Sunday, November 25, 2018


कृष्णमेन मवेहि त्वमात्मानं सर्वदेहिनाम ( भागवत)
उन परमात्मा श्री कृष्ण की आत्मा एकमात्र वृषभानुनंदिनी राधा हैं।
आत्मा तु राधिका तस्य (स्कंद पुराण)
अतएव समस्त #प्राणी #एकमात्र श्रीकृष्ण के दास हैं। ऐसे ही श्री कृष्ण भी #श्रीराधा जी के दास हैं। यद्यपि #सिद्धांततः #राधा_कृष्ण एक ही हैं। #भावार्थ यह कि समस्त #जीवों के #आराध्य राधाकृष्ण ही हैं। यही सबका #लक्ष्य है।
-----तुम्हारा #जगद्गुरु#कृपालु:
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज ने आज तक किसी को मन्त्रदान नहीं दिया।
अमेरिका में एक बहुत बड़े पादरी(POP) ने महाराजजी से प्रश्न किया की आपके कितने लाख शिष्य है ? तो महाराजजी का जवाब सुनकर वो पादरी आश्चर्य चकित हो गये जब श्री महाराजजी ने मुस्कुराते हुये जवाब दिया - एक भी नहीं। उस पादरी ने पुनः प्रश्न किया- आप वर्तमान मूल ओरिजिनल जगद्गुरु हैं और आप का एक भी शिष्य नहीं ? क्या आप कान नहीं फूँकते ? जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज ने उत्तर दिया- नहीं, मैं कान नही फूँकता। बल्कि कान फूँकने वालो की बुराई करता हूँ। इसलिये हमारे खिलाफ हो गये है सारे बाबा लोग की ये खुद भी शिष्य नहीं बनाते न किसी को बनाने देते हैं।
The devotion done with your heart and mind is the main treasure which you earn. Whenever you take God’s name with loving remembrance even once, that is your earning. No one can spoil it. No one can take it away from you.
#JAGADGURU_SHRI_KRIPALU_JI_MAHARAJ.
World only has miseries stored for us, it's not a negative approach! It's very much positive, as continuous thinking of same with "healthy mindset" leads us on the path of true knowledge and finally towards Devotion. Spasmodic happiness are also bad as when they end they leave behind sorrow. So let us realise the futility of this material arena and excel in devotion.
#SHRI_MAHARAJJI.
हम साधकों को सदा यही समझना चाहिए कि हमसे जो अच्छा काम हो रहा है, वह गुरु एवं भगवान की कृपा से ही हो रहा है क्योंकि हम तो अनादिकाल से मायाबद्ध घोर संसारी, घोर निकृष्ट, गंदे आइडियास(ideas) वाले बिलकुल गंदगी से भरे पड़े हैं। हमसे कोई अच्छा काम हो जाये, भगवान के लिए एक आँसू निकल जाय, महापुरुष के लिए एक नाम निकल जाये मुख से, अच्छी भावना पैदा हो जाये उसके प्रति हमारी यह सब उनकी ही कृपा से हुआ ऐसा ही मानना चाहिये। अगर वे सिद्धान्त न बताते , हमको अपना प्यार न देते तो हमारी प्रवर्ति हीक्यों होती, कभी यह न सोचो की हमारा कमाल है, अन्यथा अहंकार पैदा होगा , अहंकार आया की दीनता गयी, दीनता गयी तो भक्ति का महल ढह गया। सारे दोष भर जाएंगे एक सेकंड में इसलिए कोई भी भगवत संबंधी कार्य हो जाये तो उसको यही समझना चाहिये कि गुरु कृपा है, उसी से हो रहा है ताकि अहंकार न होने पाये। अगर गुरु हमको न मिला होता, उसने हमको न समझाया होता ,उसने अपना प्यार दुलार न दिया होता, आत्मीयता न दी होती तो हम ईश्वर की ओर प्रव्रत्त ही न होतें। अत: उन्ही की कृपा से सब अच्छे कार्य हो रहें है ऐसा सदा मान के चलो।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज

Monday, November 5, 2018

