Tuesday, June 26, 2018

मेरी #राधारमण सों यारी, तन मन -धन उन पर #वारी
#बनवारी सों ह्वै गइ यारी, #तन #मन #धन उन पर वारी।
मेरी राधारमण सों यारी,यह #जीवन उन पर वारी।
मेरी राधारमण सों यारी,क्या समझेगा कोउ #संसारी
मेरी राधारमण सों यारी,#अगनित #प्रानन दउँ वारी।।

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#कामना एवं #प्रेम....!!!
कामना ' प्रेम ' का विरोधी तत्व है । लेने - देने का नाम व्यापार है । जिसमें #प्रेमास्पद से कुछ #याचना की भावना हो , वह प्रेम नहीं है । जिसमें सब कुछ देने पर भी तृप्ति न हो , वही प्रेम है । संसार में कोई व्यक्ति किसी से इसलिये प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि प्रत्येक #जीव#स्वार्थी है वह #आनन्द चाहता है , अस्तु लेने - लेने की भावना रखता है । जब दोनों पक्ष लेने- लेने की घात में हैं तो मैत्री कितने क्षण चलेगी ? तभी तो स्त्री - पति , बाप - बेटे में दिन में दस बार टक्कर हो जाती है । जहाँ दोनों लेने - लेने के चक्कर में हैं , वहाँ टक्कर होना स्वाभाविक ही है और जहाँ टक्कर हुई , वहीं वह नाटकीय #स्वार्थजन्य प्रेम समाप्त हो जाता है । वास्तव में #कामनायुक्त प्रेम प्रतिक्षण घटमान होता है ,जबकि - #दिव्य #प्रेम प्रतिक्षण वर्द्धमान होता है । #कामना #अन्धकार - #स्वरुप है , #प्रेम - #प्रकाश #स्वरुप है ।
#Nature of the #Soul:
Let us reflect on the questions, "Who am I?" and, "Is it personal happiness that I seek or the happiness of others?" The answer will be "I do not know who I am, but I do know that I only desire my own happiness." Now if you were a material being, then you would have attained happiness from material objects, But being a part of #God, you can be truly happy only after attaining #Divine #Bliss. This is logically acceptable and has been proved by our own experience since eternity. If, being divine souls, we could have attained true happiness through material objects, then we would have never been unhappy, dissatisfied or miserable because we have attained material happiness in varying degrees throughout our innumerable past lives. This is a definite proof of the fact that we are divine souls and not material beings, because material things have never really satisfied us.
Excerpt from the book "#Prem #Ras #Siddhanta#Philosophy of #Divine #Love by ---- #JAGADGURU_SHRI_KRIPALU_JI_MAHARAJ.

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संसार का दुःख-सुख भयानक है, खतरनाक है। काम में सफलता मिली तो फूल गये और काम में नुकसान हो गया तो फीलिंग हो रही है। ये गलत बीमारी है। अच्छा फल मिल जाये तो भी ठीक, खराब फल मिले तो भी ठीक। समझ लो, हमारे पूर्वजन्म के कर्म खराब रहे होंगे। हमने पहले दान दिया होगा तो हमको पैसा अधिक मिल गया। पहले हमने दान नहीं दिया होगा तो हम गरीब हैं। ये तो हमारा दोष है, भगवान् क्या करे इसमें ? उसको फील नहीं करना चाहिये, आगे की बनाना चाहिये। जो बीता सो बीता।
------- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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#श्यामसुंदर के लिए एक #आँसू बहाने से वो हमारे लिए हज़ार आँसू बहाते हैं ।
काश कि मेरी इस वाणी पर आप विश्वास कर लेते, तो आँसू बहाते न थकते ।
अरे ! इसमें हमारा क्या खर्च होता है ? इसमें क्या कुछ अक्ल लगाना है ? क्या इसके लिए कुछ #साधना करनी है ? क्या इसमें कोई मेहनत है ? क्या यह कोई #जप है ?
आँसू उनको इतने प्रिय हैं और तुम्हारे पास free हैं । क्यों नहीं उनके लिए बहाते हो ?
निर्भय होकर उनसे कहो कि तुम हमारे होकर भी हमें अभी तक क्यों नहीं मिले ? तुम बड़े कृपण हो, बड़े निष्ठुर हो, तुमको ज़रा भी दया नहीं आती ? हमारे होकर भी हमें नहीं मिलते हो । इस अधिकार से आँसू बहाओ । हम पतित हैं, हम अपराधी हैं, तो क्या हुआ ? हम #पतित हैं, तो तुम #पतितपावन हो, फिर अभी तक क्यों नहीं मिले ?
इतना बड़ा अधिकार है तभी तो वह तुम्हारे एक आँसू पर हज़ार आँसू बहाते हैं ।
....... तुम्हारा #कृपालु

