Friday, March 20, 2015

Remember the entire world is false and perishable, your body of dust must one day return to dust. Only the words given by your master will go with you as your everlasting companion.
........SHRI MAHARAJJI.
तू मन ! मन मानी त्याग रे।
...श्री महाराजजी।
"वे हमारी रक्षा करते हैं, वे हमारी रक्षा कर रहें हैं, वे आगे भी हमारी रक्षा करेंगे इस पर विश्वास कर लो।
----श्री महाराजजी।"
Only 'Radha Krishn' are my everything, this feeling has to be strengthened in the mind.
--------SHRI MAHARAJJI.

In Life we will face difficulties and obstacles. However, we should not let them overpower our mind. We have to use the shield of spiritual knowledge and apply it to protect us from getting carried away by the waves of Maya. We should keep in mind the ultimate goal of our life all the time and keep our focus on Hari and Guru. It is very important to protect the Bhakti that we have done otherwise we will end up losing more than accumulating our spiritual wealth. Be extremely cautious and use spiritual knowledge practically as your shield to protect your spiritual wealth. Do not let the waves of Maya wash away your Bhakti. Be very cautious in the beginning to protect the seed of devotion until it grows up into a strong tree which cannot be affected.
..........SHRI MAHARAJJI.
इष्टदेव एवं गुरु को सदा सर्वत्र अपने साथ निरीक्षक एवं संरक्षक के रूप में मानना है। कभी भी स्वयं को अकेला नहीं मानना है। मोक्षपर्यंत की कामना एवं अपने सुख की कामना का पूर्ण त्याग करना है।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

Tuesday, March 17, 2015

सद्गुरु के पास किसी को इंकार नहीं है। जो डूबने को राजी है सद्गुरु उसे लेने को तैयार है। वह शर्ते नहीं रखता। वह पात्रताओं के जाल खडे नहीं करता। अपात्र को पात्र बना ले, वही तो सद्गुरु है। अयोग्य को योग्य बना ले वही तो सद्गुरु है। संसारी को सन्यासी बना ले, वही तो सद्गुरु है।
"गुरु: कृपालुर्मम शरणम, वंदेsहं सद्गुरु चरणम।"
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु के दिव्य चरणों में कोटि-कोटि नमन.....!!!
मानवदेह का सर्वाधिक महत्व सोचकर एक-एक क्षण मूल्यवान मानो, एवं अनावश्यक समय का अपव्यय ना करो।
-------श्री महाराज जी।
एक बात याद रखो बस, अन्तःकरण का सम्बन्ध भगवान से और गुरु से हो। केवल सिर को पैर पर रख देने से काम नहीं बनेगा,आरती कर लेने से काम नहीं बनेगा,दक्षिणा दे देने से काम नहीं बनेगा। ये सब हेल्पर है। तुम्हारे पास जो कुछ है दो,सब ठीक है। सर्व समर्पण करना है गुरु को ,भगवान को, लेकिन इतने मात्र से काम नही बनेगा। 'अनुराग' सबसे प्रमुख है ,अन्तःकरण से प्यार।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Friday, March 13, 2015

वास्तविक महापुरुष के सान्निध्य में संसार से सहज वैराग्य एवं भगवान में सहज अनुराग बढ्ने लगता है। तत्वज्ञान परिपक्व होने लगता है। जीव अवश्य महसूस करने लगता है कि वो कल्पना भी नहीं कर सकता था की भगवदविषय में कभी इतना मन लगने लगेगा, इतना समय वो दे पाएगा।

जैसे कोई अन्धा किसी दूसरे अन्धे से कहे तू नेत्रवान है मुझे घर पहुँचा दे , उसी प्रकार संसार में किसी भी प्राणी के पास सुख नहीं है किन्तु परस्पर सभी एक दुसरे से सुख की आशा लगाये हैं।
.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

