Saturday, May 6, 2017

श्रीधाम मनगढ़ (26/10/1980)
उस दिन जब आप लोग कीर्तन कर रहे थे , तो मैं बैठा - बैठा देख रहा था । सबका अपना - अपना नेचर होता है । कुछ लोगो का नेचर होता है दूसरों के दोष देखना । बहुत बुरी बात है । लेकिन मेरा धन्धा यही है, मैं क्या करूँ । जितनी देर यहाँ बैठा रहता हूँ।आप लोगो को रीड करता रहता हूँ । आप लोग तो चाहे गोलोक , बैकुण्ठ लोक जायेंगे मेरा क्या होगा , पता नहीं । क्योकि मैं तो ये ही करता हूँ । भगवान् वगभान् का ध्यान तो करता नहीं , मैं आप लोगों का ध्यान करता हूँ । कौन मक्कारी कर रहा है ? कौन थोड़ा प्रयत्न कर रहा है , कौन पूरी ताकत लगा रहा है ? पूरी ताकत लगाना है बस । वो कितना आप कर पायेंगे , ये सब आगे की बाते हैं । किन्तु हमें अपनी मेहनत तो पूरी करनी चाहिये न । आपकी मेहनत पूरी समझ लेगा अगर आपका शरण्य गुरु तो बस कृपा कर देगा । आपके पास कुछ थोड़े ही है जो कमाल कर दिखायेंगे । लेकिन जितनी पावर है उसका तो उपयोग कीजिये । शरणागति वो तो पूरी दिखा दीजिये । जो तुम्हे ज्ञान दिया जा रहा है उसको तो मान लीजिए । प्रैक्टीकल लाइफ में उतारिये उसको । बस सीधी सी बात है ।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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