Monday, July 29, 2019

अगर इस मानव देह का सदुपयोग न किया ईश्वर की ओर डायवर्ट नहीं किया तो फिर संसार की ओर भागेगा। और उसी तेज गति से भागेगा। तो फिर क्या परिणाम होगा ? फिर वही चौरासी लाख का चक्कर मिलेगा। खाली मानव देह पाने से काम नहीं बन सकता।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
साधना करु साधना करु साधना करु प्यारे।
साधना ते ही मिले तोहिं, साध्य हरि रति प्यारे ।
प्रथम श्रद्धा युक्त हो जा, शरण गुरु पद प्यारे।
गुरु की बुधि में जोड़ निज बुधि, है शरण यह प्यारे।
ग्रन्थ पढु जनि बहुत सुनु जनि,संत मत बहु प्यारे।
ब्रह्म माया जीव का करु, ज्ञान गुरु सों प्यारे।
सेव्य सों सम्बन्ध अपनो, जानु गुरु सों प्यारे।
हरि में गुरु में भेद जनि, लवलेश मानहु प्यारे।
अनहोनी होती नहीं, तू क्यों हुआ उदास ।
होनी भी टल जायेगी, रख गुरु में विश्वास ।।
जितने आये कष्ट सब, कर लेना मंजूर।
लेकिन गुरु के द्वार से, कभी न होना दूर ।।
अपने गुरु को छोड़कर, करे किसी की आस ।
निश्चित ही वह शिष्य फिर, करे नरक में वास ।।
बिना गुरु के तर सका, हुआ न कोई शूर।
फैल रहा चारों तरफ, मेरे सदगुरु का नूर ।।
गुरु चरणों में शिष्य के, दुःख कट जाते आप ।
पास न उसके आ सके, जग के तीनों ताप ।।
अपने गुरु से प्रीत जो, करता है निष्काम।
गुरु चरणों में ही बसे, उसके चारों धाम ।।
जितने भी तू कष्ट दे, सब मुझको स्वीकार।
लेकिन गुरु-सेवा विमुख, मत करना करतार ।।
कठिन परीक्षा में कभी, मत छोड़ो विश्वास।
खोट काटने शिष्य का, देते हैं सतगुरु त्रास ।।
श्री सदगुरुदेव भगवान की जय !!!
जगदगुरूत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु की जय।
हमारे परमपूजनीय श्री महाराजजी (जगद्गुरुत्तम भगवान श्री कृपालुजी महाराज) तो कृपा की मूर्ति ही हैं। यानि अंदर बाहर सर्वत्र कृपा ही कृपा है। यही उनका वास्तविक स्वरूप है। 'कृपालु' का अर्थ ही है कृपा लूटाने वाला। कोई दुर्भावना से आए सदभावना से उनके पास आये वे सब पर कृपा ही करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि गुरुवर का तन मन सब कृपा का ही बना हुआ है। सोते जागते उठते बैठते उनका एक ही काम है जीवों पर कृपा करना। उनका तन,मन सब कृपा ही कृपा का बना हुआ है, वे बिना कृपा किये रह ही नहीं सकते। लेकिन हम जिस दिन उन्हें सेंट-परसेंट 'कृपालु' मान लेंगे बस हमारा काम बन जायेगा।
कोई भी चीज़ होगी वह विश्वास पर निर्भर करती है। आपको विश्वास जितनी मात्रा में हो गया बस उतनी मात्रा में आप का काम बन गया। और विश्वास करना ये आपके हाथ में है। ये तो सन्त और भगवान् नहीं करा सकते।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
मेरी #राधारमण सों यारी, तन मन -धन उन पर #वारी
#बनवारी सों ह्वै गइ यारी, #तन #मन #धन उन पर वारी।
मेरी राधारमण सों यारी,यह #जीवन उन पर वारी।
मेरी राधारमण सों यारी,क्या समझेगा कोउ #संसारी
मेरी राधारमण सों यारी,#अगनित #प्रानन दउँ वारी।।
त्रिभुवन में सत(सत्य) केवल हरि व हरिभक्त ही हैं, शेष सब असत(असत्य) हैं।
------श्री महाराजजी।
भगवान की सेवा से भगवान की कृपा मिलेगी, उनका प्यार मिलेगा, अंत:करण शुद्ध होगा और वो तुम्हारा योगक्षेम वहन करेंगे।
------श्री महाराजजी।
Remembrance of God is your real property, and forgetfulness of God is the real sorrow.
Grace of Guru is “सदा के लिए” (for FOREVER)...!!!
Once, Shri Maharaji was describing the meaning of the word 'Guru'. He explained ‘Gu’ means Maya (ignorance) and ‘Ru’ means one who destroys it . He then stressed that Guru releases a Soul from Maya 'FOREVER' by using the phrase ‘सदा के लिए’ (meaning FOREVER) 3 or 4 times.
Imagine, Maya has tormented us so much since time immemorial because of our misdeeds. And Guru show souls the right path and on complete surrender releases a Soul from Maya and bestow Divine Love. And These Gifts of His are FOREVER, No more Maya FOREVER, a Soul is blissful FOREVER, is with God FOREVER…Imagine the Grace….!!!
RADHEY-RADHEY.
हाय! सखि, कैसे ह्वै गये श्याम।
जो आधे–पलहूँ नहिं रहि सक, बिनु राधे इक ठाम।
सो ऐसे बेपीर भये कस, वीर! तज्यो ब्रजबाम।
तजि देइहैं पिय प्रीति–रीति अस, होति प्रतीति न नाम।
हौं भल जान न मान सखी यह, चैन कान्ह उर धाम।
होत ‘कृपालु’ कबहुँ उर संशय, हरि हैं आत्माराम।।
भावार्थ:–(श्यामसुन्दर के वियोग में गोपियों का विलाप-)
“हाय सखी! श्यामसुन्दर अब कैसे हो गये हैं? जो किशोरी जी के बिना आधे क्षण में ही बेचैन हो गये थे, वे ऐसे निष्ठुर कैसे हो गये जो किशोरी जी सहित समस्त ब्रजांगनाओं का परित्याग कर दिया? प्रियतम प्रीति की रीति को इस प्रकार त्याग देंगे, यह विश्वास नाम–मात्र को भी नहीं होता। अरी सखी! मैं भली-भाँति जानती हूँ, अतएव यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि श्यामसुन्दर चैन से होंगे”। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि फिर भी कभी–कभी हृदय में यह शंका हो जाती है कि श्यामसुन्दर तो आत्माराम हैं।
(प्रेम रस मदिरा:-विरह-माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
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