"Dear Devotees,
Practice, Practice and Practice!
Withdraw your mind from the world and engage it in God. Make it your spiritual practice to do so again and again . . ."
........SHRI MAHARAJ JI.
यह समझे रहना है की हमारे प्रेमास्पद श्री कृष्ण सर्वत्र है एवं सर्वदा है।विश्व में एक परमाणु भी ऐसा नहीं है, जहाँ उसका निवास न हो।जैसे तिल में तेल व्याप्त होता है ऐसे ही भगवान भी सर्वव्यापक है।उनको कोई भी स्थान या काल अपवित्र नहीं कर सकता।वरन वे ही अपवित्र को पवित्र कर देते है।
-----------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
यदि तन , मन , धन हरि गुरु को समर्पित नहीं किया गया तो संसार अवश्य ही इन्हें लूट लेगा ।
----श्री महाराज जी।
हरि-गुरु में अनन्त सामर्थ्य है, पर हमारा साथ छोड़ने की उनमे सामर्थ्य ही नहीं है। इस विषय में वे बेचारे लाचार हैं।
.....श्री महाराजजी।
ये मन दुश्मन हैं, इससे सदा सावधान रहो। मन को सदा हरि गुरु के चिंतन में लगाये रहो तो मन शुद्ध होगा। भगवान् कहते हैं सदा सर्वत्र मेरा स्मरण करते रहो ताकि मरते समय मेरा स्मरण हो और तुम्हें मेरा लोक मिले , मेरी सेवा मिले।
*******जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु********

श्री राधे हमारी सरकार, फ़िकिर मोहिं काहे की ।
हित अधम उधारन देह धरेँ, बिनु कारन दीनन नेह करेँ ;
जब ऐसी दया दरबार , फ़िकिर मोहिं काहे की ।
...........श्री महाराज जी।
If you want to make God laugh, tell him your future plans.

Wednesday, March 11, 2015

गहो रे मन! शयाम चरण शरणाई।
Gaho re man ! Shyam charan sharnaaee.


O my mind! Take shelter at the lotus feet of Shyam Sundar.

......SHRI MAHARAJ JI.

जब दीनता आयेगी तब आँसुओं के ढेर लगेंगे। प्रत्येक व्यक्ति तुमको अपने से ऊँची स्टेज का साधक लगेगा।
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज !!
संत संग सत्संग करू , तिन सेवहु दिन रात।
श्रद्धा , रति , अरु भक्ति सब , आपुहिं तेहि मिली जात।।५०।।

भावार्थ - किसी वास्तविक रसिक की शरण ग्रहणकर , उनका सतत सत्संग करते रहने से श्रद्धा , रति एवं भक्ति क्रमशः स्वयं प्राप्त हो जाती है।
भक्ति शतक (दोहा - 50)
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)

बिनु हरि कृपा न पाई सक , ज्ञानिहुँ ब्रहम ज्ञान।
ब्रहम अकर्ता वेद कह , सोचहु मनहिँ सुजान।।४९।।

भावार्थ - बिना सगुण साकार भगवान् की कृपा के ज्ञानी को भी ब्रहमज्ञान नहीं हो सकता। क्योंकि ज्ञानियों का ब्रहम कुछ नहीं करता। फिर कृपा करने का तो प्रश्न ही नहीं है।
भक्ति शतक (दोहा - 49)
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)

Tuesday, March 10, 2015

हाय दई, यह कैसी भई री |
केहि विधि कासों कहूँ आपनी, जार प्रेम की बात नई री |
देखन को छोटा अति खोटा, नँद – ढोटाहिं ठगाय गई री |
भई लटू मैं भटू पटू ह्वै, नेकु हँसनि मन बेच दई री |
पलक शब्द विपरीत भयो अब, विष – बेलरि उर माहिं बई री |
सिगरो जन सूनो सो दीखत, विरह घटा नैनन उनई री |
यह ‘कृपालु’ पिय – प्रेम विषामृत, परम चतुर दै शीश लई री ||

