Sunday, April 29, 2018

अनेक प्रकार के दुःख भोगते किसी प्रकार हमने करवट बदलना सीखा,फिर बैठना सीखा। फिर खड़े होना सीखा। बार-बार गिरे, रोये, कष्ट हुआ गिरने में,लेकिन अभ्यास करते-करते चलने लगे।
लेकिन फिर दुःख ही दुःख।
इधर से बाप की डाँट , माँ की डाँट, भाई की डाँट,सब बड़े-बड़े लोग डाँटते जा रहे हैं।
कहाँ जा रहा है? क्या मुँह में डाल लिया? बदतमीज़।
और मुझको अक्ल तो थी नहीं कुछ, क्या करूँ?
भूख लगी थी, सामने एक लकड़ी पड़ी थी,उठाया और मुँह में डाल लिया।
लो, उसकी भी डाँट पड़ गई।
और कोई-कोई माँएँ तो खूब पिटाई करती हैं,
छोटे-से बच्चे की भी। रो दिये, क्या करें?
और बड़े हुये, स्कूल जाओ! और लो मुसीबत।अभी तक तो खेलते थे,कुछ मनोविनोद हो जाया करता था।
अब मम्मी-डैडी डंडा दिखा रहे हैं, स्कूल जा।
गये।वहाँ मास्टर बैठा है हौआ।
वो रुआब दिखाता है, डाँटता है,ऐ! क्या कर रहा है, ठीक से बैठो। अरे, मैं ठीक से बैठूँ, कितनी देर बैठूँ ठीक से?
घर में तो उछल-कूद करता था लगातार और यहाँ घंटों, दो घंटे, चार घंटे बैठे रहो।
ये आधीनता कितना कष्ट देती है। वो भी सहा।
अब परीक्षा आई। ओह! धुक-धुक, कहीं फ़ैल न हो जायें।।पास हुये, फिर आगे की पढ़ाई की चिन्ता।
इसी में हमारी चौबीस-पच्चीस साल की उम्र
समाप्त हो गई। उसके बाद मेम साहब आई।
और मुसीबत खड़ी हुई। उनका डर, बार-बार...
कहाँ गये थे? अरे, कहीं थे, तुमसे क्या मतलब?
मतलब कैसे नहीं है?
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
DON'T MISS FACEBOOK LIVE BROADCAST:
Divine Sankirtan by Sushri Shreedhari Didi (Preacher of Jagadguruttam Shri Kripalu Ji Maharaj) on Monday 30th April, 2018.TIME: 5.00 P.M. to 7.30 P.M.
This Satsang Program will be Broadcast 'Live on Facebook'' for all Devotees around the Globe on my Timeline (https://www.facebook.com/sharadgupta1008 ) and in your favourite Group (https://www.facebook.com/groups/361497357281832/ ) & also on your favourite Pages ( https://www.facebook.com/ShreedhariDidi/ ) & ( https://www.facebook.com/radhakripalu/ ) respectively.
Live Satsang Video will also be Shared to other Groups and Pages Managed by Us .DON'T MISS THIS GOLDEN OPPORTUNITY.
Jai Shri Radhey.
