Monday, April 29, 2013

Even if a human being is given all the possible material possessions anyone could ever want, his desire for more will be exactly the same as it was at the very beginning.
........SHRI MAHARAJJI.
Even if a human being is given all the possible material possessions anyone could ever want, his desire for more will be exactly the same as it was at the very beginning.
 ........SHRI MAHARAJJI.

 
 

 
"JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ HAS REJUVENATED AND RE-ESTABLISHED THE DEVOTIONAL PARAMPARA OF RAGANUGA BHAKTI WHICH WAS INTRODUCED BY SHREE CHAITANYA MAHAPRABHUJI,AND HAS GIVEN IT A REFINED FORM THAT COULD BE FOLLOWED BY THE DEVOTEES OF THE WORLD,FOREVER.
FOR THE GOOD OF THE SOULS,SHRI MAHARAJJI HAS REVEALED A RECONCILED AND UNIFIED THEORY OF ALL THE BHARTIYA SCRIPTURES WHICH HAS PROPOUNDED BY PREVIOUS JAGADGURUS AND ACHARYAS IN VARIOUS WAYS,AND HAS ESTABLISHED A SINGLE,SURE,SIMPLE,AND POTENT PATH OF DEVOTION TO GOD THAT COULD BE FOLLOWED BY EVERYONE DESIRING TO EXPERIENCE THE SUPREME FORM OF DIVINE LOVE."
 
The world can be fooled by external behaviour; but God is controlled only by true love.
........SHRI MAHARAJJI.
The world can be fooled by external behaviour; but God is controlled only by true love.
 ........SHRI MAHARAJJI.

 

A genuine Saint never grants material boons to people.
.....SHRI MAHARAJJI.
A genuine Saint never grants material boons to people.
 .....SHRI MAHARAJJI.

 

    यह समझे रहना है की हमारे प्रेमास्पद श्री कृष्ण सर्वत्र है एवं सर्वदा है।विश्व में एक परमाणु भी ऐसा नहीं है, जहाँ उसका निवास न हो।जैसे तिल में तेल व्याप्त होता है ऐसे ही भगवान भी सर्वव्यापक है।उनको कोई भी स्थान या काल अपवित्र नहीं कर सकता।वरन वे ही अपवित्र को पवित्र कर देते है।
    -----------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
    यह समझे रहना है की हमारे प्रेमास्पद श्री कृष्ण सर्वत्र है एवं सर्वदा है।विश्व में एक परमाणु भी ऐसा नहीं है, जहाँ उसका निवास न हो।जैसे तिल में तेल व्याप्त होता है ऐसे ही भगवान भी सर्वव्यापक है।उनको कोई भी स्थान या काल अपवित्र नहीं कर सकता।वरन वे ही अपवित्र को पवित्र कर देते है।
-----------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

     

    Saturday, April 27, 2013

    स्वभाव ही है अकारण कृपा करने का | तुम विश्वास कर लो, बस, काम बन जाय
    तुम अपने आपको सदा के लिए उनके हाथों बेच दो, वे सब ठीक कर देंगे |
    देखो उन्होंने महान से महान पापियों को भी हृदय से लगाया है,फिर तुम्हे क्यों अविश्वास या संकोच है| एक बार ऐसा करके तो देखो |

    ............तुम्हारा कृपालु।
    स्वभाव ही है अकारण कृपा करने का | तुम विश्वास कर लो, बस, काम बन जाय
तुम अपने आपको सदा के लिए उनके हाथों बेच दो, वे सब ठीक कर देंगे |
देखो उन्होंने महान से महान पापियों को भी हृदय से लगाया है,फिर तुम्हे क्यों अविश्वास या संकोच है| एक बार ऐसा करके तो देखो |
 
............तुम्हारा कृपालु।

     

    All I want to do is to please you.
    All I want is I must obey you.
    May I forever hold you in the highest esteem;
    You, who are the god’s greatest gift to me.
    You are on the highest pedestal even if sit side by side.
    I do not demand attention; bless me with a sign now and then to say,
    “I am not displeased with you.”
    All I want to do is to please you.
All I want is I must obey you.
May I forever hold you in the highest esteem;
You, who are the god’s greatest gift to me.
You are on the highest pedestal even if sit side by side.
 I do not demand attention; bless me with a sign now and then to say,
“I am not displeased with you.”