भावार्थ – एक विरहिणी सखी से कहती है कि हाय ! यह तो बड़ा ही बुरा हुआ | अब इस परपुरुष – रूप श्यामसुन्दर के प्रेम की बात को किस प्रकार किसी से कहूँ | देखने में तो वह नन्द का लाल छोटा ही है, किन्तु वह इतना खोटा है कि मुझ अत्यन्त चतुर को भी ठग लिया | अरी सखी ! मैं चतुर होते हुए भी थोड़ी – सी मुस्कान के ऊपर अपने मन को बेचकर उस पर दीवानी हो गयी | अब हमारे लिए एक – एक पल कल्प के समान हो गया है ( पलक शब्द का उल्टा कलप ) एवं हृदय में विरह की विष – बेल फैल गई है | मुझे सारा संसार शून्य – सा प्रतीत होता है, एवं विरह के बादल आँखों से आँसू बरसा रहे हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अरी सखी ! यह विष एवं अमृत मिला हुआ प्रेम जो तुझे मिला है वह बड़े – बड़े ज्ञानियों के लिए भी दुर्लभ है | इसको पाने कि लिए तो अत्यन्त ही चतुर अपना शीश प्रदान करते हैं |
( प्रेम रस मदिरा विरह – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
हमलोग संसार में सुख ढूँढते हैं जगह-जगह और कहीं पर सुख है ही नहीं तो मिलेगा कहाँ से,आनंद को छिपा लिया है भगवान ने इस संसार में रखा ही नहीं है।
........श्री कृपालु महाप्रभु।

हरि गुरु की सेवा से, हरि गुरु के निरंतर स्मरण से हमारा अन्तः करण शुद्ध होगा ।
ये प्रतिज्ञा कर लो सब लोग की जब आपस मे मिलो तो केवल भगवद् चर्चा करो और यदि दूसरा न करे तो वहाँ से तुरंत चले जाओ, हट जाओ । इस प्रकार कुसंग से बचो । जो कमाइए उसको लॉक करके रखिए, लापरवाही मत कीजिये।
...........श्री महाराजजी।
सारा जीवन श्री महाराज जी ने हमारे कल्याण के लिए समर्पित किया.. क्षण क्षण हमारे उत्थान के लिए आतुर उन्होंने हम जीवों की ही सेवा की..!!!
उनका ऋण, उनके उपकार हम पर इतना है कि न वे गिने जा सकते हैं, न समझे जा सकते हैं, न कभी उतारे ही जा सकते है..
उनकी कही बातें, उनके आदेश हम सहर्ष मानें.. वे जैसे भी सुख पाते हैं, वैसा करें, वैसा बनें... इतना तो कर ही सकते है. इसमें हमारा ही कल्याण है..!!!
संसार की आसक्ति को हटाकर हरि-गुरु में प्रेम बढ़ाएंगे.. नित्य निरंतर उन्हीं का चिंतन करेंगे.. उन्हीं की सेवा के लिए प्लानिंग करेंगे.. उनकी कृपाओं को सोच सोच कर बलिहार जायेंगे और अपनी गलतियों की क्षमायाचना तथा उनकी सेवा और प्रेम पाने के लिए निष्काम रुदन करेंगे..!!!
फिर भी भला हम पामर जीव उनका क्या उपकार उतार पाएंगे.. 'आज्ञा सम न सुसाहिब सेवा'.. यही मानकर उनके कहे पर चल सकते हैं।
करुणावरुणालय उन 'कृपालु' गुरुदेव की सदा जय हो........!
हे हमारे जीवन धन! हमारे प्राण! हमारे पथ प्रदर्शक ! हमारे इस विश्वास को दृढ़ कर दो कि तुम सदा सर्वत्र हमारे साथ हो,हमारे साथ ही चल रहे हो,खा रहे हो,बोल रहे हो,हँस रहे हो,खेल रहे हो,हर क्रिया में तुम्हारी ही उपस्थिती का अनुभव हो। तुम्हारा नाम लेकर तुम्हें पुकारें,और तुम सामने आ जाओ। नाम में नामी विध्यमान है इस सिद्धान्त को हमारे मस्तिष्क में बारंबार भरने वाले! अब इसे क्रियात्मक रूप में हमें अनुभव करवा दो।
हे दयानिधान ! नाम में प्रकट होकर कृपा करने वाले कृपालु गुरूदेव........तुमको कोटी-कोटी प्रणाम।

