Sunday, May 15, 2016

The most common mistake you people do, is procrastinating in listening to discourses. Once listened, you think now I know everything. After some days, you are again back in the world.
You must bear in your mind that, the secret of detachment from this world, is continuing listening of discourses and Naam sankirtan. Keep listening to lectures again and again. Don’t think that, any lecture is already heard or boring. Every lecture is divine, but it depends on your inner state that, how much you get the benefit. Sometime, same lecture seems to be very fascinating and after some days, it seems to be very bore. What it means?
It means your inner state has changed now. But never be disheartened. Keep moving. Your hearts are very impure. Keep cleaning with divine satsang, and eventually when heart gets 100% purified, Guru will bestow his grace and you will be satisfied forever.


------JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
जीवात्मा के समस्त नाते केवल श्रीकृष्ण से ही हैं और वो नाता सनातन है, शेष नाते क्षणिक हैं और सीमित हैं । जीव श्रीकृष्ण का नित्य दास है तो जीव का लक्ष्य है - श्रीकृष्ण की सेवा प्राप्त करना।

----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
सुमिरन कर ले मना, राधा अरु राधारमना।
दोई गोपीजन जीवना, राधा अरु राधारमना ।
दोनों ही 'कृपालु' हैं मना, राधा अरु राधारमना।

----- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
"This World is like a Marketplace where Merchants from various places keep coming and going. Some People earn here, where as others lose even their capital. Various powerful thieves like Lust, Anger and Greed are to be found here, who rob one of one's earnings. However in this Market it is also possible to attain the priceless gem of divine love, if we understand the importance of Human Life, by practicing devotion to Lord Krishna."

------JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
प्रेम तत्व की सार मादन स्वरुपा रासेश्वरी श्री राधारानी ही सर्वश्रेष्ठ तत्व है । श्रीकृष्ण जिसकी आराधना करें, उस तत्व का नाम राधा तत्व है । जिसकी चरण-धूलि ब्रह्म श्री कृष्ण अपने सिर पर धारण करते हैं, जिसके अंक में लेटे हुये श्री कृष्ण गोलोक को भूल जाते हैं, ऐसी सत्ता का नाम है-'राधा', जिसकी अंश है- ब्रह्माणी, शिवानी, कमला आदि॥
----------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ।
ईश्वरीय क्षेत्र में मन का ही महत्त्व है। केवल शारीरिक रूप से सत्संग करने का विशेष लाभ नहीं है। मन से श्रद्धायुक्त हो कर सत्संग जीव को ज्ञान, वैराग्य, भक्ति सब कुछ दिला देगा।
......श्री कृपालु महाप्रभु ।

श्यामसुन्दर पर तुम्हारा इतना अधिकार है जितना अपने आप पर भी नहीं है। वे तुमसे इतना प्यार करते है जितना तुम अपने आप से भी नहीं करते।
.........जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।
वे हमारी रक्षा करते हैं, वे हमारी रक्षा कर रहे हैं, वे आगे भी हमारी रक्षा करेंगे, इस पर विश्वास कर लो।
........श्री महाराजजी।
सारा संसार मायाजनित अज्ञान के द्वारा अन्धा हो रहा है परन्तु अपने को कोई भी अज्ञानी नहीं समझता सभी ज्ञानी समझते हैं।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

जानकी नवमी की हार्दिक शुभकमनाएँ।
सीता मैया की जय हो। सियावर रामचन्द्र की जय हो।

Wednesday, May 4, 2016

जग राग छूटे नहीं, कृपा करु राधे।
माया ने सताया अति, कृपा करु राधे ।।


O Radhey! Please destroy my worldly attachments by showering Your Divine grace upon me. Your Maya has troubled me extensively; please bless me with Your grace.

........SHRI MAHARAJJI.
शरण्य के प्रति जीव की नित्य शरणागति ही साधना है एवं शरणागति द्वारा शरण्य की नित्य सेवा ही जीव का परम-चरम लक्ष्य है।

-------------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Whenever you practice devotion to God, you should first understand that the mind must be attached to God. Worldly work can be performed even without the attachment of the mind, and people of the world will accept that work as genuine work. However, God cannot be fooled, He does not accept the external formalities if the mind is not involved. Resolve to yourself that from today onwards, you will involve the mind in devotional practice. Then you will see how far you will reach within even one week’s time.

....JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.

सुमिरन कर ले मना, राधा अरु राधारमना ।
दोई गोपीजन जीवना, राधा अरु राधारमना।।

---- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

एक कल गया,एक आज जा रहा है और एक उसको लेकर जा रहा है शमशान घाट तक, राम नाम सत्य है और फिर भूल गया लौटते समय कि संसार सत्य है और प्लानिंग कर रहा है करोड़पति बनने की ये सबसे बड़ा आश्चर्य है कि बचे हुए लोग अपने लिये नहीं सोचते कि हम भी किसी भी क्षण जा सकते हैं। अपराध से बचें,हरि-गुरु का चिंतन करें। लापरवाही छोड़े।

राम नाम सब सत्य कह,जब लौं जात मसान।
लौटत ही पुनि जगत केंह,सत्य मान धनि ज्ञान।।


--------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

कोई आपका दुश्मन भी आ रहा है, रिवाल्वर लेकर ! सोचो - मैं आत्मा हूँ, यह मेरा क्या बिगाड लेगा। शरीर से अलग होने पर प्रियतम के पास पहुंच जाऊँगा। डरो मत ! सोचो कि यह सब प्रभु की लीला हो रही है। परीक्षा के लिए प्रतिक्षण तैयार रहो।

सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका), जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
सोचो! अगला क्षण मिले न मिले.........!!!

....श्री महाराजजी।

भगवान तुमकों नहीं भूलते। वो तुम्हारे हृदय में बैठे हैं, सदा सर्वत्र। वो तुम्हारा साथ नहीं छोड़ते कभी भी। तुम ही भूले हुए हो अपने वास्तविक संबंधी को। भगवान कहते हैं:- बस मेरा स्मरण करो, और कुछ न करो। मैं सबकुछ करूँगा तुम्हारा। तुम खाली स्मरण करो, बाकी सब काम मैं करूँगा, और सदा के लिए अपना बना लूँगा।

------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।

When you do selfless service to God not expecting anything in return, the irony is that God gives you the best even without asking for it.

......SHRI MAHARAJJI.
अपने को दीन, पतित, अधम मानो वरना जीवन भर की कमाई खो जायेगी।

------श्री महाराजजी।

Why do you get disheartened and sad? Don’t you believe that God is with you at all times and protecting you? Don’t you have faith in God’s promise that He has to love you in the same way, same manner and same extent as you love Him? He has also said “Jo Tu Dhyave Ek Pag, To Mein Dhyavu Saath”. If you take one step towards me then I will run 60 steps towards you. Why do you look for shelter in the world?
सद्गुरु की शरणागति में रह कर जो जीव श्यामा श्याम की भक्ति करते हैं , उनका अंतःकरण शुद्ध हो जाता है।

सद्गुरु के पास किसी को इंकार नहीं है। जो डूबने को राजी है सद्गुरु उसे लेने को तैयार है। वह शर्ते नहीं रखता। वह पात्रताओं के जाल खडे नहीं करता। अपात्र को पात्र बना ले, वही तो सद्गुरु है। अयोग्य को योग्य बना ले वही तो सद्गुरु है। संसारी को सन्यासी बना ले, वही तो सद्गुरु है।
 
श्री महाराज जी द्वारा-------'एक बार ऐसा कर के तो देखो' .......!!!
श्री राधाकृष्ण ही तुम्हारे सर्वस्व हैं। उन्हें बिलकुल ही अपना समझो। यह न सोचो कि वे तो पराप्त सर्वशक्तिमान भगवान् आदि हैं।
वे सदा अपने दोनों हाथों को पसारे हुये तुम्हारे लिये खड़े हैं। केवल तुम एक बार समस्त सांसारिक विषयों से मुँह मोड़ कर उनकी ओर निहार दो। बस, फिर वे तुम्हारे एवं तुम उनके हो जाओगे। वे तो अकारणकरुण हैं, कुछ साधना आदि की भी अपेक्षा नहीं रखते। उनका तो स्वभाव ही है अकारण कृपा करने का। तुम विश्वास कर लो, बस,काम बन जाय। तुम अपने आप को सदा के लिये उनके हाथों बेच दो, वे , सब ठीक कर लेंगे। देखो उन्होंने महान से महान पापियों को भी हृदय से लगाया है , फिर तुम्हें क्यों अविश्वास या संकोच है। एक बार ऐसा करके तो देखो।


..........जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी।

तत्वज्ञान व्यक्ति के दिमाग से गया कि.... गलती हुई......!!!

-------श्री महाराज जी।