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा दिव्य रसमय संकीर्तन का FaceBook पर सीधा प्रसारण दिनाँक 30अप्रैल, 2018 (सोमवार) को साँय 5 बजे से 7.30 बजे तक किया जायेगा। इस सत्संग कार्यक्रम का आनंद आप घर बैठे ही मेरी Timeline पर ( https://www.facebook.com/sharadgupta1008 ) एवं श्री महाराजजी के दिव्य ज्ञान के प्रचार के लिये बनाये गए आपके अपने सबसे बड़े एवं प्रिय ग्रुप (https://www.facebook.com/groups/361497357281832/ ) एवं साथ ही आपके अपने प्रिय Pages ( https://www.facebook.com/ShreedhariDidi/ ) & (https://www.facebook.com/radhakripalu/ ) में 'FaceBook Live'(सीधे प्रसारण) के माध्यम से ले सकते हैं। हमारे द्वारा संचालित अन्य ग्रुप्स/Pages में भी ये Live Video शेयर किया जायेगा। अतः आप सभी से निवेदन है कि इस स्वर्णिम अवसर का लाभ अवश्य उठायें।
जय श्री राधे।
यदि आपके पास श्रद्धा रूपी पात्र है तो शीघ्र लेकर आइये और पात्रानुसार कृपालु महाप्रभु रूपी जलनिधि से भक्ति-जल भर-भरकर ले जाइए। स्वयं तृप्त होइये और अन्य की पिपासा को भी शांत कीजिये ।
यदि श्रद्धा रूपी पात्र भी नहीं है तो अपने परम जिज्ञासा रूपी पात्र से ही उस कृपालु-पयोधि का रसपान कर आनंदित हो जाइये ।
यदि जिज्ञासा भी नहीं है तो भी निराश न हों । केवल कृपालु-महोदधि के तट पर आकार बैठ जाइये, वह स्वयं अपनी उत्तुंग तरंगों से आपको सराबोर कर देगा । उससे आपमें जिज्ञासा का सृजन भी होगा, श्रद्धा भी उत्पन्न होगी और अन्तःकरण की शुद्धि भी होगी । तब उस शुद्ध अन्तःकरण रूपी पात्र में वह प्रेमदान भी कर देगा ।
और यदि उस कृपासागर के तट तक पहुँचने की भी आपकी परिस्थिति नहीं है तो आप उन कृपासिंधु को ही अपने ह्रदय प्रांगण में बिठा लीजिये । केवल उन्हीं का चिंतन, मनन और निदिध्यासन कीजिये । बस! आप जहां जाना चाहते हैं, पहुँच जाएँगे, जो पाना चाहते हैं पा जाएँगे ।
।। कृपानिधान श्रीमद सद्गुरु सरकार की जय ।।
जो जिस भाव से जितनी मात्रा में शरणागत होता है बस मैं उसको उतनी ही मात्रा में अपनापन , प्यार , कृपा , स्प्रिचुअल पावर देता हूँ। पूरा चाहते हो तो पूरी शरणागति , अधूरा चाहते हो तो अधूरी शरणागति कर लो। बिल्कुल नहीं चाहते तो शरीर को पटकते जाओ, मन संसार में आसक्त रहे , ऐसा कर लो। तुम्हें जो फल चाहिये वैसा ही कर्म करो।
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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तेरी मेहरबानी का है बोझ इतना कि मैं तो उठाने के क़ाबिल नहीं हूँ।
My Lord, You have bestowed so much grace on me,that I am unable to lift this heavy load.
मैं आ तो गया हूँ ,मगर जानता हूँ कि तेरे दर पे आने के क़ाबिल नहीं हूँ।
I have come to You fully knowing that I am not worthy of coming to You.
जमाने की चाहत में खुद को भुलाया ,तेरा नाम हरगिज़ जुबां पर न लाया।
My strong desire for the world made me forget myself and my lips never uttered Your name.
ख़तावार हूँ मैं,गुनाहगार हूँ मैं,तुम्हें मुँह दिखाने के काबिल नहीं हूँ।
I am an offender and sinner;I am not worthy of showing my face to You.
तुम्हीं ने अदा की मुझे ज़िंदगानी ,मगर तेरी महिमा मैंने न जानी।
You gave me life, but I did not glorify You in life.
कर्ज़दार तेरी दया का हूँ इतना कि क़र्ज़ा चुकाने के क़ाबिल नहीं हूँ।
I am so indebted to you for Your grace,that I am unable to repay my debt.
ये माना कि दाता है तू कुल जहाँ का,मगर झोली आगे फैलाऊँ मैं कैसे?
I know You are the supreme Provider,yet how can I ask You for anything?
जो पहले दिया है वो भी कुछ कम नहीं है,उसी को निभाने के क़ाबिल नहीं हूँ।
What you have given me already,I am not able to contain.
तमन्ना यही है कि सर को झुका दूँ।तेरा दीद एक बार दिल में मैं पा लूँ।
My only desire now is to bow my head and see You in my heart.
सिवा दिल के टुकड़ों के ऐ मेरे दाता,कुछ भी चढ़ाने के क़ाबिल नहीं हूँ।।
Oh, my Lord! Except for my heart,I have nothing to offer You.
****RADHEY-RADHEY****

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Saturday, April 14, 2018

हे श्यामसुन्दर ! संसार में भटकते - भटकते थक गया। हे करुणा वरुणालय ! तुमने अकारण करुणा के परिणामस्वरूप मानव देह दिया , गुरु के द्वारा तत्वज्ञान कराया कि किसी तरह तुम्हारे सम्मुख हो जाऊँ तथा अनन्त दिव्यानन्द प्राप्त करके सदा-सदा के लिए मेरी दुःख निवृति हो जाए लेकिन यह मन इतना हठी है कि तुम्हरे शरणागत नहीं होता।
--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
हे! दया के सागर। अब मेरी और निहारों और फ़िर जो उचित हो करो,यदि मेरी कमी के कारण मुझे आप नहीं मिल रहे हो तो,फ़िर कमी को इसी क्षण मिटा दो।
-----जगदगुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज।
सारा संसार मायाजनित अज्ञान के द्वारा अन्धा हो रहा है परन्तु अपने को कोई भी अज्ञानी नहीं समझता सभी ज्ञानी समझते हैं।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
संसार के कार्य करते हुए भी बीच-बीच में बारंबार 'भगवान मेरे सामने हैं' इस प्रकार रूपध्यान द्वारा निश्चय करते रहना चाहिये। इससे दो लाभ हैं - एक तो रूपध्यान परिपक्व होगा, दूसरे हम, भगवान को अपने समक्ष, साक्षात रूप से महसूस करते हुए उच्छृंक्ल न हो सकेंगे, जिसके परिणाम स्वरूप अपराधों से बचे रहेंगे। जीव तो, किंचित भी स्वतंत्र हुआ कि बस, वह धारा-प्रवाह रूप से संसार की ही ओर भागने लगेगा।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
जगद्गुरूत्तम वंदना.....!!!
वेदों शास्त्रों, पुराणों, गीता,भागवत ,रामायण तथा अन्यानय धर्मग्रन्थों के शाश्वत अलौकिक ज्ञान के संवाहक तुमको कोटि-कोटि प्रणाम। जन-जन तक यह ज्ञान पहुँचाकर दैहिक ,दैविक,भौतिक तापों से तप्त कलियुगी जीवों के लिए तुमने महान उपकार किया है जो सरलतम,सरस,सार्वत्रिक ,सार्वभौमिक,भक्तियोग प्राधान्य मार्ग तुमने प्रतिपादित किया है,वह विश्व शांति का सर्व-सुगम साधन है,असीम शाश्वत आनंद का मार्ग है। सभी धर्मानुयायीयों को मान्य है।
हे जगद्गुरूत्तम! तुमको कोटि-कोटि प्रणाम। कोटि-कोटि प्रणाम।
तुम्हारे असंख्य प्रवचन , तुम्हारे द्वारा श्री श्यामा श्याम का गुणगान, तुम्हारे द्वारा रचित ग्रंथ,तुम्हारे द्वारा निर्मितस्मारक, 'भक्ति मंदिर','प्रेम मंदिर', तुम्हारे ही अनेक रूप हैं,इस सत्य का साक्षात्कार करा दो। हमारी इस पुकार को सुनकर अनसुना न करने वाले 'पतित पुकार सुनत ही धावत' का पालन करने वाले शीघ्रातिशीघ्र आकर थाम लो। भवसिंधु में डूबने से बचा लो। मगरमच्छ,घड़ियाल की तरह काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद मात्सर्य हमें निगलने के लिए हमारी और बढ़े आ रहे हैं। कहीं तुम्हारा सारा परिश्रम व्यर्थ न चला जाये अत: आकार हमे बचा लो।
भक्तों के आंसुओं से शीघ्र प्रसन्न होने वाले भक्तवत्सल सद्गुरु देव तुमको कोटि-कोटि प्रणाम।
हे हमारे जीवन धन! हमारे प्राण! हमारे पथ प्रदर्शक ! हमारे इस विश्वास को दृढ़ कर दो कि तुम सदा सर्वत्र हमारे साथ हो,हमारे साथ ही चल रहे हो,खा रहे हो,बोल रहे हो,हँस रहे हो,खेल रहे हो,हर क्रिया में तुम्हारी ही उपस्थिती का अनुभव हो। तुम्हारा नाम लेकर तुम्हें पुकारें,और तुम सामने आ जाओ। नाम में नामी विध्यमान है इस सिद्धान्त को हमारे मस्तिक्ष में बारंबार भरने वाले! अब इसे क्रियात्मक रूप में हमें अनुभव करवा दो।
हे दयानिधान! नाम में प्रकट होकर कृपा करने वाले कृपालु!