अरे मूर्ख मन ! इस परम अन्तरंग तत्वज्ञान को समझ ले। तीन तत्व नित्य हैं – पहला ईश्वर, दूसरा जीव, एवं तीसरा तत्व माया । इनमें माया चिदानन्दमय ईश्वर की जड़ शक्ति है एवं जीव चिदानन्दमय ईश्वर का सनातन दास है, जिसे वेदादिकों में अंश शब्द से विहित किया गया है। जीवात्मा देही है तू उसको देह मान रहा है, बस यही अनादिकालीन तेरा अज्ञान है । जो इस बात को जितना जान लेता है, उतना ही उस पर विश्वास भी कर लेता है, उसके जानने की यही पहिचान है। पुन: जो जितनी मात्रा में उपर्युक्त बात पर विश्वास कर लेता है, उतनी ही मात्रा में अपने आप उसका श्यामसुन्दर के चरणों में अनुराग हो जाता है।‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं :- अरे मन ! अब मनमानी छोड़ दे, एवं मनमोहन में रूपध्यान द्वारा अपने आप को अनुरक्त कर ।
#प्रेम_रस_मदिरा: सिद्धान्त–माधुरी )
---#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
--- सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति।
माधो! मोहिं लूटीं ब्रजनार।
पोथी पत्रा छोरि छारि मम, दियो बनाय लबार।
लै निरुपाधि समाधि बहायो, प्रेम पयोधि मझार।
निर्गुन ध्यान भुलाय, दियो मोहिं, ध्यान सगुन साकार।
छोरि जोग मोहिं भोग सिखायो, तुम सँग नंदकुमार।
जब ‘कृपालु’ लिय लूटि सबै तब, कस न बहे जलधार।।
भावार्थ:– प्रेमरस विभोर उद्धव श्यामसुन्दर से कहते हैं कि ब्रज गोपियों ने मुझे लूट लिया। मेरे ज्ञान सम्बन्धी पोथी पत्रा को छीन कर मुझे लबरा सिद्ध कर दिया। मेरी निरुपाधि समाधि को लेकर प्रेम समुद्र में बहा दिया। मेरे निर्गुण ज्ञान को भुलाकर सगुण साकार भगवान का ध्यान दे दिया। मेरे योग को छीन कर तुम्हारे साथ दिव्य विहार करने की शिक्षा दे दी। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि जब तुम्हारा सर्वस्व लुट गया तब भला आँखों से अश्रुधारा क्यों न निकले।
(प्रेम रस मदिरा:-विरह–माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
भगवान ने दया करके मानव देह दिया और आप लोग जब गर्भ में थे तब वादा किया था की महाराज बहुत दु:ख मिल रहा है माँ के पेट में, गंदगी में, सिर नीचे पैर ऊपर कितना कोमल शरीर, हमको निकालो, आपका ही भजन करेंगे आपको पाने का उपाय खोजेंगे अबकी बार मुझे निकालो । और बाहर आया मम्मी ने कहा ए मेरा भजन कर, पापा ने कहा ए मैं तेरा हूँ । यह सब लोगों ने धोखा देकर बेचारे को बेवकूफ बना दिया, भगवान को दिया हुआ वादा भूल गया और भगवान को छोड़ इन लोगों को भजने लगा । और अगर जागा भी, कोई संत मिल गया और जगा दिया तो कल से करेंगे, अवश्य करेंगे अवश्य । आज जरा काम आ गया कल से करेंगे अवश्य।
तन का भरोसा नहीं गोविंद राधे ।
जाने कब काल तेरा तन छिनवा दे ॥
All Glories to Our Divine Master Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
मान ले उनको तू सिर्फ़ अपना.......सीख़ ले याद में बस तड़पना.........वे लगा लेंगे सीने से तुझको.......वे लगा लेंगे सीने से तुझको.........वे 'कृपालु' हैं, तंगदिल नहीं हैं...........!!
जय श्री राधे।
The true love is unlimited and ever increasing. It is a divine power of God.
On the other hand, material love is merely a temporary attachment of mind which eventually becomes a reason for unhappiness.
Rectify your choices.