Sunday, March 8, 2015

मन करू सुमिरन राधे रानी के चरन !!!
तू मिले .. या ना मिले ये तो और बात है........!
हम कोशिश भी ना करे ..ये तो गलत बात है........!!
राधे-राधे।

त्रिभुवन में सत(सत्य) केवल हरि व हरिभक्त ही हैं, शेष असत(असत्य) हैं।
------श्री महाराजजी।
Although human body is invaluable, it is transient. Therefore to procrastinate in devotional practise even for a moment is the greatest loss.
मानव देह अमूल्य होते हुये भी क्षणिक है अतः परमार्थ साधना में एक क्षण का भी उधार सबसे बडी हानी है।
........श्री महाराज जी।
कोशिश करने पर अवश्य ही दोष कम होते हैं। लेकिन जब कोशिश ही कम होती है तब दोष भी कम ठीक होते हैं। गलती तो सभी से होती है , लेकिन बार - बार कहने पर भी गलती हो , यह सबसे बड़ी मिस्टेक(mistake) है।
लोगों को दूसरों की तो बड़ी भारी फिक्र है लेकिन हमारा क्या होगा , इसकी फिक्र क्यों नहीं करते हो।
………जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Thursday, March 5, 2015

होली क्यों मनायी जाती है ?
होली और भक्ति पर्यायवाची ही मानना चाहिये । होली का पर्व निष्काम प्रेम का पर्व है । भक्ति की विजय का पर्व है । भक्त शिरोमणि प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवान ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु राक्षस का संहार किया जो केवल राक्षस ही नहीं था इतना बड़ा तपस्वी था कि उसके तप से स्वर्गलोक भी जलने लगा था किन्तु इतना बड़ा तपस्वी भी भक्ति से हार मन गया । अतः प्रह्लाद चरित्र यह सिद्ध कि समस्त ज्ञान-योग आदि से भी अन्नत गुना उच्च स्थान है भक्ति का । इसी खुशी में यह उत्सव मनाया जाता है । लेकिन उत्सव मनाने का ढंग लोगों ने अनेक प्रकार अपना लिया है ।
------- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
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और द्वार जाओ न अनन्य बनो बामा।
त्रिगुण , त्रिताप , त्रिकर्म , काटें श्यामा।


Exclusively surrender to Shri Shyama. Do not go any where else . Through Her grace , you will be freed from the bondage of trigun, tritap and trikarm.
Shyama Shyam Geet - 47
-Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
Radha Govind Samiti.
The Real Significance of Holi by Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj......!!!

अधिकतर लोग यही समझते है की रंग,गुलाल से खेलना,हुडदंग बाजी करना,तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन खाना यही होली मानाने का तात्पर्य है। वास्तव में होली का पावन पर्व श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति का पर्व है। होली मनाने का अभिप्राय ही है की प्रह्लाद चरित्र को समझते हुये उनके भक्ति संबंधी सिद्धांतो का अनुसरण करना।
अतः होली मनाने का सर्वश्रेष्ठ ढंग यही है की रूपध्यान युक्त श्री राधा कृष्ण नाम,रूप, लीला,गुण,धाम,जन का गुणगान करुणक्रन्दन करते हुये किया जाये।
भक्त प्रह्लाद की परम निष्काम भक्ति एवं उनके दृढ़ विश्वास के कारण भगवान ने खम्भे से प्रकट होकर यह सिद्ध कर दिया ही मैं सदा सर्वत्र सामान रूप में व्याप्त हूँ। अतः हमे हरि-गुरु को सदा अपने रक्षक और निरीक्षक रूप में अनुभव करते हुये ये चिंतन करना है की सदा हमारी रक्षा करते है और करेंगे। वे ही हमारे परम हितेषी है।
यदि कहू वर मांगो गोविन्द राधे।
वर मांगू मांगने की कामना मिटा दे।।

