instructor. His answers have to be trusted; his judgment has to be accepted.
------JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

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तू तो कृपा- रूप साकार ....................... बलिहार - बलिहार !
तू तो रसिकन को सरदार ..................... बलिहार - बलिहार !
जय हो, जय हो सद्गुरु सरकार ............. बलिहार - बलिहार !!

Friday, April 25, 2014

When you start practicing 'remembrance' and 'chanting meditation' according to the instructions of Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj,your heart begins to open up and surge of divine love energy permeates your whole being,bringing contentment,confidence and security in your life.
RADHEY-RADHEY.

जिस प्रकार जल जाने के पश्चात् भी रस्सी अपने रस्सी रूप में ही संसार में दिखाई देती है। इसी प्रकार से संसार को हरि हरिजन के शुभ व् अशुभ कर्म ही दिखाई देते हैं उनका निर्विकार स्वरूप नहीं दीखता। उसे तो कोई महापुरुष ही देख सकता है। साधक को सदैव यह विचार करना चाहिये कि मायाबद्ध अवस्था में निरंतर अपनी मन - बुद्धि का योग हरि गुरु की बुद्धि से करने में ही कल्याण है।
............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

संसार में न सुख है न दुख है,हमारी मान्यता से ही सुख या दुख मिलता है।
-----श्री महाराज जी।

Avoid spiritual discussions with an unqualified person. In his present state, he cannot comprehend those incomprehensible subjects as he is devoid of spiritual experience. He will only transgress, losing whatever little faith he has. In addition, his faithlessness will disturb the mind of the person revealing those divine secrets.
-------SHRI MAHARAJ JI.

प्रश्न -भगवान् की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?
उत्तर - यह तो समस्त शास्त्र -वेदों का सिद्धान्त है कि भगवान् श्रीकृष्ण की प्राप्ति केवल भक्ति से ही हो सकती है ।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Thursday, April 24, 2014

कृपा करु बरसाने वारी,तेरी कृपा का भरोसा भारी।
कोउ हो या न हो अधिकारी, सब पर कृपा करें प्यारी।।
----श्री महाराज जी।

अपनी भावना के अनुसार ही हम भगवान और संत को देखते हैं और उसी भावना के अनुसार फल मिलता है। एक भगवतप्राप्ति कर लेता है और एक नामापराध कमा के लौट आता है। और पाप कमा लेता है भगवान के पास जाकर, संत के पास जाकर 'ये तो ऐसा लगता है, मेरा ख्याल है कि'.......ये अपना ख्याल लगाता है वहाँ। अरे पहले दो-दो पैसे के स्वार्थ साधने वाले, झूठ बोलने वाले, अपने माँ, बाप ,बीबी को तो समझ नहीं सके तुम और संत और भगवान को समझने..... जा रहे हो। कहाँ जा रहे हो। हैसियत क्या है तुम्हारी, बुद्धि तो मायिक है। एक ए,बी,सी,डी.......पढ़ने वाला बच्चा प्रोफेसर की परीक्षा ले रहा है कि में देखूंगा प्रोफेसर कितना काबिल है। अरे क्या देखेगा तू तो ए,बी,सी........भी नहीं जानता। अपनी नॉलेज को पहले देख। अपनी योग्यता को पहले देख। तो इसलिए जिसकी जैसी भावना होती है वैसा ही फल अवतार काल में भी मिलता है अधिक नहीं मिलता।
--------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

Wednesday, April 23, 2014

संसार के लोगों को एक बहुत बड़ी भ्रान्ति है। वो यह कि लोग हमारे अनुकूल हैं, हमसे प्रेम करते हैं। लेकिन मैं चैलेंज के साथ कह सकता हूँ की विश्व की एक भी स्त्री अपने पति के सुख के लिए उससे प्यार नहीं कर सकती। विश्व का कोई भी पति अपनी स्त्री के लिए प्यार नहीं कर सकता। भावार्थ यह की जब स्त्री पति ही एक दूसरे के लिए प्यार नहीं करते तो और लोग क्या करेंगे। सब एक दूसरे को धोखा दे रहे हैं,और ये नहीं समझते कि जैसे हम इसको धोखे में रखे हैं,ऐसे ही सामने वाला भी हमसे धोखा कर रहा है।
आप लोग कहेंगे की हमारी स्त्री तो हमसे बड़ा प्यार करती है। बस यही तो धोखा है आप लोगों को,जब तक जीव अपना वास्तविक आनंद प्राप्त न कर लेगा, यह असंभव है कि कोई किसी के सुख के लिए लिए कुछ करे।अरे करना तो दूर सोच तक नहीं सकता,संसार का सब प्यार स्वार्थ आधारित है। स्वार्थ कम,प्यार कम,स्वार्थ अधिक प्यार अधिक,और स्वार्थ हानि ज्यादा हो तो गोली मार देता है बेटा माँ को,स्त्री पति को........!