भगवान जरा अटपटे स्वभाव के हैं । छिप-छिप कर देखते हैं एवं अब तुम जरा सा असावधान होकर संसारी वस्तु की आसक्ति मे बह जाते हो तब श्यामसुंदर को वेदना होती है कि यह मुझे अपना मान कर भी गलत काम कर रहा है । मन श्यामसुंदर को दे देने के पश्चात ! उसमें संसारिक चाह न लाना चाहिए । यह श्यामसुंदर के लिए कष्टप्रद है ।
जीवन क्षणभंगुर है, अपने जीवन का क्षण-क्षण हरि-गुरु के स्मरण में ही व्यतीत करो, अनावश्यक बातें करके समय बरबाद न करो। कुसंग से बचो, कम से कम लोगों से संबंध रखो, काम जितना जरूरी हो बस उतना बोलो।
गलती न मानने का सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग अपने को बुद्धिमान कहलाना चाहते हैं । किसी को अगर कोई मूर्ख कहे , यह किसी को बर्दाश्त नहीं होता । अगर कोई विवेक पूर्वक सोचे तो सब अल्पज्ञ ही तो हैं । सब लोगों के पास जो बुद्धि है वह काम चलाऊ ही तो है । गुरु ने भी दोष बताया तो उलटा सोचने लगा । यह प्रमुख गलती है । चाहिये तो शिष्य को यह कि अगर कोई दोष बताया जाय तो निरन्तर उसका चिन्तन करे और भविष्य में वह न होने पाये । कोशिश करने पर अवश्य ही दोष कम होते हैं , लेकिन कोशिश कम होती है अतः दोष भी कम ठीक होते हैं। बराबर वाले और बड़ों से व्यवहार करते समय अपनी वाणी पर कन्ट्रोल रखें , जवाब न दें । गुरु के प्रति तो यही सोचना काफी है कि गलती तो हमारी ही होगी ।
गुरु हरि का ही रूप गोविंद राधे।
जानो अरु मानो अरु औरों को जना दे।।
भावार्थ- ‘आचार्य मां विजानीयान्नावमन्येत कर्हिचित्।’ सद्गुरु प्राप्त हो जाने पर ‘गुरु भी हरि का ही रूप है’ स्वयं ऐसा विश्वास हृदय में धारण कर लेना चाहिये एवं दूसरों को भी यह सिद्धांत भली भाँति समझा देना चाहिये जिससे जीव नामापराध से बच सके।
जाने का अर्थ माने गोविंद राधे।
माने का अर्थ क्रिया रूप दे बता दे।।
भावार्थ- जानने का वास्तविक तात्पर्य है मानना एवं मानने का वास्तविक अर्थ ज्ञान को क्रिया रूप में परिणत करना है।
जाना तो अनंत बार गोविंद राधे।
माना नहिं हेतु महापाप बता दे।।
भावार्थ- जीव ने न जाने कितनी बार संत व भगवान् का दर्शन, संग आदि किया पर उन पर विश्वास नहीं किया अत: पाप ही करता रहा।
Without the True #Bhakti, in Millions of lifetimes,the Divine knowledge of '#Brahm' cannot be obtained with any kind of Practice.The practices of #Gyan and #Yog, If done without Bhakti,will only increase 'Hypocritical Vanity' in the heart of the practitioner,Because the 'True knowledge' and the 'True renunciation' are the natural consequences of Bhakti.
हमारी अल्पज्ञता से हमने अपने-अपने आपको नहीं समझा। हमने अपने आपको शरीर समझ लिया और उस शरीर के उपभोग के चक्कर में पड़ गये और संसार के समस्त पदार्थों को इस शरीर रुपी कुण्ड में डाल डालकर के अनन्त जन्म बिता दिये कि आत्मा को आनन्द मिल जायेगा। आत्मा का सब्जेक्ट ही नहीं है क्योंकि आत्मा स्प्रिचुअल है।आध्यात्मिक है, तो आध्यात्मिक मैटर का सब्जेक्ट आध्यात्मिक होगा। जिसका जो अंश होता है उसका वो सब्जेक्ट होता है, ये आँख,कान,नासिका,रसना,त्वचा ये पंचमहाभूत के अंश हैं इसलिए पंचमहाभूत के पदार्थ इनके सब्जेक्ट हैं। आत्मा ईश्वर का अंश है इसलिए ईश्वर आत्मा का सब्जेक्ट है सीधा सीधा।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
ईश्वर सर्वव्यापक है:
कुछ लोग कहते हैं कि घड़ी अपने आप चलती है ऐसे ही सृष्टि भी अपने आप हो जायगी, किन्तु उन्हें सोचना चाहिये कि घड़ी पूर्व में नहीं चलती थी जब किसी ने उसे बनाया तब चलने लगी एवं पश्चात् भी नहीं चलेगी अर्थात् नष्ट हो जायगी, तब फिर बनानी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त यह भी विचारणीय है कि घड़ी बनाने वाले ने घड़ी तो बनायी है किन्तु उस घड़ी के लौह परमाणुओं की क्रिया को घड़ीसाज नहीं जानता अर्थात् उस पर कन्ट्रोल नहीं कर सकता। उसे कन्ट्रोल करने वाला ईश्वर है। अतएव ईश्वर को सर्वव्यापक होना पड़ता है अन्यथा वे परमाणु ठीक रूप से काम नहीं कर सकते।
