Sunday, May 28, 2017

The stronger your decision that God alone is mine, the more intense will be your desire to meet Him. The more intense your desire, the deeper will be your resolve to do the things that take you closer to Him. The deeper your resolve, the harder you will try. The harder you try, the more grace you will attract and the closer you will come to Him.
.....SHRI MAHARAJJI.

हे प्राणेश्वर ! कुंजबिहारी श्रीकृष्ण ! तुम ही मेरे जीवन सर्वस्व हो । हमारा – तुम्हारा यह सम्बन्ध सदा से है एवं सदा रहेगा ( अज्ञानतावश मैं इस सम्बन्ध को भूल गयी ) । तुम चाहे मेरा आलिंगन करके मुझे अपने गले से लगाते हुए, मेरी अनादि काल की इच्छा पूर्ण करो, चाहे उदासीन बनकर मुझे तड़पाते रहो, चाहे पैरों से ठोकर मार – मारकर मेरा सर्वथा परित्याग कर दो। प्राणेश्वर ! तुम्हें जिस – जिस प्रकार से भी सुख मिले, वही करो मैं तुम्हारी हर इच्छा में प्रसन्न रहूंगी । ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि निष्काम प्रेम का स्वरूप ही यही है कि अपनी इच्छाओं को न देखते हुए, प्रियतम की प्रसन्नता में ही प्रसन्न रहा जाय । अपने स्वार्थ के लिए प्रियतम से बदला पाने की भावना से प्रेम करना व्यवहार जगत का नाटकीय व्यापार – सा ही है।
--- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
भगवान् संसार में सर्वत्र व्याप्त है," हरि व्यापक सर्वत्र समाना "
लेकिन न हमें भगवान् दिखाई देता है, न उसके शब्द सुनाई देते हैं, अर्थात् हमें संसार में भगवान् का किसी भी प्रकार का अनुभव नहीं होता। हमारी इन्द्रियाँ अर्थात् आँख, कान, नाक, त्वचा, रसना, हमारा मन और हमारी बुद्धि ये सब मायिक हैं और इन्हीं इन्द्रिय, मन, बुद्धि द्वारा हम संसार की प्रत्येक वस्तु का अनुभव करते हैं, लेकिन भगवान् माया से परे दिव्य है, उसे इन इन्द्रिय, मन, बुद्धि द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता। भगवान् जब हमारी इन्द्रिय, मन, बुद्धि को शक्ति प्रदान करते हैं, तब ये सब अपना-अपना कर्म करते हैं, अन्यथा तो ये सब जड़ हैं, अतः माया से बने इन्द्रिय, मन, बुद्धि के द्वारा दिव्य भगवान् का अनुभव होना असम्भव है। जब इन्द्रिय, मन, बुद्धि दिव्य हो जायेंगे, तभी संसार में सर्वत्र व्याप्त भगवान् का अनुभव किया जा सकता है, जैसे गोपियाँ सर्वत्र श्रीकृष्ण का दर्शन करती थीं- जित देखूँ तित श्याममयी है।
-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।

"हे श्यामसुंदर! संसार में भटकते भटकते थक गया। हे करुणा वरूनालय! तुमने अकारण करुणा के परिणाम स्वरूप मानव देह दिया ,गुरु के द्वारा तत्वज्ञान कराया कि किसी तरह तुम्हारे सन्मुख हो जाऊँ तथा अनंत दिव्यानन्द प्राप्त करके सदा सदा के लिए मेरी दुख निव्रत्ति हो जाये लेकिन यह मन इतना हठी है कि तुम्हारे शरणागत नहीं होता।"
--- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Saturday, May 13, 2017

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सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा 15 दिवसीय विलक्षण दार्शनिक प्रवचन श्रृंखला के सांतवें दिन के प्रवचन का सीधा प्रसारण। Date: 13th May 2017.

प्रिय मित्रों...!!! जय श्री राधे।
Facebook पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त दिव्य तत्त्वज्ञान के प्रचार-प्रसार हेतु बनाये गये आपके अपने सबसे प्रिय ग्रुप में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा विलक्षण दार्शनिक प्रवचन एवं दिव्य रसमय संकीर्तन का सीधा प्रसारण देख रहे आप सभी श्री हरिगुरु चरणानुरागी सहृदय भक्तों का हार्दिक स्वागत है।
सत्संग प्रेमी महानुभाव !
इस विकराल कलिकाल में अनेक अज्ञानी असंतो द्वारा ईश्वरप्राप्ति के अनेक मनगढ़ंत मार्गों, अनेकानेक साधनाओं का निरूपण सुनकर भोले भाले मनुष्य कोरे कर्मकाण्डादि में प्रवृत्त होकर भ्रान्त हो रहे हैं एवं अपने परम चरम लक्ष्य से और दूर होते जा रहे हैं।
ऐसे में विविध दर्शनों के विमर्श से अनिश्चय के कारण, व्याकुल एवं भटके हुये भवरोगियों के लिए पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन अमृत औषधि के समान हैं।
अपने सद्गुरुदेव के कृपा प्रसाद से ही उनकी विदुषी प्रचारिका सुश्री श्रीधरी जी उनके समस्त शास्त्रों, वेदों एवं अन्यान्य धर्मग्रन्थों के सार स्वरूप विलक्षण दार्शनिक सिद्धान्त "कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन" को अपने ओजस्वी धारावाहिक प्रवचनों के माध्यम से जन-जन में प्रचारित करते हुये जीवों को श्री राधाकृष्ण की निष्काम भक्ति की ओर प्रेरित कर रही हैं।
इसी श्रंखला में उनके 15 दिवसीय दिव्य प्रवचन का आयोजन सिद्धेश्वर महादेव मंदिर ,सिंह भूमि -सी ,खातीपुरा , जयपुर में किया गया है। इस प्रवचन श्रंखला का समय दिनाँक 7 मई से 21 मई तक प्रतिदिन सायं 7:00 से 8:30 बजे तक रहेगा।
इस युग के परमाचार्य जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित अद्वितीय संकीर्तन भक्त हृदय के लिए संजीवनी बूटी के समान हैं। उन्हीं अनुपमेय संकीर्तनों के माध्यम से वे प्रवचन के साथ ही कर्मयोग की क्रियात्मक साधना का अभ्यास भी करायेंगी।
अतएव यह एक ऐसा दुर्लभ अवसर है जो आपकी आत्मा को तृप्ति प्रदान करेगा। वेद-शास्त्र सम्मत सार्वभौमिक सिद्धान्त ज्ञान के साथ ही कलि के सर्वश्रेष्ठ धर्म संकीर्तन द्वारा भक्तजन ब्रजरस का भी आस्वादन कर सकेंगे।
सुश्री श्रीधरी जी के संस्कृत उच्चारण की बड़े से बड़े विद्वान भी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते। गुरु कृपा से समस्त वेद-शास्त्रों के गूढ़तम सिद्धांतों को भी सरल सरस रूप में प्रस्तुत करना इनके प्रवचन की विशेषता है। इनके दिव्य ज्ञान से युक्त प्रवचन सभी आध्यात्मिक शंकाओं एवं समस्त धर्मग्रन्थों व आचार्यों के सिद्धांतों में परस्पर पाये जाने वाले विरोधाभासों का समन्वय करते हुये भगवत्प्राप्ति का अत्यंत सीधा सरल मार्ग प्रशस्त करते हैं।
वे इस धारावाहिक प्रवचन श्रंखला में समस्त शास्त्रीय प्रमाणों, तर्कों एवं दैनिक उदाहरणों द्वारा जीव का स्वरूप एवं लक्ष्य, भगवान से जीव का संबंध, मानव देह का महत्व एवं क्षणभंगुरता, भगवत्कृपा, शरणागति, वैराग्य एवं संसार का स्वरूप, गुरुतत्व, रूपध्यान, कर्मयोग, ज्ञानयोग इत्यादि विषयों पर प्रकाश डालते हुये भक्तियोग की उपादेयता सिद्ध करके शीघ्रातिशीघ्र लक्ष्य दिलाने वाली साधना का निरूपण करेंगी।
वे कठिन से कठिन विषयों की व्याख्या भी इतनी सरलता से करती हैं कि एक भोले भाले अंगूठा छाप को भी समझने में कठिनाई नहीं होती। इनका प्रवचन वेद, गीता, रामायण, भागवत, बाइबिल, कुरान आदि समस्त धर्मग्रन्थों के प्रमाणों से युक्त होता है।
"कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन" पर आधारित इनके रसमयी प्रवचन एवं मधुर संकीर्तन जिज्ञासुओं के जीवन को, उनकी विचारधारा को पूर्ण सात्विक एवं भगवदमयी बना देते हैं।
यह देव दुर्लभ मानव देह सद्गुरु की शरणागति में भगवत्प्राप्ति के लिए ही भगवान ने अपनी अकारण करुणा से हमें प्रदान किया है लेकिन परलोक में सद्गति प्राप्त करने के लिए हमने अब तक कोई तैयारी नहीं की। हमारे हठी एवं अहंकारी मन ने जीवन की इस गोधूलि बेला में भी भीषण तम परिपूर्ण पथ पर चलते हुए कभी उस और दृष्टिपात नहीं किया जहां दिव्य ज्ञान ,दिव्य प्रेम एवं दिव्य आनंद की वर्षा हो रही है। वेदों के अनुसार केवल वास्तविक गुरु के पावन सानिध्य एवं शरणागति से ही जीव का अज्ञान अंधकार समाप्त हो सकेगा एवं जीव भगवतप्राप्ति की और अग्रसर हो सकेगा। इसी तथ्य को मस्तिक्ष में रखते हुए ही इस प्रवचन का आयोजन किया गया है। ये दिव्य प्रवचन श्रवण एक ऐसा दुर्लभ अवसर है जो आपकी आत्मा को तृप्ति प्रदान करेगा। इस प्रवचन का प्रारूप किसी भी प्रकार के आडंबर से रहित है।
वेद कहता है :- "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत"
अरे मनुष्यों ! उठो, जागो और शीघ्र ही महापुरुषों की शरण में जाकर परतत्व का ज्ञान प्राप्त कर अपने परम चरम लक्ष्य आनंद को प्राप्त करो। पता नहीं इस क्षणभंगुर जीवन का अगला क्षण तुमको मिले न मिले, इसलिए देर न करो।

नोट: इस सत्संग कार्यक्रम का सीधा प्रसारण Facebook Live Broadcast के माध्यम से आपके अपने इसी सबसे प्रिय Facebook ग्रुप (https://www.facebook.com/groups/361497357281832/) में किया जा रहा है। एवं साथ-साथ ही जो भी हमारे द्वारा संचालित अन्य FbGroups/Fb Pages/Twitter/GooglePlus Account/Instagram/एवं हमारे Profiles हैं उनपर भी सभी जग़ह Share किया गया है। इस स्वर्णिम अवसर का लाभ अवश्य उठायें। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के दिव्य सिद्धांत को स्वयं भी बारंबार सुनिये,औरों को भी सुनाइये,ख़ुद भी जुड़िये औरों को भी जोड़िये। इस सेवा में सभी का कल्याण निहित है।
आप सभी सीधा प्रसारण देखने वाले साधकों से निवेदन है कि कृपया धैर्यपूर्वक आदि से अंत तक पूरा कार्यक्रम देखें एवं लाभ लें। एवं इस Video को अधिक से अधिक अपने मित्रों के एवं स्वयं के Profiles पर Share करें। Technically डेढ़ से दो घंटे का Live Video कभी-कभी एक ही बार में सीधा प्रसारित करना संभव नहीं हो पाता है इसलिए वीडियो दो से तीन भागों में भी प्रसारित किया जा सकता है,इससे आपको बस एक दो मिनट का Disturbance हो सकता है,एक या दो Minute का Matter miss हो सकता है,बाकि तो आप सभी Parts(भाग) देखेंगे तो प्रवचन का Continuation में ही लाभ ले सकेंगे। ये Video आप बाद में भी अपनी सुविधानुसार देख सकते हैं क्योंकि ये Save रहता है। इसलिए जिसकी जैसी सुविधा हो वो अवश्य लाभ ले। अब तक के 6 दिनों के प्रवचन भी आप ग्रुप में देख सकते हैं। इस स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाइए एवं अपनी समस्त आध्यात्मिक शंकाओं का निवारण कीजिये।

जय श्री राधे।
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Saturday, May 6, 2017

मेरे प्रिय साधक!
भगवान एवं गुरु सदा सर्वदा हैं ऐसा ही मानो। लीला संवरण की बात कभी न सोचो।
मैं सदा शरणागत के पास रहूँगा।

'कृपालु'
मैं सदा तुम्हारा हूँ..........!!!
मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ। ऐसा कभी न सोचो। मैं सदा शरणागत के पास रहूँगा।
गुरु हमारे अत्यंत निकट हैं,दिन रात हमारे साथ रहते हैं । उनका वियोग कभी होता ही नहीं। नरक में भी वे हमारे साथ रहते हैं और बैकुंठ में भी वे हमारे साथ रहते हैं। वे हमारा साथ छोड़ देंगे ऐसा कभी नहीं समझना चाहिए। समझना ही नहीं --- अनुभव करना चाहिए।
हरि-गुरु को सदा साथ मानो इससे कामादि दोष जायेंगे। इष्टदेव एवं गुरु को सदा सर्वत्र अपने साथ निरीक्षक एवं संरक्षक के रूप में मानना है। कभी भी स्वयं को अकेले नहीं मानना है।

भवदीय:
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
आपकी जितनी आयु शेष है, यदि उसका एक-एक श्वास आपने भगवान् काे साैंप दिया ताे सारे पाप-तापों से मुक्त हाेकर आप इसी जन्म में भगवान काे पाकर अनन्त जीवन की साध पूरी कर सकते हैं। आशा है,आप मेरी प्रार्थना पर ध्यान देंगे।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
JAGADGURU SHREE KRIPALUJI MAHARAJ............!!!
Fact file.....!
Birth. He was born in the year 1922, on the auspicious night of Sharad Poornima, in the village Mangarh, near Allahabad.
Childhood and youth: He spent his childhood excelling effortlessly in his studies. Then at the age of fourteen, he left his village and attended three Universities—Delhi University, Kolkata University, and Banaras Hindu University.
Divine Samadhi: At a young age, he suddenly gave up his studies and entered the dense forests of Chitrakoot. There he spent his time absorbed in intense of love for Radha Krishna.
Often he would lose all external consciousness, and go without eating and drinking for many days at a stretch. For long intervals, he would remain in mahabhav, the highest stage of devotion that manifests in Radharani.
These symptoms of mahabhav love had also had also manifested in Chaitanya Mahaprabhu, 500 years ago. He emerged from the forest after two years to begin his mission of revealing the glories of Radha Krishna devotion to the world.
Kirtan movement: He then started conducting satsanghs that brought about a flood of bhakti in the states of UP and Rajasthan in the 1940s and 50s. He would lead kirtans imbued with intense devotion, which would continue throughout the night. These kirtans, which he wrote himself, have been compared by scholars with those of Meerabai, Soordas, Tulsidas, and Ras Khan.
Devotional literature: Kripaluji Maharaj has written thousands of verses revealing the Divine pastimes of Radha Krishna. His style of writing is unique: he begins the chanting of a pada or kirtan, and then keeps adding lines to it, as it goes along. Some of his famous books are Prem Ras Madira, Prem Ras Siddhant, Radha Govind Geet, Bhakti Shatak, etc. on which numerous Ph.D.s have been awarded.
Fifth Original Jagadguru: In January 1957, Shree Kripalu ji Maharaj gave a profound series of lectures at the invitation of the Kashi Vidvat Parishad, a body of 500 of the topmost Vedic scholars of India.
With profound admiration, the scholars accepted that his knowledge was deeper than the combined knowledge of all 500 of them put together. They unanimously acclaimed him as Jagadguru.
Significance of Jagadguru: The title of Jagadguru is conferred on personalities who are able to reconcile the entire gamut of spiritual scriptures and provide the decisive conclusion. In the past, such capabilities were recognized by spiritual masters of the era only in four other personalities: Jagadguru Shankaracharya, Jagadguru Nimbarkacharya, Jagadguru Ramanujacharya, Jagadguru Madhvacharya.
Scriptural Discourses: After accepting the title of Jagadguru, Kripaluji Maharaj travelled throughout the country for fourteen years.
He would deliver month-long discourses in each city, in which he would unravel the mysteries of the scriptures before the public. Tens of thousands of people would throng to these discourses, and listen spellbound while he tantalized them with humour, worldly examples, practical instructions, and chastisement.
It was a unique experience as he made the deepest scriptural truths accessible to everyone in the simplest language.
His lectures are broadcast on many important TV channels in India and abroad, and are viewed with great faith and reverence by crores of spiritual seekers around the world.
Authentic Quotation-Laden Discourse Style: people are amazed by his discourses that are profusely laden with quotations from all the Vedas, Upanishads, Puranas, Mahabharat, Ramayan, Bhagavat Gita, etc, with their exact numbers.
Worldwide mission: To enable the worldwide spread of his teachings, Kripaluji Maharaj began training sanyasi preachers and sending them to different parts of the globe. He also created a formal organization and began the construction of huge ashrams, to provide facilities for devotees who wished to practically apply the teachings in their lives. This organization is today known as the Jagadguru Kripalu Parishat.
Charitable Activities: The worldwide mission he has established is running many charitable schools, colleges, hospitals, and philanthropic activities in the service of humankind.
कब मिलिहौ नंद कुमार, तुम मातु पिता भरतार ।
यह कह तेरी श्रुति चार, अब सुन लो मोर पुकार ॥
तव अगनित जन सरकार, हमरे इक तुम आधार ।
दुख पाये विविध प्रकार, अब सुन लो मोर पुकार ॥
लख चौरासी तनु धार, जनमेउ जग बारंबार ।
रह देखत तुम सरकार, अब सुन लो मोर पुकार ॥
तव माया तो सरकार, बहिरंगा शक्ति तिहार ।
सब जगिहं नचावन हार, अब सुन लो मोर पुकार ॥
माया तव बल सरकार, ब्रम्हादि नचावन हार ।
का शक्ति 'कृपालु' हमार, अब सुन लो मोर पुकार ॥
(युगल शतक)
A devotee humbly asks Shree Krishna, “ O Nandakimar Krishna, when will I meet you? All the four Vedas tell that You are my mother, father and Beloved. When will that day come when I will see You? Please listen to my humble cry.
O Shree Krishna, You have uncountable Divine associates but You alone are my only refuge. I have suffered all kinds of pain in this world. Please listen to my cry.
You have been quietly watching me taking birth after birth in this world in unncountable species. Now at least listen to my cry.
Your maya is bahiranga shakti (lifeless, external and amazing power). All the souls and gods and goddesses dance to its tune. Please listen to my humble cry for You.
Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj says in the words of a devotee-O shree Krishna, maya is Your personal power. What can a soul do when even Bramha and other great gods remain under its influence? So, O my beloved Krishna, please listen to my humble cry (and Grace me with Your love).”

--------JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
संत पाकर भी यदि जीवन भगवन्मय नही बन रहा है तो दो ही बाते हो सकती हैं , या तो आप जिसको संत मानते है वो संत ही नही है या आप भगवत्क्षेत्र में जाना ही नही चाहते (पूरी लगन के साथ) ।
यूँ समझिए या तो पारस नकली है या हमने आज तक उसका (मन-बुध्दि से पूर्ण समर्पणयुक्त) सही से स्पर्श ही नही किया ।
संत को पाकर भी हम उसका मूल्य नही समझ पाते है तथा अधिकांश लोग इसीलिए चूक जाते है, यदा-कदा जो कुछ महत्व समझते भी है वे लोग लापरवाही/टालमटोल (फिर कर लेंगे, बुढ़ापे में तो करना ही है आदि) करके सब गुड़-गोबर कर लेते हैं ।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ।
God possesses innumerable mutual contradictions within Him. He is bigger than the biggest, yet smaller than the smallest. He is without name and form, but also with name and form. He is farther than the farthest, yet nearer than the nearest. God does not take birth, yet takes birth innumerable times. For all these reasons and more, it is impossible to know God with material senses, mind and intellect.
----- JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
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कभी कभी लोग हमसे कहते हैं कि महाराजजी हमारा बड़ा दुर्भाग्य है । हमें हँसी आती है और आश्चर्य भी होता है कि यदि मनुष्य अभागा है तो क्या ये कुत्ता बिल्ली गधे भाग्य वाले हैं। अरे! तुम्हें चौरासी लाख योनियों मे सबसे ऊपर मानव देह मिला । भारत जैसे देश में जन्म मिला जहाँ भगवान के इतने अवतार हुए और संत भी बहुत आए । फिर तत्त्वज्ञान कराने वाला गुरु भी मिला। अनंत जीवों में कितनो को ये सौभाग्य मिला सोचो।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

कृपा करु बरसाने वारी,तेरी कृपा का भरोसा भारी।

कोउ हो या न हो अधिकारी, सब पर कृपा करें प्यारी।।

-------सुश्री श्रीधरी दीदी (जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका)।


भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि—
विषयान् ध्यायतश्चित्तं विषयेषु विषज्जते।
तुमने अब तक संसार में जहाँ बार-बार चिंतन किया, उसका फल भोगा। एक बार मुझमें आनंद है,ये चिंतन बार-बार करके देख लो फिर मैं मिल जाऊँ। और कुछ करना ही नहीं है। चिंतन, मनन, स्मरण, बस (भागवत, ११-१४-२७)।
---- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

जगत की प्राप्ति जीव का लक्ष्य नहीं हैं। जीव भगवान् का अंश है अतः अपने अंशी को प्राप्त कर ही आत्मा की शांति को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार का वास्तविक विवेक गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है। ऐसा विवेक जाग्रत करने वाले गुरु को अपने करोड़ों प्राण देकर भी कोई उनके ऋण से उऋण होना चाहे तो यह जीव का मिथ्या अभिमान है।
..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

गुरु की सेवा भगवान् की सेवा से बड़ी मनी गई है हर ग्रन्थ ,हर शास्त्र में । सेवा तो बहुत बड़ी चीज़ है । लेकिन सेवा करने वाले को ये ध्यान रखना चाहिये कि वो सेवा मन से हो । हमको ये सेवा मिली है सौभाग्य से ये फीलिंग होते हुये।
–––जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

श्रीधाम मनगढ़ (26/10/1980)
उस दिन जब आप लोग कीर्तन कर रहे थे , तो मैं बैठा - बैठा देख रहा था । सबका अपना - अपना नेचर होता है । कुछ लोगो का नेचर होता है दूसरों के दोष देखना । बहुत बुरी बात है । लेकिन मेरा धन्धा यही है, मैं क्या करूँ । जितनी देर यहाँ बैठा रहता हूँ।आप लोगो को रीड करता रहता हूँ । आप लोग तो चाहे गोलोक , बैकुण्ठ लोक जायेंगे मेरा क्या होगा , पता नहीं । क्योकि मैं तो ये ही करता हूँ । भगवान् वगभान् का ध्यान तो करता नहीं , मैं आप लोगों का ध्यान करता हूँ । कौन मक्कारी कर रहा है ? कौन थोड़ा प्रयत्न कर रहा है , कौन पूरी ताकत लगा रहा है ? पूरी ताकत लगाना है बस । वो कितना आप कर पायेंगे , ये सब आगे की बाते हैं । किन्तु हमें अपनी मेहनत तो पूरी करनी चाहिये न । आपकी मेहनत पूरी समझ लेगा अगर आपका शरण्य गुरु तो बस कृपा कर देगा । आपके पास कुछ थोड़े ही है जो कमाल कर दिखायेंगे । लेकिन जितनी पावर है उसका तो उपयोग कीजिये । शरणागति वो तो पूरी दिखा दीजिये । जो तुम्हे ज्ञान दिया जा रहा है उसको तो मान लीजिए । प्रैक्टीकल लाइफ में उतारिये उसको । बस सीधी सी बात है ।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के श्रीमुख से नि:सृत अमृत वचन.......!!!

श्री महाराजजी बताते हैं की "श्यामा-श्याम" के लिए एक आँसू बहाने से वे हजार आँसू बहाते हैं। काश! की मेरी इस वाणी पर आप विश्वास कर लेते तो आँसू बहाते न थकते। अरे उसमें हमारा खर्च क्या होता है। उसमें क्या कुछ अकल लगाना है। क्या उसके लिए कोई साधना करनी है? क्या इसमें कोई मेहनत है। क्या यह कोई जप है? तप है? आँसू उनको इतने प्रिय हैं और तुम्हारे पास फ्री हैं। क्यों नहीं फ़िर उनके लिए बहाते हो? निर्भय होकर उनसे कहो कि तुम हमारे होकर भी हमें अबतक क्यों नहीं मिले। तुम बड़े कृपण हो, बड़े निष्ठुर हो, तुमको जरा भी दया नहीं आती क्या? हमारे होकर भी हमें नहीं मिलते हो। इस अधिकार से आँसू बहाओ। हम पतित हैं, अपराधी हैं, तो क्या हुआ। तुम तो 'पतित पावन' हो। फ़िर अभी तक क्यों नहीं मिले? अगर इतने बड़े अधिकार से मन से प्रार्थना करोगे, आँसू बहाओगे, तो वो तुम्हारे एक आँसू पर स्वयं हजार आँसू बहाते हैं।
प्रश्न: महाराजजी! कभी कभी ऐसा होता है न एक बार मैंने ऐसे ही suit डाला हुआ था तो कोई आई और कहती है - मालकिन किधर है? तो मुझे लगा- मैं नौकरानी हूँ क्या?
उत्तर: श्री महाराजजी बोले! नौकर तो हो ही हो। भगवान के नौकर हो माया के नौकर हो। दो में से एक का नौकर बनना पड़ेगा सबको। यही तो बात है न अहंकार की। उसने जब कहा मालकिन कहाँ है तो धक्का लगा तुमको। इसका मतलब तुम अपने को मालकिन समझती हो। काहे की मालकिन हो? दो कौड़ी की तो हो। किस बात की मालकिन हो बताओ जरा? अरे! काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य ईर्ष्या द्वेष सबकी तो मरीज़ हो,गुलाम हो। मालकिन किस बात की हो? मालिक तो एक भगवान है, महापुरुष है बस। तुम कहाँ मालकिन बनोगी? तुम तो इच्छाओं की गुलाम हो,ख़्वाहिशों की दासी हो। तो क्या गलत बोला उसने?
यह बीमारी निकाल देगा जब मनुष्य तभी वह normal होगा। वरना चाहे करोड़पति हो जाय,वह आगे ही बढ्ने की सोचेगा और हमेशा tension में रहेगा। कभी शांति नहीं मिल सकती। यह बीमारी मिटा दो। कोई किसी को कभी अच्छा नहीं कह सकता न मान सकता है चाहे वह जिस भी तरीके से रहे। तो फिर क्यों गुलामी करें हम दुनिया की अनावश्यक? हमको लोग अच्छा कहें- इस चक्कर में न पड़के अच्छा बनने के लिए चेष्टा करें।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
अवध बिहारी राजा राम,वृन्दाविपिन बिहारी श्याम।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम,ब्रजरस रसिक शिरोमणि श्याम।
ब्रह्म एक ही है द्वै नाम, तेहि कहु राम अथवा कहु श्याम।
धर्म प्रचारक राजा राम,प्रेम प्रचारक हैं घनश्याम।
------ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