यह पर्व निष्काम प्रेम का सन्देश प्रसारित करते हुये महाराजजी भक्तशिरोमणि प्रह्लाद चरित्र का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करते है। मोक्ष पर्यन्त की कामनाओ का परित्याग करके युगल प्रेम कामना ही शेष रह जाये।
यह होली पर्व के महत्व को प्रतिपादित करता है। प्रह्लाद ने असुर बालको को यही उपदेश दिया -तन का कोई भरोसा नहीं है कब यमदूत आ जाये। अतः युवावस्था को भी न परखते हुये शीध्रातिशीध्र हरि को अपना बना लो। बार बार सोचो की वे ही मेरे सर्वस्व है, उन्ही के साथ मेरे सारे सम्बन्ध है।
जय-जय श्री राधे।
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु की जय हो

Wednesday, March 4, 2015

संसार के कार्य करते हुए भी बीच-बीच में बारंबार 'भगवान मेरे सामने हैं' इस प्रकार रूपध्यान द्वारा निश्चय करते रहना चाहिये। इससे दो लाभ हैं - एक तो रूपध्यान परिपक्व होगा, दूसरे हम, भगवान को अपने समक्ष, साक्षात रूप से महसूस करते हुए उच्छृंक्ल न हो सकेंगे, जिसके परिणाम स्वरूप अपराधों से बचे रहेंगे। जीव तो, किंचित भी स्वतंत्र हुआ कि बस, वह धारा-प्रवाह रूप से संसार की ही ओर भागने लगेगा।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
श्री महाराजजी से प्रश्न:
संसार में और भगवत क्षेत्र में हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए?

श्री महाराजजी द्वारा उत्तर:
भगवान से प्यार न करने के कारण आत्मशक्ति गिर गयी है इसलिए हृदय कठोर नहीं रह सकता संसार में,पिघल जाता है। यह दोष है। तो जितना भगवान की और पिघले उतना इधर कठोर हो। ऐसा balance होना चाहिए। संसार अलग है भगवान अलग है। दोनों में अलग-अलग हिसाब किताब है। चालाकी होनी चाहिए; संसार में कोई सिर काट के चरणों में रख दे तो भी यह न समझो कि यह हमारे सुख के लिए ऐसा कर रहा है। संसार में अपने स्वार्थ के लिए ही सब लोग काम करते हैं,यह सिद्धान्त को सदा याद रखो और जब भगवान के area में जा रहे हो तो वहाँ complete surrender करो। वहाँ बुद्धि लगाया कि बरबाद हुए। बड़े बड़े सरस्वती व्रहस्पति का सर्वनाश हो गया,साधारण जीव कि क्या गिनती है? तो दोनों एरिया अलग अलग हैं,अलग अलग सिद्धान्त है,अलग अलग प्रक्रियाएँ हैं।

Monday, March 2, 2015

कृपालु गुरुवर हैं रखवार हमारों........!!!!!
वेदों शास्त्रों, पुराणों, गीता,भागवत ,रामायण तथा अन्यानय धर्मग्रन्थों के शाश्वत अलौकिक ज्ञान के संवाहक तुमको कोटि-कोटि प्रणाम। जन-जन तक यह ज्ञान पहुँचाकर दैहिक ,दैविक,भौतिक तापों से तप्त कलियुगी जीवों के लिए तुमने महान उपकार किया है जो सरलतम,सरस,सार्वत्रिक ,सार्वभौमिक,भक्तियोग प्राधान्य मार्ग तुमने प्रतिपादित किया है,वह विश्व शांति का सर्व-सुगम साधन है,असीम शाश्वत आनंद का मार्ग है। सभी धर्मानुयायीयों को मान्य है।
हे जगद्गुरूत्तम! तुमको कोटि-कोटि प्रणाम। कोटि-कोटि प्रणाम।