     

    भगवान् से कोई जीव किसी प्रकार का लाभ नहीं उठा सकता। जैसे समुद्र का खारा जल किसी प्राणी की प्यास नहीं बुझाता परन्तु वही समुद्र का जल जब बादल बरसाता है तो सम्पूर्ण जगत तृप्त हो जाता है। इसी प्रकार संतों द्वारा ही भगवान् की दिव्य महिमा का ज्ञान प्राप्त करके जीव भगवान् का आनन्द प्राप्त कर लेता है।

    -------------जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु।
    भगवान् से कोई जीव किसी प्रकार का लाभ नहीं उठा सकता। जैसे समुद्र का खारा जल किसी प्राणी की प्यास नहीं बुझाता परन्तु वही समुद्र का जल जब बादल बरसाता है तो सम्पूर्ण जगत तृप्त हो जाता है। इसी प्रकार संतों द्वारा ही भगवान् की दिव्य महिमा का ज्ञान प्राप्त करके जीव भगवान् का आनन्द प्राप्त कर लेता है।
 
-------------जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु।


    DIVINE WORDS BY-JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

    Spend some private time with God every day and pray to Him. Play a CD of bhajans, i.e. devotional songs. Sing along with, or after the singer. Keep a picture of Lord Krishna in front of you. Next, take Him out of the picture and visualize Him as a living entity. He is six feet tall and very alluring. His eyes are blinking, His arms are moving, He is smiling, He is walking towards you. Embrace Him lovingly. Fall at His lotus feet and wash them with your tears.
    DIVINE WORDS BY-JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
 
Spend some private time with God every day and pray to Him. Play a CD of bhajans, i.e. devotional songs. Sing along with, or after the singer. Keep a picture of Lord Krishna in front of you. Next, take Him out of the picture and visualize Him as a living entity. He is six feet tall and very alluring. His eyes are blinking, His arms are moving, He is smiling, He is walking towards you. Embrace Him lovingly. Fall at His lotus feet and wash them with your tears.

     

    इस धराधाम पर अनन्त बार श्रीहरि के अवतार हुये परन्तु अपने मन के दोष के कारण यह जीव कभी उनकी कृपा का पात्र नहीं बन सका ! ब्रह्म श्रीकृष्ण को भी यहाँ चोर - जार की उपाधि से विभूषित किया गया ! श्रीकृष्ण के अवतार काल में मिथ्या वासुदेव भी था जिसने दो नकली भुजाएं लगा ली थीं ! उनके श्रीकृष्ण के पास संदेश भेजा था कि असली वासुदेव मैं हूँ , तुम नहीं हो !

    ------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.
    इस धराधाम पर अनन्त बार श्रीहरि के अवतार हुये परन्तु अपने मन के दोष के कारण यह जीव कभी उनकी कृपा का पात्र नहीं बन सका ! ब्रह्म श्रीकृष्ण को भी यहाँ चोर - जार की उपाधि से विभूषित किया गया ! श्रीकृष्ण के अवतार काल में मिथ्या वासुदेव भी था जिसने दो नकली भुजाएं लगा ली थीं ! उनके श्रीकृष्ण के पास संदेश भेजा था कि असली वासुदेव मैं हूँ , तुम नहीं हो !

------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.

     