.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु के श्रीमुख से:
क्रोध आया कि सर्वनाश हुआ। बदतमीज़ कहने पर 'बदतमीज़' बन गए। आप इतने मूर्ख हैं कि एक मूर्ख ने 'मूर्ख' कह कर आपको मूर्ख बना दिया।

अनंत जन्मों तक माथा पच्ची करने के पश्चात भी जो दिव्य ज्ञान हमें न मिलता वह हमारे गुरु(जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज) ने इतने सरल और सहज रूप में हमें प्रदान कर दिया, अब इसके बाद हमारी ड्यूटि है कि उस तत्त्वज्ञान को बार-बार चिंतन द्वारा पक्का करके उसके अनुसार प्रैक्टिकल करें। अब हमने यहाँ लापरवाही की, एक ने कुछ परवाह की, एक ने और परवाह की, एक ने पूर्ण परवाह की, पूर्ण शरणागत हो गया, अब महापुरुष ने तो अकारण कृपा सबके ऊपर की, सबको समझाया। लेकिन उसमें एक घोर संसारी ही रहा, एक थोड़ा बहुत आगे बढ़ा, एक कुछ ज्यादा आगे बढ़ा, एक सब कुछ त्याग करके 24 घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति पर। पर जो 24 घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति हेतु क्या उसके ऊपर विशेष कृपा हुई, यह सोचना मूर्खता है। कृपा तो सब पर बराबर हुई लेकिन तपे लोहे पर पानी पड़ा छन्न, जल गया और कमल के पत्ते पर पड़ा तो मोती की तरह चमकने लगा और वही पानी अगर सीप में पड़ा स्वाति का तो मोती बन गया। पानी तो सब पर बराबर पड़ रहा है लेकिन जैसा पात्र है, जैसा मूल्य समझा जितना विश्वास किया जितना वैराग्य है जिसको उसका बर्तन उतना बना, उसके हिसाब से उसने उतना लाभ उठाया। तो महापुरुष की यह कृपा है तत्त्वज्ञान करवा देना। क्योंकि बिना तत्त्वज्ञान के हम साधना भी क्या करते, भगवदप्राप्ति का तो प्रश्न ही नहीं है। तर्क, कुतर्क, संशय ही करते रहते, इसी में पूरा जीवन बीत जाता, मानव देह व्यर्थ हो जाता। साधना करते भी तो अपने अल्पज्ञान या गलत ज्ञान के अनुसार ही करते जिससे कोई लाभ नहीं होता।
.......जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु।

Tuesday, April 22, 2014

When we learn to surrender to the will of God, and accept ourselves as His servants, life becomes a festival and a continuous celebration.
........SHRI MAHARAJJI.

चाहूँ भी तो तुझसे अब खफा नहीं हुआ जाता.......!
जिन्दगी थोड़ी सी है और तेरे संग जीना है बहुत..........!!
राधे-राधे।

कुछ समय का नियम बनाकर प्रतिदिन श्यामसुंदर का स्मरण करते हुए रोकर उनके नाम-लीला-गुण आदि का संकीर्तन एवं स्मरण करो एवं शेष समय में संसार का आवश्यक कार्य करते हुए बार-बार यह महसूस करो कि श्यामसुंदर हमारे प्रत्येक कार्य को देख रहें हैं, और उन्हें आप दिखा-दिखा कर कार्य कर रहे हैं। इस प्रकार कर्म भी न्यायपूर्ण होगा एवं थकावट भी न होगी। एक बार करके देखिये।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

मानवदेह देव दुर्लभ है। अत: अमूल्य है। इसी देह में साधना हो सकती है। अत: उधार नहीं करना है। तत्काल साधना में जुट जाना है। निराशा को पास नहीं फटकने देना है। मन को सद्गुरु एवं शास्त्रों के आदेशानुसार ही चलाना है। अभ्यास एवं वैराग्य ही एकमात्र उपाय है। सदा यही विश्वास बढ़ाना है कि वे अवश्य मिलेंगे। उनकी सेवा अवश्य मिलेंगी।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