संसार में प्रथम तो वैराग्य होना कठिन है। यदि वैराग्य हो भी गया तो कर्मकाण्ड का छूटना कठिन है। यदि कर्मकाण्ड से छुटकारा मिल गया तो काम क्रोधादि से छूटकर दैवी सम्पत्ति प्राप्त करना कठिन है। यदि दैवी संपत्ति भी आ गई तो भी सदगुरु मिलना कठिन है। यदि सदगुरु भी मिल जाय तो भी उनके वाक्य में श्रद्धा होकर ज्ञान होना कठिन है। और यदि ज्ञान भी हो जाय तो भी चित्त- वृत्ति का स्थिर रहना कठिन है।
यह स्थिति तो केवल भगवत्कृपा से ही होती है, इसका कोई अन्य साधन नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास जी भी कहते हैं :--
" यह गुन साधन तें नहिं होई।
तुम्हारी कृपा पाव कोई कोई।।"

अतः विषयों से मन को हटाकर भगवत्तत्व गुरू से पूर्ण श्रद्धा के साथ समझकर उनके बताये गए मार्ग का ही अनुसरण करना चाहिए। तभी हमारा कल्याण होगा।
जो मनुष्य संसार को नाशवान और हरि- गुरु को सदा का साथी समझकर चलता है, वही उत्तम गति पाता है।

......श्री महाराजजी।

-: समस्त जयपुर वासियों के लिए स्वर्णिम अवसर :-
खातीपुरा,जयपुर में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी के विलक्षण दार्शनिक प्रवचन एवं रसमय संकीर्तन का आयोजन।
सत्संग प्रेमी महानुभाव !
इस विकराल कलिकाल में अनेक अज्ञानी असंतो द्वारा ईश्वरप्राप्ति के अनेक मनगढ़ंत मार्गों, अनेकानेक साधनाओं का निरूपण सुनकर भोले भाले मनुष्य कोरे कर्मकाण्डादि में प्रवृत्त होकर भ्रान्त हो रहे हैं एवं अपने परम चरम लक्ष्य से और दूर होते जा रहे हैं।
ऐसे में विविध दर्शनों के विमर्श से अनिश्चय के कारण, व्याकुल एवं भटके हुये भवरोगियों के लिए पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन अमृत औषधि के समान हैं।
अपने सद्गुरुदेव के कृपा प्रसाद से ही उनकी विदुषी प्रचारिका सुश्री श्रीधरी जी उनके समस्त शास्त्रों, वेदों एवं अन्यान्य धर्मग्रन्थों के सार स्वरूप विलक्षण दार्शनिक सिद्धान्त "कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन" को अपने ओजस्वी धारावाहिक प्रवचनों के माध्यम से जन-जन में प्रचारित करते हुये जीवों को श्री राधाकृष्ण की निष्काम भक्ति की ओर प्रेरित कर रही हैं।
इसी श्रंखला में उनके 15 दिवसीय दिव्य प्रवचन का आयोजन सिद्धेश्वर महादेव मंदिर ,सिंह भूमि -सी ,खातीपुरा , जयपुर में किया गया है। इस प्रवचन श्रंखला का समय दिनाँक 7 मई से 21 मई तक प्रतिदिन सायं 7:00 से 8:30 बजे तक रहेगा।
इस युग के परमाचार्य जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित अद्वितीय संकीर्तन भक्त हृदय के लिए संजीवनी बूटी के समान हैं। उन्हीं अनुपमेय संकीर्तनों के माध्यम से वे प्रवचन के साथ ही कर्मयोग की क्रियात्मक साधना का अभ्यास भी करायेंगी।
अतएव यह एक ऐसा दुर्लभ अवसर है जो आपकी आत्मा को तृप्ति प्रदान करेगा। वेद-शास्त्र सम्मत सार्वभौमिक सिद्धान्त ज्ञान के साथ ही कलि के सर्वश्रेष्ठ धर्म संकीर्तन द्वारा भक्तजन ब्रजरस का भी आस्वादन कर सकेंगे।
सुश्री श्रीधरी जी के संस्कृत उच्चारण की बड़े से बड़े विद्वान भी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते। गुरु कृपा से समस्त वेद-शास्त्रों के गूढ़तम सिद्धांतों को भी सरल सरस रूप में प्रस्तुत करना इनके प्रवचन की विशेषता है। इनके दिव्य ज्ञान से युक्त प्रवचन सभी आध्यात्मिक शंकाओं एवं समस्त धर्मग्रन्थों व आचार्यों के सिद्धांतों में परस्पर पाये जाने वाले विरोधाभासों का समन्वय करते हुये भगवत्प्राप्ति का अत्यंत सीधा सरल मार्ग प्रशस्त करते हैं।
वे इस धारावाहिक प्रवचन श्रंखला में समस्त शास्त्रीय प्रमाणों, तर्कों एवं दैनिक उदाहरणों द्वारा जीव का स्वरूप एवं लक्ष्य, भगवान से जीव का संबंध, मानव देह का महत्व एवं क्षणभंगुरता, भगवत्कृपा, शरणागति, वैराग्य एवं संसार का स्वरूप, गुरुतत्व, रूपध्यान, कर्मयोग, ज्ञानयोग इत्यादि विषयों पर प्रकाश डालते हुये भक्तियोग की उपादेयता सिद्ध करके शीघ्रातिशीघ्र लक्ष्य दिलाने वाली साधना का निरूपण करेंगी।
वे कठिन से कठिन विषयों की व्याख्या भी इतनी सरलता से करती हैं कि एक भोले भाले अंगूठा छाप को भी समझने में कठिनाई नहीं होती। इनका प्रवचन वेद, गीता, रामायण, भागवत, बाइबिल, कुरान आदि समस्त धर्मग्रन्थों के प्रमाणों से युक्त होता है।
"कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन" पर आधारित इनके रसमयी प्रवचन एवं मधुर संकीर्तन जिज्ञासुओं के जीवन को, उनकी विचारधारा को पूर्ण सात्विक एवं भगवदमयी बना देते हैं।
यह देव दुर्लभ मानव देह सद्गुरु की शरणागति में भगवत्प्राप्ति के लिए ही भगवान ने अपनी अकारण करुणा से हमें प्रदान किया है लेकिन परलोक में सद्गति प्राप्त करने के लिए हमने अब तक कोई तैयारी नहीं की। हमारे हठी एवं अहंकारी मन ने जीवन की इस गोधूलि बेला में भी भीषण तम परिपूर्ण पथ पर चलते हुए कभी उस और दृष्टिपात नहीं किया जहां दिव्य ज्ञान ,दिव्य प्रेम एवं दिव्य आनंद की वर्षा हो रही है। वेदों के अनुसार केवल वास्तविक गुरु के पावन सानिध्य एवं शरणागति से ही जीव का अज्ञान अंधकार समाप्त हो सकेगा एवं जीव भगवतप्राप्ति की और अग्रसर हो सकेगा। इसी तथ्य को मस्तिक्ष में रखते हुए ही इस प्रवचन का आयोजन किया गया है। ये दिव्य प्रवचन श्रवण एक ऐसा दुर्लभ अवसर है जो आपकी आत्मा को तृप्ति प्रदान करेगा। इस प्रवचन का प्रारूप किसी भी प्रकार के आडंबर से रहित है।
वेद कहता है :- "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत"
अरे मनुष्यों ! उठो, जागो और शीघ्र ही महापुरुषों की शरण में जाकर परतत्व का ज्ञान प्राप्त कर अपने परम चरम लक्ष्य आनंद को प्राप्त करो। पता नहीं इस क्षणभंगुर जीवन का अगला क्षण तुमको मिले न मिले, इसलिए देर न करो।

अतएव आप सभी से करबद्ध निवेदन है कि अपने इष्ट मित्रों एवं परिवार सहित समय से पधारकर इस धारावाहिक प्रवचन श्रंखला को आदि से अंत तक श्रवण कर अपने देव दुर्लभ मानव जीवन को सफल बनायें। इस स्वर्णिम अवसर को हाथ से न जाने दें।
नोट: इस सत्संग कार्यक्रम का सीधा प्रसारण Facebook Live Broadcast के माध्यम से आपके अपने इसी सबसे प्रिय Facebook ग्रुप (https://www.facebook.com/groups/361497357281832/) में किया जाएगा। एवं साथ-साथ ही जो भी हमारे द्वारा संचालित अन्य FbGroups/Fb Pages/Twitter/GooglePlus Account/हमारे Profiles हैं उनपर भी सभी जग़ह Share किया जायेगा।आप सभी से पुनः करबद्ध निवेदन है कि अधिक से अधिक हरि-गुरु प्रेमी जीवों को इन Groups/Pages से जोडें। इस सेवा में सभी का लाभ निहित है। श्री महाराजजी की कितनी बड़ी कृपा है कि आप सभी भक्तजन पूरे विश्व में कहीं भी हों घर बैठे इस विलक्षण दार्शनिक प्रवचन को सुन सकते हैं एवं लाभ ले सकते हैं।
जय श्री राधे।

हम जो चाहते हैं उसे प्रियतम जब चाहे दें , यह निष्काम प्रेम और हम जब चाहते हैं तभी दें , यह सकाम प्रेम।
----श्री महाराज जी।

ईश्वरीय क्षेत्र में मन का ही महत्त्व है। केवल शारीरिक रूप से सत्संग करने का विशेष लाभ नहीं है। मन से श्रद्धायुक्त हो कर सत्संग जीव को ज्ञान, वैराग्य, भक्ति सब कुछ दिला देगा।
......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।