    वे क्या हैं ? हम नहीं जान सकते हैं। यह तो केवल वही जान सकता है जिस पर वो कृपा करके बोध करा देते हैं। केवल इतना ही द्रढ़ विश्वास बनाये रखो कि वे ही हमारे सर्वस्व हैं। सर्वसमर्थ हैं , सर्वान्तर्यामी हैं और इतना ही नहीं वे तो हमारे बिल्कुल अपने हैं और सदा से हम पर अकारण कृपा करते आये हैं।
    ~~~~ जगद्गुरु श्री कृपालु जी .
    वे क्या हैं ? हम नहीं जान सकते हैं। यह तो केवल वही जान सकता है जिस पर वो कृपा करके बोध करा देते हैं। केवल इतना ही द्रढ़ विश्वास बनाये रखो कि वे ही हमारे सर्वस्व हैं। सर्वसमर्थ हैं , सर्वान्तर्यामी हैं और इतना ही नहीं वे तो हमारे बिल्कुल अपने हैं और सदा से हम पर अकारण कृपा करते आये हैं।
~~~~ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महरज~~~~

     

    God alone is our supreme divine Master, and therefore, we have to engage ourselves constantly in His divine service.
    हमारे सेव्य श्रीकृष्ण ही हैं। सेव्य-सेवक भाव से ही साधना-भक्ति करनी होगी।
    ------jagadguru shri kripalu ji maharaj.
    God alone is our supreme divine Master, and therefore, we have to engage ourselves constantly in His divine service.
हमारे सेव्य श्रीकृष्ण ही हैं। सेव्य-सेवक भाव से ही साधना-भक्ति करनी होगी।
------jagadguru shri kripalu ji maharaj.

    संत , कृपा कह कर नहीं , कर के दिखाते है।
    ------- श्री महाराज जी।
    संत , कृपा कह कर नहीं , कर के दिखाते है।
-श्री महाराज जी।

     

    मानव देह की दुर्लभता के साथ साथ क्षणभंगुरता पर विचार करते हुए तुरंत वास्तविक महापुरुष द्वारा निर्दिष्ट साधना प्रारम्भ करो, संसारी कमाई पर नहीं, ईश्वरीय कमाई पर ध्यान दो। वो ही साथ जायेगी।
    ~~~~~श्री कृपालु महाप्रभु~~~~~
    मानव देह की दुर्लभता के साथ साथ क्षणभंगुरता पर विचार करते हुए तुरंत वास्तविक महापुरुष द्वारा निर्दिष्ट साधना प्रारम्भ करो, संसारी कमाई पर नहीं, ईश्वरीय कमाई पर ध्यान दो। वो ही साथ जायेगी।
~~~~~श्री कृपालु महाप्रभु~~~~~

     

    गुरु एवं भगवान् में कभी भेद मत मानो , सदा उन्हें अपने साथ ही मानो , अन्यथा मन मक्कारी करने लगेगा।
    ------श्री महाराज जी।
    गुरु एवं भगवान् में कभी भेद मत मानो , सदा उन्हें अपने साथ ही मानो , अन्यथा मन मक्कारी करने लगेगा।
--श्री महाराज जी।

     

    कृपालु के साथ दो चाल नहीं चलेंगी कि मुझको भी हृदय में रखो और गलतियाँ भी करते जाओ। मुझे अपने ह्रदय से निकल दो तब गलतियाँ करो।
    ----श्री महाराज जी।
    कृपालु के साथ दो चाल नहीं चलेंगी कि मुझको भी हृदय में रखो और गलतियाँ भी करते जाओ। मुझे अपने ह्रदय से निकल दो तब गलतियाँ करो।
----श्री महाराज जी।

     
    यदि दैन्यं त्वत्कृपाहेतुर्न तदस्ति ममाण्वपि ।
    तां कृपां कुरु राधेश ययाते दैन्य माप्नुयाम् ॥

    अर्थात् ' हे श्रीकृष्ण ! यदि दीनता से ही तुम कृपा करते हो तो वह मेरे पास थोडा भी नहीं है । अतः पहले ऐसी कृपा करो कि दीन भाव युक्त बनुँ । ' ऐसा कहकर आँसू बहाओ । यह करना पडेगा । मानव देह क्ष्यणिक है । जल्दि करो, पता नहीं कब टिकट कट जाय ॥

    ------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.
    यदि दैन्यं त्वत्कृपाहेतुर्न तदस्ति ममाण्वपि ।
तां कृपां कुरु राधेश ययाते दैन्य माप्नुयाम् ॥

अर्थात् ' हे श्रीकृष्ण ! यदि दीनता से ही तुम कृपा करते हो तो वह मेरे पास थोडा भी नहीं है । अतः पहले ऐसी कृपा करो कि दीन भाव युक्त बनुँ । ' ऐसा कहकर आँसू बहाओ । यह करना पडेगा । मानव देह क्ष्यणिक है । जल्दि करो, पता नहीं कब टिकट कट जाय ॥

-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

     
     

    If we find our mind repeatedly going towards & dwelling upon others faults, we should know that our ego has swollen, and we must be careful.

    - Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj.
    If we find our mind repeatedly going towards & dwelling upon others  faults, we should know that our ego  has swollen, and we must be careful.

- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj

     

    Thursday, April 25, 2013

    "JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ HAS REJUVENATED AND RE-ESTABLISHED THE DEVOTIONAL PARAMPARA OF RAGANUGA BHAKTI WHICH WAS INTRODUCED BY SHREE CHAITANYA MAHAPRABHUJI,AND HAS GIVEN IT A REFINED FORM THAT COULD BE FOLLOWED BY THE DEVOTEES OF THE WORLD,FOREVER.
    FOR THE GOOD OF THE SOULS,SHRI MAHARAJJI HAS REVEALED A RECONCILED AND UNIFIED THEORY OF ALL THE BHARTIYA SCRIPTURES WHICH HAS PROPOUNDED BY PREVIOUS JAGADGURUS AND ACHARYAS IN VARIOUS WAYS,AND HAS ESTABLISHED A SINGLE,SURE,SIMPLE,AND POTENT PATH OF DEVOTION TO GOD THAT COULD BE FOLLOWED BY EVERYONE DESIRING TO EXPERIENCE THE SUPREME FORM OF DIVINE LOVE."

     

      मन कि निर्मलता कि कसौटी है – भगवत विषय में मन का लगाव. यह कसौटी श्रेष्ठ हैं। इश्वरीय तत्व को पाने के लिये हमारे मन मे कितनी छ्टपटाहट है, यहि मन की निर्मलता कि सबसे बडी कसौटी है।
      -------श्री महाराजजी।
      मन कि निर्मलता कि कसौटी है – भगवत विषय में मन का लगाव. यह कसौटी श्रेष्ठ हैं। इश्वरीय तत्व को पाने के लिये हमारे मन मे कितनी छ्टपटाहट है, यहि मन की निर्मलता कि सबसे बडी कसौटी है। 
-------श्री महाराजजी।

       

      श्री राधे हमारी सरकार, फ़िकिर मोहिं काहे की ।

      हित अधम उधारन देह धरेँ, बिनु कारन दीनन नेह करेँ ;

      जब ऐसी दया दरबार , फ़िकिर मोहिं काहे की ।

      ...........श्री महाराजजी।
      श्री राधे हमारी सरकार, फ़िकिर मोहिं काहे की ।

 हित अधम उधारन देह धरेँ, बिनु कारन दीनन नेह करेँ ;

 जब ऐसी दया दरबार , फ़िकिर मोहिं काहे की ।
 
...........श्री महाराजजी।

       

      श्री कृपालु जी महाराज के मुखारविंद से:-

      जो आदेश मैंने तुमको दिया है: दीनता, मधुरभाषण, नम्रता , उनका पालन तुम लोग अभी नहीं कर रहे हो। एक भिक्षा माँग रहा हूँ, तुम लोग लापरवाही कर रहे हो, यह बुरी बात है।
      श्री कृपालु जी महाराज के मुखारविंद से:-
 
जो आदेश मैंने तुमको दिया है: दीनता, मधुरभाषण, नम्रता , उनका पालन तुम लोग अभी नहीं कर रहे हो। एक भिक्षा माँग रहा हूँ, तुम लोग लापरवाही कर रहे हो, यह बुरी बात है।

       

      It is Thakurji's (Shree Krishna's) weakness that the moment He hears someone singing Kishoriji's (Radharani's) name, He runs towards the one singing Her names! To please and make Shree Krishna happy, just chant the Divine name and glories of Radharani. This is the fastest method of pleasing your beloved Shree Krishna.
      It is Thakurji's (Shree Krishna's) weakness that the moment He hears someone singing Kishoriji's (Radharani's) name, He runs towards the one singing Her names! To please and make Shree Krishna happy, just chant the Divine name and glories of Radharani. This is the fastest method of pleasing your beloved Shree Krishna.


      We may say, "O Lord, I offer you this...and this...and this..." But when we say, "I offer you my will," we have nothing else to offer.
      We may say, "O Lord, I offer you this...and this...and this..." But when we say, "I offer you my will," we have nothing else to offer.

       

      It is important to understand the fact that nobody can understand Krishna by his own material intellect. When you receive His Grace, only then with that Divine intellect you can understand Him.
      It is important to understand the fact that nobody can understand Krishna by his own material intellect. When you receive His Grace, only then with that Divine intellect you can understand Him.

       

      Avoid having ill feelings even towards the most fallen, rather, be neutral.
      .........SHRI MAHARAJJI.
      Avoid having ill feelings even towards the most fallen, rather, be neutral.
 .........SHRI MAHARAJJI.