तुमको कोटि-कोटि प्रणाम।
हे जगद्गुरूत्तम! भगवती नन्दन!
तुम्हारी महिमा का गुणगान सहस्त्रों मुखों से भी असंभव है। तुम्हारी वंदना में क्या लिखें कोई भी लौकिक शब्द तुम्हारी स्तुति के योग्य नहीं है।
बस तुम्हारा 'भक्तियोग तत्त्वदर्शन ' युगों-युगों तक जीवों का मार्गदर्शन करता रहेगा।
तुम्हारे श्री चरणों में यही प्रार्थना है कि जो ज्ञान तुमने प्रदान किया उसको हम संजोये रहे और तुम्हारे द्वारा बताये गये आध्यात्मिक ख़जाने की रक्षा करते हुएतुम्हारे बताए हुए मार्ग पर चल सकें।
धर्म,संस्कृति ,ज्ञान,भक्ति के जीवंत स्वरूप हे जगद्गुरूत्तम ! तुमको कोटि-कोटि प्रणाम। कोटि-कोटि प्रणाम।
साधक के जीवन में मुख्य चीज एटमास्फ़ियर है।
साधक कुछ प्रयत्न करके ही आगे बढ़ता है,फ़िर प्रयत्न में ढिलाई कर देता है।
इससे व्यवधान आ जाता है जिससे साधक आगे नहीं बढ़ पाता।
जिन्दा तो वह रहता है किन्तु आगे बढ़ने की शक्ति उपार्जित नहीं कर पाता।
जैसे बीज पर पानी डाला और बंद कर दिया, जब सूखने लगा तो थोडा पानी फ़िर डाल दिया।
इससे वह सूखा तो नहीं लेकिन बढ़ा भी नहीं।
अतः निरन्तर और अटूट प्रयत्न की आवश्यकता है।
उसी का महत्त्व है।
--- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
जीवन क्षणभंगुर है, अपने जीवन का क्षण क्षण हरि-गुरु के स्मरण में ही व्यतीत करो, अनावश्यक बातें करके समय बरबाद न करो। कुसंग से बचो, कम से कम लोगो से संबंध रखो, काम जितना जरूरी हो बस उतना बोलो।
-----जगदगुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज।

श्रीकृष्ण के अवतार के जितने भी कारण शास्त्रों में बताये गए हैं। वे सब ठीक ही हैं। किन्तु प्रमुख कारण जीवों पर अकारण कृपा करना ही है।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
प्रश्न : जो संत या भगवान की निंदा करे ,उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?
उत्तर : श्रीमहाराजजी द्वारा:- जिससे तुम्हारा 24 घंटे का साथ है,उसकी बात सुनकर तो हँस कर उसकी बात सुनलों ,वह खिसिया कर चुप हो जायेगा। जिससे कभी-कभी का संबंध है,उसको झिड़क दो ,उससे संबंध खत्म कर दो, हर जगह अलग-अलग व्यवहार करना पड़ेगा ।