मैं सदा तुम लोगों के साथ रहता हूँ, तथा एक-एक क्षण का आइडिया नोट करता हूँ।
.........'कृपालु'।

Monday, April 21, 2014

You can never repay your Guru for what he has given you, because material treasures cannot pay for spiritual goods, yet the scriptures state emphatically that you must serve your Guru with body, mind and wealth. Your Guru is not stingy with the spiritual gifts he showers upon you, nor does He ever tire of giving you grace. Why do you think that you have served Him enough?
Be greedy in serving the Guru. The best disciple is he who renders service without the Guru asking for it.
........JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHAPRABHU.

मन कि निर्मलता कि कसौटी है – भगवत विषय में मन का लगाव. यह कसौटी श्रेष्ठ हैं . इश्वरीय तत्व को पाने के लिये हमारे मन मे कितनी छ्टपटाहट है, यहि मन की निर्मलता कि सबसे बडी कसौटी है।
........ श्री महाराज जी।

माया का लड़का 'मन'; तुम भगवान के लड़के 'जीव' और ये जड़ माया का लड़का तुमको नचा रहा है और तुम अपने आपको बुद्धिमान कहते हो।
-----जगद्गुरू श्री कृपालु जी महाराज।
It is only through the Grace of God that one can be eternally free from all mental afflictions.
.....SHRI MAHARAJJI.

सबसे बड़ा उपकार यही है कि कोई जीव किसी अन्य जीव को भगवान की तरफ,गुरु की तरफ मोड़ दे,अर्थात उसे अपने गुरु की बाते बताये।उनसे मिलाये।
.......श्री महाराज जी।

Sunday, April 20, 2014

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के श्रीमुख से नि:सृत अमृत वचन.....................
श्री महाराजजी बताते हैं की "श्यामा-श्याम" के लिए एक आँसू बहाने से वे हजार आँसू बहाते हैं। काश! की मेरी इस वाणी पर आप विश्वास कर लेते तो आँसू बहाते न थकते। अरे उसमें हमारा खर्च क्या होता है। उसमें क्या कुछ अकल लगाना है। क्या उसके लिए कोई साधना करनी है? क्या इसमें कोई मेहनत है। क्या यह कोई जप है? तप है? आँसू उनको इतने प्रिय हैं और तुम्हारे पास फ्री हैं। क्यों नहीं फ़िर उनके लिए बहाते हो? निर्भय होकर उनसे कहो कि तुम हमारे होकर भी हमें अबतक क्यों नहीं मिले। तुम बड़े कृपण हो, बड़े निष्ठुर हो, तुमको जरा भी दया नहीं आती क्या? हमारे होकर भी हमें नहीं मिलते हो। इस अधिकार से आँसू बहाओ। हम पतित हैं, अपराधी हैं, तो क्या हुआ। तुम तो 'पतित पावन' हो। फ़िर अभी तक क्यों नहीं मिले? अगर इतने बड़े अधिकार से मन से प्रार्थना करोगे, आँसू बहाओगे, तो वो तुम्हारे एक आँसू पर स्वयं हजार आँसू बहाते हैं।

Meeting a Nitya Siddha Rasik Saint in Human Birth, tasting the nectar of Divine Name, learning Hari-Guru Bhakti and getting Guru Seva...This is the best human life I would have ever imagined and Kripalu's causeless mercy has exceeded the limit..............!!!!!
RADHEY-RADHEY.

When we learn to surrender to the will of God, and accept ourselves as His servants, life becomes a festival and a continuous celebration.
........SHRI MAHARAJJI.

सोचो! साथ क्या जायेगा।
.....श्री महाराज जी।

Discipline is very important in life to progress in the world as well as spiritually. Make it a discipline to do Sadhana (Devotion) on a regular basis as part of your daily routine. Do not procrastinate, you cannot get your life back and the time that is lost. Build your spiritual treasure.

Once we understand that it is in our self-interest to get happiness by seeking God and not the world, we will be able to remove the expectation of happiness from the world and focus on our devotional practice to reach Shree Krishna.
--------- SHRI MAHARAJJI.

प्यारी बनि गयी कुंजबिहारी......कुंजबिहारी बनि गये प्यारी।
......श्री महाराजजी।

कालि से भजूँगा जनि गोविंद राधे ।
कहु जाने काल कब टिकट कटा दे ॥

''अरे मनुष्यों ! कल से भजूँगा, कल से भजूँगा मत कहो, मत सोचो । क्यों...? अरे वह जो तुम्हारी खोपड़ी पर सवार है काल, यमराज । क्या पता कल के पहले ही टिकट कट जाये रात ही को ।" ऐसे रोज उदाहरण हमारे विश्व मे हो रहे हैं, कि रात को एक आदमी सोया और सदा को सो गया । न दर्द हुआ, न चिल्लाया, न घर वालों को मालूम हुआ। घर वाले समझ रहे हैं सो रहा है,
आज बड़ी देर तक सोता रहा, अरे भई जगा दो । जगाने गये तो मालूम हुआ सदा को सो गया, इसका टिकट कट गया ।
इसलिये कल से भजूँगा यह मत कहो, मत सोचो, तुरंत करो उधार मत करो । उधार करने की आदत हमारी तमाम जन्मों से है और इसलिये हम अनादिकाल से अब तक चौरासी लाख में घूम रहें है एक कारण |अन्नत संत मिले समझाया हम समझे लेकिन उधार कर दिया । करेंगे... करेंगे । तन मन धन ये तीन का उपयोग करना था तीनों के लिये हमने उधार कर दिया । करेंगे, बुढ़ापे में कर लेंगे अभी इतनी जल्दी भी क्या है । मन तो और बिगड़ा हुआ है । धन से तो इतना प्यार है कि कोई भी परमार्थ काम में खर्च करने में भी बुद्धि लगाते हैं - ''करें, कि न करें? कर दो भगवान के निमित । अरे रहने दो... अरे नहीं कर दो, अरे नहीं क्यों निकालो जेब से, अरे चलो अब कर ही देते हैं । नहीं अब कल करेंगे,'' ये हम लोगों का हाल है सोचियेगा अकेले में । यही सब होता है । तो उधार करना बन्द करना है ।

--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

कुसंग के गलत वातावरण में रहते हुए भी जो सत्संग में निरंतर बढ़ता जाये,वही असली साधक है।
...........श्री महाराज जी।

संसार सम्बन्धी तन-मन-धन कम से कम 'उपयोग' करो, 'उपभोग' नहीं | जितने में काम चल जाये बस उतना, उससे अधिक नहीं । जितने में पेट भर जाये- दो रोटी, चार रोटी से, बस तुम उतने के हकदार हो हमारी सृष्टि से । भगवान कह रहे हैं | इससे अधिक इकट्ठा किया,कब्जा किया तो मरो, फिर हम बतायेंगे कि क्या होगा तुम्हारा । 'सस्तेनो दण्डमहरति' उसको दण्ड मिलेगा मरने के बाद और सामान भी यहीं रखा जायेगा । तो उसने कमा करके बेटे को दे दिया पचास करोड़, अब बेटा आवारा होगा, और बाप को भी नरक मिलेगा। तुमने परमार्थ कितना किया ? अपने शरीर पर कितना खर्च किया, बाल बच्चों पर कितना किया परमार्थ में कितना किया ? हिसाब बताओ ।
------जगद्गुरू श्री कृपालु जी महाराज।

"तू प्रेम रूप रस सार। तेरा अंधाधुंध दरबार।।
तू तो करुणा की अवतार। तू है कृपा रूप साकार।।"

भगवान तुमकों नहीं भूलते। वो तुम्हारे हृदय में बैठे हैं, सदा सर्वत्र। वो तुम्हारा साथ नहीं छोड़ते कभी भी। तुम ही भूले हुए हो अपने वास्तविक संबंधी को। भगवान कहते हैं:- बस मेरा स्मरण करो, और कुछ न करो। मैं सबकुछ करूँगा तुम्हारा। तुम खाली स्मरण करो, बाकी सब काम में करूँगा, और सदा के लिए अपना बना लूँगा।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

भक्त उसे कहते हैं जो हर पल हरि-गुरु को याद करता है, और हरि-गुरु भी हर पल उसे याद करते हैं।
-----श्री महाराज जी।

बड़ी सीधी सी बात है...भगवान को जानना होगा, पाना होगा... और कोई गति नहीं और कोई दूसरा मार्ग ही नहीं है ।
.......श्री महाराज जी।

Love does not develop in a heart, which is impure. The heart has to be purified by sadhana. The best sadhana is weeping in separation. The tears that flow in remembrance of Radha and Krishna wash away all sins and offences (aparadhas), and the fire of separation that burns in the heart consumes the wild growth of all sorts of worldly desires.
.......SHRI MAHARAJ JI.