तुम्हारे असंख्य प्रवचन , तुम्हारे द्वारा श्री श्यामा श्याम का गुणगान, तुम्हारे द्वारा रचित ग्रंथ,तुम्हारे द्वारा निर्मितस्मारक, 'भक्ति मंदिर','प्रेम मंदिर', तुम्हारे ही अनेक रूप हैं,इस सत्य का साक्षात्कार करा दो। हमारी इस पुकार को सुनकर अनसुना न करने वाले 'पतित पुकार सुनत ही धावत' का पालन करने वाले शीघ्रातिशीघ्र आकर थाम लो। भवसिंधु में डूबने से बचा लो। मगरमच्छ,घड़ियाल की तरह काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद मात्सर्य हमें निगलने के लिए हमारी और बढ़े आ रहे हैं। कहीं तुम्हारा सारा परिश्रम व्यर्थ न चला जाये अत: आकार हमे बचा लो।
भक्तों के आंसुओं से शीघ्र प्रसन्न होने वाले भक्तवत्सल सद्गुरु देव तुमको कोटि-कोटि प्रणाम।

हे हमारे जीवन धन! हमारे प्राण! हमारे पथ प्रदर्शक ! हमारे इस विश्वास को दृढ़ कर दो कि तुम सदा सर्वत्र हमारे साथ हो,हमारे साथ ही चल रहे हो,खा रहे हो,बोल रहे हो,हँस रहे हो,खेल रहे हो,हर क्रिया में तुम्हारी ही उपस्थिती का अनुभव हो। तुम्हारा नाम लेकर तुम्हें पुकारें,और तुम सामने आ जाओ। नाम में नामी विध्यमान है इस सिद्धान्त को हमारे मस्तिक्ष में बारंबार भरने वाले! अब इसे क्रियात्मक रूप में हमें अनुभव करवा दो।
हे दयानिधान! नाम में प्रकट होकर कृपा करने वाले कृपालु!
तुमको कोटि-कोटि प्रणाम।

हे जगद्गुरूत्तम! भगवती नन्दन!
तुम्हारी महिमा का गुणगान सहस्त्रों मुखों से भी असंभव है। तुम्हारी वंदना में क्या लिखें कोई भी लौकिक शब्द तुम्हारी स्तुति के योग्य नहीं है।
बस तुम्हारा 'भक्तियोग तत्त्वदर्शन ' युगों-युगों तक जीवों का मार्गदर्शन करता रहेगा।
तुम्हारे श्री चरणों में यही प्रार्थना है कि जो ज्ञान तुमने प्रदान किया उसको हम संजोये रहे और तुम्हारे द्वारा बताये गये आध्यात्मिक ख़जाने की रक्षा करते हुएतुम्हारे बताए हुए मार्ग पर चल सकें।
धर्म,संस्कृति ,ज्ञान,भक्ति के जीवंत स्वरूप हे जगद्गुरूत्तम ! तुमको कोटि-कोटि प्रणाम। कोटि-कोटि प्रणाम।
Just put aside few minutes every day to do Sadhana. You have nothing to loose but to gain. You do not have to make any special accommodation. Where ever you remember God becomes pure ambiance. Just like the sun evaporates dirty water and turn it into rain drops. God will purify you from all your sins and make you his own forever.
तत्वज्ञान व्यक्ति के दिमाग से गया कि.... गलती हुई......!!!
-------श्री महाराज जी।