Sunday, June 10, 2018

हे श्यामसुन्दर ! थोड़ी सी हमारी भी प्रार्थना सुन लो। हम जो कुछ करते हैं उसको कामादिक महान् चोर क्षण भर में सब चुरा ले जाते हैं। जब हम दिव्य प्रेम की कामना करते हैं तब सांसारिक कामनाएं चित्त को चुरा ले जाती हैं। जब यह सोचता हूँ कि तुम्हारे चरण कमलों में ही ममता करूँगा तब स्त्री पुत्रादि मुझे अपनी ओर खींच ले जाते हैं। मैं जब यह सोचता हूँ कि मैं तो तुम्हारा सेवक हूँ तब दम्भ आकर अधिकार कर लेता है, अर्थात् पाखंड आकर रस में विष मिला देता है। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अब मैं सभी प्रकार से हार गया। अतएव अपने कृपाकटाक्ष द्वारा बरबस मुझे अपना बना लो।
( प्रेम रस मदिरा:दैन्य-माधुरी )
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
ऊधो!, वे सब जानन हार।
हौं उतनो जानति नहिं जितनो, जानत नंदकुमार।
हम जानति वे अंतर्यामी, सगुण ब्रह्म साकार।
करन विश्व कल्याण नंद घर, प्रकट्यो लै अवतार।
उनके चरित विचित्र न जानत, विधि हरि हर अनुहार।
हम ‘कृपालु’ व्यवधान करें किमि, उन आचरन मझार।।
भावार्थ:– ब्रजांगनाएँ उद्धव के द्वारा श्यामसुन्दर को संदेशा भेजती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! वे सब कुछ जानते हैं। जितना वे जानते हैं उतना हम लोग नहीं जानतीं। हम इतना अवश्य जानती हैं कि वे सर्वान्तर्यामी सगुण साकार भगवान् हैं एवं विश्व–कल्याण के लिए नंद के घर में अवतार लेकर प्रकट हुए हैं। उनकी लीलाएँ कल्याणमयी एवं विलक्षण हैं, जिनके अन्तरंग रहस्य को ब्रह्मा, शंकर सरीखे भी नहीं जान पाते। ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में हम लोग उनके कार्यों में बाधक नहीं बनना चाहतीं, वे जो कुछ कर रहे हैं निस्सन्देह ठीक ही होगा।
(प्रेम रस मदिरा:-विरह–माधुरी)
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
भगवान ने दया करके मानव देह दिया और आप लोग जब गर्भ में थे तब वादा किया था की महाराज बहुत दु:ख मिल रहा है माँ के पेट में, गंदगी में, सिर नीचे पैर ऊपर कितना कोमल शरीर, हमको निकालो, आपका ही भजन करेंगे आपको पाने का उपाय खोजेंगे अबकी बार मुझे निकालो । और बाहर आया मम्मी ने कहा ए मेरा भजन कर, पापा ने कहा ए मैं तेरा हूँ । यह सब लोगों ने धोखा देकर बेचारे को बेबकूफ बना दिया, भगवान को दिया हुआ वादा भूल गया और भगवान को छोड़ इन लोगों को भजने लगा । और अगर जागा भी, कोई संत मिल गया और जगा दिया तो कल से करेंगे, अवश्य करेंगे अवश्य । आज जरा काम आ गया कल से करेंगे अवश्य।
तन का भरोसा नहीं गोविंद राधे ।
जाने कब काल तेरा तन छिनवा दे ॥
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज। 
हमारे श्री महाराजजी के सत्संग में कोई दंभी, तन-मन-धन,प्रतिष्ठा ,गुण,ज्ञान आदि का अहंकार रखने वाला टिक नहीं सकता क्योंकि यहाँ तो प्रत्येक को उसकी सही स्थिति व हैसियत का बराबर एहसास कराया जाता है। इसलिए यहाँ दंभी प्रवेश तो पा जाता है किन्तु टिक नहीं पाता। जब वह दीनता की और अग्रसर होता है तब जाकर यहाँ टिक सकता है। हमारे गुरुदेव को दीन एवं भोले लोग ही अत्यंत प्रिय हैं। कोई कितना ही बड़ा intelligent समझता हो अपने आप को यहाँ श्री महाराजजी के सत्संग में आने के बाद उसको अपना ये खुद को intelligent समझने वाला स्वरूप श्री महाराजजी के निर्दिष्ट साधना सहयोग,एवं कृपा से छिन जाता है,या यूं कहूँ छीन लिया जाता है बरबस। वह जीव दीन-हीन बनने का प्रयास करने लगता है और संसार से वैराग्य स्वत: ही बढ्ने लगता है।जितना-जितना उस जीव का संसार श्री महाराजजी की कृपा से छिनता है,उतना ही वो भगवद क्षेत्र में मालामाल होने लगता है। वो अंदर से परम आनंदित महसूस करने लगता है। चिंताओ का शमन अपने आप गुरुदेव कर देते हैं।वो इसलिए सांसारिकता की दृष्टि से देखा जाये तो यहाँ सत्संग में साधारण जीव ही रह जाते हैं। अहंकार रहता भी है जीव में तो अपने गुरु का अहंकार रहता है बस ,उसको सेवा करने की power अंदर ही अंदर गुरुदेव द्वारा मिलती रहती है,वो महसूस करता है कि एक दिव्य शक्ति सदा उनके साथ उनको आगे बढ़ा रही है,एक एक जीव सौ-सौ लोगों के बराबर बिना थके हुए सेवा कर लेता है।
अहंकार से सख्त परहेज़ है गुरुदेव को.....संसार में तो परम चालाक बनने का उपदेश वो समझाते ही हैं,लेकिन उनके यहाँ चालाकी का काम नहीं। अंदर से दीन-हीन को वे संभालते ही संभालते हैं।किसी को यहाँ सेवा में आने पर पोस्ट का अहंकार हो जाता है,तो उसको भी एक क्षण में गुरुवर उसकी असली स्थिति से परिचय करवा देते हैं।हमारे यहाँ कोई पोस्ट है ही नहीं।अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं है,सब एक साथ दर्शन,एक साथ सत्संग बैठ कर करते हैं,यहाँ तो गरीब-अमीर अंदर की अवस्था पर निर्भर है,भगवद-प्रेम में सेवा में वो भी निष्काम सेवा में कौन-कौन कितना गरीब अमीर है,उसका निर्णय होता है।जो थोड़ा भी श्री गुरुदेव के बताये मार्ग पर चलने की कोशिश कर रहे हैं ईमानदारी से वे अंदर से बहुत कुछ पा चुके हैं,और जो यहाँ भी किसी संसारी स्वार्थवश हैं,वे बेचारे तो अंदर से और गरीब हो गए हैं।
बहुत कुछ है श्री महाराजजी के विषय में लिखने को.......कहाँ तक कहा जाये,कहाँ तक लिखा जाये......कोई अंत ही नहीं। फिर भी आप सभी जिज्ञासुओं की सेवा की कोशिश जारी रहेगी।
जय श्री राधे।