Saturday, April 19, 2014

Devotion must be practiced under the guidance of a GURU. Guru must possess THEORETICAL KNOWLEDGE OF SCRIPTURES and PRACTICAL EXPERIENCE OF GOD. One must look for the following in a Guru:
He must clearly answer the questions you have about God and the path leading to God.
He must remove all the doubts you have regarding God.
The Sadhana prescribed by him must bring about internal changes.
Guru is Divinity in human form. One must trust the Guru to lead him to God.

बिना हरि के भक्ति सम्भव है किन्तु बिना गुरु कृपा के भक्ति तत्व को नहीं जाना जा सकता है। अतएव भक्ति में गुरु तत्व ही प्रधान है।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

जो मेरी ही शरण में आ जाता है उसके अनन्त जन्म के पाप को नाश कर देता हूँ ! तो फिर पाप पाप की बात क्यों खोपड़ी में लगी है तेरे ? मैं पूर्ण शरणागत के थोड़े से पापों को नहीं , 'सर्वपापेभ्यो ' समस्त पापों को नष्ट कर देता हूँ और आगे पाप न करेगा ये ठेका ले लेता हूँ ! गारण्टी ! लेकिन प्रपन्न होना होगा ! प्रपन्न माने पूर्ण शरणागति यानी मन बुद्धि भी शरणागत हो ! अपनी बुद्धि न लगा ! मन भी मुझे दे दे !
.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

All the knowledge in the world, right from the worldly to the Vedic, attempt to answer these two questions, "What do we want and how do we attain it?" How surprising it is that in countless lives, we have not been able to answer them.
.......SHRI KRIPALU MAHAPRABHU JI.

अपने पूरे हृदय के साथ अपने को भगवान् के हाथों में समर्पित कर दो, तुरंत के पैदा हुए बच्चे जैसे बन जाओ, यही आत्म समर्पण है।
Put yourself with all your heart and strength into the hands of God.This is Self Surrender.

-------JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.

मन को बाँधों। मन के दास न बनो। कुसंग से सदा बचो तथा मन को सदा अपने गुरु में ही लगाये रहो।
मन के हारे हार है , मन के जीते जीत।

~~~~ श्री महाराज जी।

शास्त्र गुरु वचनों में गोविंद राधे।
पूर्ण विश्वास ही है श्रद्धा बता दे।।
शास्त्र-वेद और गुरु के वचन पर पूर्ण विश्वास- इसका नाम श्रद्धा है। श्रद्धा माने- दृढ़ विश्वास।
जैसे physical विषय में मरीज़ कुछ नहीं जानता,वह डॉ. पर सेंट-परसेंट विश्वास,श्रद्धा करता है, ऐसे ही spiritual side में हम कुछ नहीं जानते इसलिए spiritual man रूपी doctor की बात सेंट-परसेंट मानना ही होगा। ये श्रद्धा है।

-------श्री कृपालु जी महाप्रभु।

श्री महाराज जी द्वारा-------एक बार ऐसा कर के तो देखो .........
श्री राधाकृष्ण ही तुम्हारे सर्वस्व हैं। उन्हें बिलकुल ही अपना समझो। यह न सोचो कि वे तो पराप्त सर्वशक्तिमान भगवान् आदि हैं।
वे सदा अपने दोनों हाथों को पसारे हुये तुम्हारे लिये खड़े हैं। केवल तुम एक बार समस्त सांसारिक विषयों से मुँह मोड़ कर उनकी ओर निहार दो। बस, फिर वे तुम्हारे एवं तुम उनके हो जाओगे। वे तो अकारणकरुण हैं, कुछ साधना आदि की भी अपेक्षा नहीं रखते। उनका तो स्वभाव ही है अकारण कृपा करने का। तुम विश्वास कर लो, बस,काम बन जाय। तुम अपने आप को सदा के लिये उनके हाथों बेच दो, वे , सब ठीक कर लेंगे। देखो उन्होंने महान से महान पापियों को भी हृदय से लगाया है , फिर तुम्हें क्यों अविश्वास या संकोच है। एक बार ऐसा करके तो देखो।

..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु ।

भगवान् योग माया के पर्दे में रहते हैं और जीव माया के पर्दे में , अतः भगवान् के साकार रूप में सामने खड़े होने पर हम उन्हें अपनी भावना के अनुसार ही देख पाते हैं।
.......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Thursday, April 17, 2014

श्री महाराज जी अपने सम्पूर्ण साहित्य एवं प्रवचन द्वारा पुनः पुनः यही सिद्धान्त जीवों के मस्तिष्क में भर रहे हैं। उनके मतानुसार ब्रहम जीव माया तीन तत्व सनातन हैं , किन्तु जीव एवं माया दोनों ही ब्रहम की शक्ति हैं। ब्रहम श्री राधाकृष्ण का दिव्य प्रेम प्राप्त करना साध्य एवं उनकी ही निष्काम भक्ति करना ही साधना है।

प्रेम को परखना तो बड़ी मेहनत का काम है, लेकिन फिर भी असंभव नहीं अगर कोई स्वार्थ रहित हो जाये तो। जब कि असंभव है वह भी। लेकिन ईश्वरीय प्यार में तो अकल लगाने की जरूरत ही नहीं है कि उनका हमसे कितना प्यार है। जितनी मात्रा में हमारा है उतनी मात्रा में उनको हमसे है यह सिद्ध है।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

We put in a lot of time and energy in pursuing prosperity, fame, prestige, family etc. If we devoted even a fraction of that time in pursuing God, we would attain Him.
........SHRI MAHARAJJI.

मैं सीधा-सादा मिज़ाज था.....मुझे मोहब्बत की क्या ख़बर.......!
तेरे इक 'तबस्सुम-ए-शोख़' ने मेरे दिल को बदल दिया........!!
राधे-राधे।

हौं ऐसों हौं पतित जो पतित न आपुहिं मान ।
ऐसे पतित विचित्र को पावन करू तब जान ॥

हे ! करुणा सागर, दीनबंधु, पतितपावन, तुम्हारी कृपा के बिना कोई तुम्हारी सेवा भी तो नहीं कर सकता । हमारी गति, मति, रति सर्वस्व तुम्ही हो । अकिंचन के धन, निर्बल के बल, अशरण-शरण, कहाँ से लाएँ तुम्हें प्रसन्न करने के लिए सतत रुदन और करुण क्रंदन । अनंत जन्मो का विषयानंदी मन संसार के लिए आँसू बहाना चाहता है, श्याम मिलन के लिए नहीं । अकारण-करुण कुछ ऐसी कृपा कर दो की मन निरन्तर युगल चरणों का स्मरण करते हुए ब्रजरस धन का लोभी बन जाये । रोम रोम प्रियतम के दर्शन के लिए, स्पर्श के लिए, मधुर मिलन के लिए, इतना व्याकुल हो जाए की आंसुओं की झड़ी लग जाए ओर हम आँसुओ की माला पहनकर तुम्हें प्रसन्न कर सकें पश्चात निशिदिन श्यामा श्याम मिलन हित आँसू बहाते रहें । अपने अकारण करुण विरद की रक्षा करते हुए हे ! कृपालु, हे ! दयालु, हमारा सर्वस्व बरबस लेकर ब्रजरस प्रदान करो । किसी भी प्रकार यह स्वप्न साकार करो की हम तुम्हारे वास्तविक गौर-श्याम मिलित स्वरूप को हृदय मे सदा सदा के लिए धारण करके प्रेम रस सागर मे निमग्न हो अश्रु पूरित नेत्रों से तुम्हारी विरुदावली का अनंत काल तक गान करते रहें ।
-------जगद्गुरुत्तम भक्तियोगरसावतार कृपालु महाप्रभु ।

यह मन अनादि काल से माया के आधीन है। अतः अत्यंत मलिन हो गया है। अतः श्याम प्रेम के अश्रुजल से धोकर इसे निर्मल बना दो।
------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु।

हे श्यामसुन्दर !
तुम अनादिकाल से मेरे थे, और अनंतकाल तक मेरे बने रहोगे, यह वेदों में तुम्हीं ने स्वयं कहा है। फिर अधम उधारन श्री कृष्ण। मुझे क्यों भुला दिया ?

---श्री महाराज जी।

It is God's promise that He will accept and love the individual soul in the same manner that the individual soul loves Him.
..........SHRI MAHARAJJI.