      हम साधकों को सदा यही समझना चाहिए कि हमसे जो अच्छा काम हो रहा है, वह गुरु एवं भगवान की कृपा से ही हो रहा है क्योंकि हम तो अनादिकाल से मायाबद्ध घोर संसारी, घोर निकृष्ट, गंदे आइडियास(ideas) वाले बिलकुल गंदगी से भरे पड़े हैं। हमसे कोई अच्छा काम हो जाये, भगवान के लिए एक आँसू निकल जाय, महापुरुष के लिए, एक नाम निकल जाये मुख से, अच्छी भावना पैदा हो जाये उसके प्रति हमारी यह सब उनकी ही कृपा से हुआ ऐसा ही मानना चाहिये। अगर वे सिद्धान्त न बताते , हमको अपना प्यार न देते तो हमारी प्रवर्ति ही क्यों होती, कभी यह न सोचो की हमारा कमाल है, अन्यथा अहंकार पैदा होगा , अहंकार आया की दीनता गयी, दीनता गयी तो भक्ति का महल ढह गया। सारे दोष भर जाएंगे एक सेकंड में इसलिए कोई भी भगवत संबंधी कार्य हो जाये तो उसको यही समझना चाहिये कि गुरु कृपा है, उसी से हो रहा है ताकि अहंकार न होने पाये। अगर गुरु हमको न मिला होता, उसने हमको न समझाया होता ,उसने अपना प्यार दुलार न दिया होता, आत्मीयता न दी होती तो हम ईश्वर कि और प्रव्रत्त ही न होतें। अत: उन्ही की कृपा से सब अच्छे कार्य हो रहें है ऐसा सदा मान के चलो।
      -----------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.
      हम साधकों को सदा यही समझना चाहिए कि हमसे जो अच्छा काम हो रहा है, वह गुरु एवं भगवान की कृपा से ही हो रहा है क्योंकि हम तो अनादिकाल से मायाबद्ध घोर संसारी, घोर निकृष्ट, गंदे आइडियास(ideas) वाले बिलकुल गंदगी से भरे पड़े हैं। हमसे कोई अच्छा काम हो जाये, भगवान के लिए एक आँसू निकल जाय, महापुरुष के लिए, एक नाम निकल जाये मुख से, अच्छी भावना पैदा हो जाये उसके प्रति हमारी यह सब उनकी ही कृपा से हुआ ऐसा ही मानना चाहिये। अगर वे सिद्धान्त न बताते , हमको अपना प्यार न देते तो हमारी प्रवर्ति ही क्यों होती, कभी यह न सोचो की हमारा कमाल है, अन्यथा अहंकार पैदा होगा , अहंकार आया की दीनता गयी, दीनता गयी तो भक्ति का महल ढह गया। सारे दोष भर जाएंगे एक सेकंड में इसलिए कोई भी भगवत संबंधी कार्य हो जाये तो उसको यही समझना चाहिये कि गुरु कृपा है, उसी से हो रहा है ताकि अहंकार न होने पाये। अगर गुरु हमको न मिला होता, उसने हमको न समझाया होता ,उसने अपना प्यार दुलार न दिया होता, आत्मीयता न दी होती तो हम ईश्वर कि और प्रव्रत्त ही न होतें। अत: उन्ही की कृपा से सब अच्छे कार्य हो रहें है ऐसा सदा मान के चलो।
 -----------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.

       

      Never consider yourself to be alone.Always feel the presence of Hari-Guru with you all the time.
      .........SHRI MAHARAJJI.
      Never consider yourself to be alone.Always feel the presence of Hari-Guru with you all the time.
 .........SHRI MAHARAJJI.

       

      A genuine Saint neither pretends to give blessings nor does He curse anyone.
      महापुरुष मिथ्या आशीर्वाद नहीं देता एवं शाप भी नहीं देता।
      ----jagadguru shri kripalu ji maharaj.
      A genuine Saint neither pretends to give blessings nor does He curse anyone.
महापुरुष मिथ्या आशीर्वाद नहीं देता एवं शाप भी नहीं देता।
----jagadguru shri kripalu ji maharaj.