प्रेम रस सिद्धान्त,
रचयिता- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
संस्करण 2010, अध्याय 1: जीव का चरम लक्ष्य, पृ. 17
भावार्थः- भगवान् संसार की रचना करते हैं, उसका पालन करते हैं और अंत में उसका प्रलय कर देते हैं अर्थात् यह सम्पूर्ण संसार ईश्वर से प्रकट हुआ है, ईश्वर द्वारा इसका पालन किया जाता है और अंत में फिर यह सम्पूर्ण संसार ईश्वर में समा जाता है। संसार का नियामक ईश्वर है। इस संसार के प्रत्येक परमाणु में ईश्वर व्याप्त है, अतः ईश्वर सर्वव्यापक है। सृष्टि का पालन एवं उसकी रक्षा करने के लिये भगवान् संसार के प्रत्येक परमाणु में व्याप्त होते हैं।
वेद का सिद्धांत सर्वोपरि है। यदि भगवान भी वेद के विरुद्ध कोई सिद्धांत सिखाएं तो हम उनकी भी नहीं सुनेंगे। भगवान् को नमस्कार करेंगे लेकिन वेद वाणी के विरुद्ध कोई सिद्धांत ग्रहण नहीं करेंगे। वेद नित्य है, दिव्य है, साक्षात नारायण ही है। किन्तु... वेद का सही सही अर्थ केवल एक सिद्ध महापुरुष ही बता सकता है। मायिक जीव अपने आप वेद पढ़ के नहीं समझ सकते। ऐसा करने से अर्थ का अनर्थ हो जायेगा और यही हो रहा है आज संसार में।
अरे मनुष्यों ! कल से भजूँगा, कल से भजूँगा मत कहो, मत सोचो । क्यों...? अरे! वह जो तुम्हारी खोपड़ी पर सवार है काल, यमराज । क्या पता कल के पहले ही टिकट कट जाये रात ही को । ऐसे रोज उदाहरण हमारे विश्व में हो रहे हैं, कि रात को एक आदमी सोया और सदा को सो गया । न दर्द हुआ, न चिल्लाया, न घर वालों को मालूम हुआ। घर वाले समझ रहे हैं सो रहा है, आज बड़ी देर तक सोता रहा, अरे भई जगा दो । जगाने गये तो मालूम हुआ सदा को सो गया, इसका टिकट कट गया । एक माँ के पेट में ही मर गया,एक पैदा होते ही तुरंत मर गया,एक 25 साल का I.A.S.करके फ्लाइट से घर आ रहा था,सब घर वाले खुश और पता चला रास्ते में ही प्लेन क्रैश में मर गया,बाप ले जा रहा है बेटे को जलाने,पर बाप को होश नहीं है कि मुझको भी जाना है। देख तो रहे हैं हम रोज़ आसपास कि क्या हो रहा है। लेकिन भगवान को याद करने का भजन करने का टाइम किसी के पास नहीं है। Planning बन रही हैं बड़ी-बड़ी,पल का भरोसा नहीं और कोई पंचवर्षीय योजना कोई दस वर्षीय योजना बना रहा है,अरे! बिगड़ी बना लो जिसके लिए ये मानव देह भगवान ने तुमको कृपावश दिया है। ये नाती-पोते,ये बेटा-बेटी कोई तुम्हारे नहीं है जिनमे तुम उलझे हुए हो रात दिन। ये सब तो स्वार्थ आधारित रिश्ते हैं,कोई किसी का नहीं है यहाँ।
इसलिये कल से भजूँगा यह मत कहो, मत सोचो, तुरंत करो... उधार मत करो । उधार करने की आदत हमारी तमाम जन्मों से है और इसलिये हम अनादिकाल से अब तक चौरासी लाख में घूम रहें है एक कारण। अनंत संत मिले समझाया हम समझे लेकिन उधार कर दिया । करेंगे... करेंगे । तन मन धन ये तीन का उपयोग करना था तीनों के लिये हमने उधार कर दिया । करेंगे, बुढ़ापे में कर लेंगे अभी इतनी जल्दी भी क्या है । मन तो और बिगड़ा हुआ है । धन से तो इतना प्यार है कि कोई भी परमार्थ के काम में खर्च करने में भी बुद्धि लगाते हैं - ''करें, कि न करें? कर दो भगवान के निमित्त । अरे! रहने दो... अरे! नहीं कर दो, अरे! नहीं क्यों निकालो जेब से, अरे! चलो अब कर ही देते हैं । नहीं अब कल करेंगे,'' ये हम लोगों का हाल है सोचियेगा अकेले में । यही सब होता है । तो उधार करना बन्द करना है । मानव देह क्यो मिला है,इसपर विचार करो,संभलों और अपनी बिगड़ी अभी भी बना लो,नहीं तो करोड़ों वर्षों तक यूँ ही 84 लाख में भटकते रहोगे। ये अवसर भी हाथ से चूक जाएगा। संसार में व्यवहार करो,मन भगवान को दे दो। अभी से भजन करो,भक्ति करो,संसार से मन हटाओ,भगवान में लगाओ। उधार करना बंद करो।
SHRI MAHARAJJI'S PERSONALITY IS THE FORM OF ABSOLUTE DIVINE LOVE THAT HAS DESCENDED ON THE EARTH PLANET TO GRACE THE SOULS WITH RADHAKRISHNA LOVE,THE 'VRINDAVAN BLISS'.THE SURPASSING MAGNITUDE OF HIS GRACIOUSNESS TRULY QUALIFIES HIS 'KRIPALU' NAME,WHICH MEANS 'THE DESCENSION OF THE POWER OF ABSOLUTE GRACE.