       

      शौक पैदा करो लोग हमें खराब कहें और हम हँसतें रहे।
      ........श्री महाराजजी।

       

      हम किसी जीव को छोड देंगे,यह् कैसे सम्भव है ! यह तो उस व्यक्ति विशेष की स्थिति पर निर्भर करता है । जब तक अलग रहेगा तभी तक अलग रहेगा ।
      लेकिन जैसे ही अन्दर से वह ठिक हो जायेगा, क्रुपालु को तुरन्त ही ठीक हो जाना पडेगा, चाहे उससे पुर्व उसने अनन्त अपराध किये हैं ॥

      ------तुम्हारा कृपालु.
      हम किसी जीव को छोड देंगे,यह् कैसे सम्भव है ! यह तो उस व्यक्ति विशेष की स्थिति पर निर्भर करता है । जब तक अलग रहेगा तभी तक अलग रहेगा ।
लेकिन जैसे ही अन्दर से वह ठिक हो जायेगा, क्रुपालु को तुरन्त ही ठीक हो जाना पडेगा, चाहे उससे पुर्व उसने अनन्त अपराध किये हैं ॥

-तुम्हारा कृपालु

       

      One should not harbour resentment even towards someone who is actually condemnable, because God resides even in his heart.
      निन्दनीय के प्रती भी दुर्भावना न होने पाये क्योंकि उसके हृदय में भी तो श्रीकृष्ण हैं।
      -----jagadguru shri kripalu ji maharaj.
      हम भगवान् के आगे , उनको सामने खड़ा करके , रोकर उनका दर्शन , उनका प्रेम माँगे। रोकर माँगे ,अकड़ कर नहीं, जैसे कोई पानी में डूबने लगता है तो वो कितनी विहलता , व्याकुलता में हाथ- पैर ऊपर करता है, तैरना नहीं जानता है। जैसे मछली को बाहर दाल दो , कैसे तड़पती है, पानी के लिये। ऐसे ही श्यामसुन्दर के मिलन के लिये हमको तड़पना होगा।
      बिनु रोये किन पाइयां प्रेम पियरो मीत।
      ******जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु******
      हम भगवान् के आगे , उनको सामने खड़ा करके , रोकर उनका दर्शन , उनका प्रेम माँगे। रोकर माँगे ,अकड़ कर नहीं, जैसे कोई पानी में डूबने लगता है तो वो कितनी विहलता , व्याकुलता में हाथ- पैर ऊपर करता है, तैरना नहीं जानता है। जैसे मछली को बाहर दाल दो , कैसे तड़पती है, पानी के लिये। ऐसे ही श्यामसुन्दर के मिलन के लिये हमको तड़पना होगा।
बिनु रोये किन पाइयां प्रेम पियरो मीत।
******जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु******

       

      ऐसे टाइम बिता जा रहा हे 30 साल के हो गये ,50 साल के हो गये , हा बिता जा रहा हे ,आगे नहीं बढ़ पा रहे हे , 1 दिन फट यमराज का आर्डर हो जायेगा.

      आयु जल बुलबुला गोविंद राधे,
      जाने कब फूट जाये सबको बता दे.

      ...
      जब यम कालदंड, लै अइहै , देखि देखि डर पायेगा.
      तब "कृपालु" धरि हाथ माथ पर, मन ही मन पछतायेगा.

      - Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj.
      ऐसे टाइम बिता जा रहा हे 30 साल के हो गये ,50 साल के हो गये , हा बिता जा रहा हे ,आगे नहीं बढ़ पा रहे हे , 1 दिन फट यमराज का आर्डर हो जायेगा. 

आयु जल बुलबुला गोविंद राधे,
जाने कब फूट जाये सबको बता दे.

जब यम कालदंड, लै अइहै , देखि देखि डर पायेगा.
तब "कृपालु" धरि हाथ माथ पर, मन ही मन पछतायेगा. 

- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj

       

      वे सदेव देने को तैयार बैठे है ,यदि लेने वाला न ले तो वह क्या करे ?उन्होने आपको दे दिया,लेकिन लिया या नहीं यह लेने की पात्रता पर निर्भर है .
      वे सदेव देने को तैयार बैठे है ,यदि लेने वाला न ले तो वह क्या करे ?उन्होने आपको दे दिया,लेकिन लिया या नहीं यह लेने की पात्रता पर निर्भर है .

       
      संसार ही भगवद्विषयक प्रवृति का प्रथम गुरु है, जो असक्त जीव को जूते मार मार कर संसार के प्रति वैराग्य जाग्रत करवा देता है.

      The Material World acts as the first Guru for the Soul entangled in worldly desires because by inflicting miseries on him, it helps him develop detachment from the world.

      - Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj.
      संसार ही भगवद्विषयक प्रवृति का प्रथम गुरु है, जो असक्त जीव को जूते मार मार कर संसार के प्रति वैराग्य जाग्रत करवा देता है.

The Material World acts as the first Guru for the Soul entangled in worldly desires because by inflicting miseries on him, it helps him develop detachment from the world.

- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj