Tuesday, September 13, 2016

मोरी भोरी सी किशोरी,तनु गोरी,रसबोरी,चोरी चोरी चित चोरी चितचोरहुँ की।

रसिक रँगीली, गुन गर्वीली,छैल छबीली श्री राधे।

------ जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
गुरु आवश्यक है , गुरु किसे कहते हैं ?
जिसमें श्रीकृष्ण प्रेम हो , केवल लैक्चर दे , उससे काम नहीं चलेगा। भगवान् की प्राप्ति में केवल प्रेम देखा जायेगा।
रामही केवल प्रेम पियारा।
आप लोग जब पैदा हुये तो बोल नहीं सकते थे , माँ को पहचान भी नहीं सकते थे। भूख लगी - रो दिये। दर्द हुआ - रो दिये। बस ! बस वहीँ फिर पहुँचना होगा आपको एक दिन। इस जन्म में पहुँचो चाहें हजारों जन्मों में दुःख भोगने के पश्चात्। ये कृपालु का वाक्य आपको सदा याद रखना है - फिर भोले बालक बनना है , { भोला बालक }
गुरु के आदेश में जरा भी बुद्धि न लगाओ ; जैसे वाल्मीकि मरा - मरा कहता रहा , उसने न तो ये पूछा कि मरा - मरा कहने से क्या होगा ? और न ये पूछा आप कब लौटकर आयेंगे ? जो आज्ञा है उसका पालन करना है।
............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
हम दाेषदृष्टि से देखना आरम्भ करेंगे तब ताे संसार मे एक भी मनुष्य दाेष से रहित दृष्टिगाेचर नहीं हाेगा। संसार ही दाेष-गुण के संम्मिश्रण से बना है।
--------जगद्गुरु श्री कृपाल जी महाराज।
ये मन दुश्मन है, इससे सदा सावधान रहो। मन को सदा हरि-गुरु के चिंतन में लगाये रहो तो मन शुद्ध होगा। भगवान कहते हैं सदा सर्वत्र मेरा स्मरण करते रहो ताकि मरते समय मेरा स्मरण हो और तुम्हें मेरा लोक मिले,मेरी सेवा मिले।
------ जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
साधक को अपने कल्याण हेतु केवल हरि-गुरु की कृपा पर ही निर्भर होना चाहिये तथा शेष संसार के प्रति उदासीन भाव रखना चाहिये।
--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज I

जितनी भी आत्मशक्ति काे नष्ट करने वाली चीज़ है वह प्राइवेसी(Privacy) ही है।
------ जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
दूसरे में दाेष देखने से दाे हानि हाेती हैं।
- एक ताे वाे दाेष मन में आयेगा और हमारे मन काे गन्दा करेगा।
- नम्बर दाे दूसरे में दाेष देखने से अपने में अहंकार आयेगा।
ऐसे ही अहंकार कम है क्या?
ये अहंकार ही ताे हमें चाैरासी लाख याेनियाें में घुमा रहा है।
-------- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
विरह भक्ति का प्राण है। ताे वियाेग ही जीवन है, यह रहस्य काेई जान ले और इन पाँचाें इन्द्रियाें की कामना श्यामसुन्दर की बना ले। तो बिगड़ी बन जायेगी।
------ जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
मायिक देह काे मैं न मानाे एवं देह संम्बन्धी विषयाें काे मेरा न मानाे। अत: हे मन! तू आत्मा काे ही मैं मान एवं आत्मा के अंशी माता,पिता,भ्राता,भर्ता सर्वस्व श्यामसुन्दर काे ही मेरा मान। साथ में यह भी मान कि मैं श्यामसुन्दर का नित्य दास हूँ। एवं श्यामसुन्दर हमारे स्वामी ही हैं। इस प्रकार मान लेने पर श्यामसुन्दर बिना किसी साधना के ही कृपा कर देते हैं। एवं माया समाप्त कर देते है। इतना ही नही वरन् उसके दास बन जाते हैं।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
श्री महाराजजी से प्रश्न: धैर्य क्या है?
श्री महाराजजी द्वारा उत्तर : प्रतिकूल परिस्थिति को भी हरि-गुरु की कृपा मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करना ही 'धैर्य' है।

चाहे जैसी भी परिस्थिति हो सदैव हरि-गुरु के अनुकूल ही चिन्तन करो । प्रतिकूल परिस्थिति में भी अनुकूल चिन्तन बना रहे तभी समझो कि हमारी स्थिति ठीक है। चाहे कैसी भी कठिन सेवा हो या आज्ञा हो उसके पालन में प्राणपन से बलिहार जाना चाहिए।
............श्री महाराज जी।
जिसका समय हरि-गुरु की सेवा में,उनके दिव्य ज्ञान के प्रचार-प्रसार में,उनके गुणों के गान अथवा श्रवण में व्यतीत हो रहा है,उसको छोड़ कर सभी मनुष्यों की आयु व्यर्थ जा रही है।
जय श्री राधे।
मानव देह तो कभी-कभी मिलता है। लाखों वर्षों के बाद, बाकी योनियाँ मिला करती हैं। कुत्ते बने, गधे बने, बिल्ली बने, मच्छर बने, दुःख भोगे मर गये, फिर दुःख भोगे फिर मर गये। लेकिन कर्म करने का अधिकार और योनियों में नहीं है, स्वर्ग में भी नहीं है। - वहाँ भी भोग है, जैसे कुत्ता-बिल्ली ये भोग योनि है। ऐसे ही स्वर्ग के देवता भी हैं। वहाँ भी कर्म नहीं हो सकता, भक्ति नहीं हो सकती। केवल मानव देह में मनुष्य शरीर, जिसको हम विषय सेवन में बिता देते हैं अथवा खा - पीकर किसी प्रकार। बेटे से कहते हैं- बेटा मेरी तो बीत गई अब तुम अपनी फ़िक्र करो। पिता जी आपकी क्या बीत गई, देखो अब सत्तर के हो गये, अस्सी के हो गये, नब्बे के हो गये। पिता जी ! तो इसके बाद फिर क्या होगा ? भगवान् को प्यारे हो जायेंगे। भगवान् के प्यारे ऐसे हो जाओगे- साधना तो किया नहीं पूरे जीवन भर बेटे की साधना की, बाप की, माँ की, बीबी की, पति की, इनकी भक्ति की और मरने के बाद क्या आशा कर रहे हो गोलोक, बैकुण्ठ मिलेगा। जिसमें प्यार होता है मरने के बाद उसी की प्राप्ति होती है। यदि तुम हरि गुरु से प्यार करते हो तो उनका लोक मिलेगा और यदि तुम बाप, बेटे, माँ, पति, बीबी, इनसे प्यार करते हो तो ये कुत्ता , बिल्ली , गधा बनेंगे तो तुमको भी वही योनि मिलेगी। बड़ी सीधी सी बात है।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
हमारे मन भाय गये, श्यामा श्याम।
हमारो जीवन दोउ, श्यामा श्याम।
हमारो प्रानन प्रिय,श्यामा श्याम।
हमारी गति मति रति ,श्यामा श्याम।
हमारो सर्वस दोउ, श्यामा श्याम।।
----- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
Do not procrastinate
As a human, you must keep one thing in mind. What is that? There is no guarantee that you will live to see the next moment. Do not ever think - I am only ten years of age; I am only twenty; I am only forty; I am only fifty years of age. Do not think this. You are seeing for yourself what is happening in life. A child is born; he lets out a cry, and he dies. Or, he does not even get the opportunity to be born; he dies within the mother's womb. He is stillborn. You also see sometimes that a young man has just graduated from university. His parents are celebrating; they are being congratulated; sweets are being distributed, and the young man gets involved in an accident and dies on the way home. You are witnessing all this every single day.
Therefore, you must think of your own demise. The biggest surprise is that we do not think of our own death. We are careless. We see billionaires, prime-ministers and presidents dying of heart-attacks. We see that death does not spare anyone, whether it is a king, a pauper or a saint. Everyone must leave the world one day. When will that day come? No one knows. Therefore, you should not procrastinate.
जीव का चरम लक्ष्य......!!!
मानव देह पाकर यदि इश्वर को नहीं जाना तो पुनः चौरासी लाख योनियों में चक्कर लगाना होगा | उससे बड़ी कोई भूल न होगी |
Utlimate Goal of Human Beings.....!!!
Having acquired a human body if we do not realize God, we will have to suffer in the endless cycle of birth and death. This will be our greatest mistake.

.......JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHAPRABHU.
अगर है चाह, हो घनश्याम की मुझपर नज़र पहले,
तो उनके आशिकों की ख़ाक-ए-पा में कर गुज़र पहले।
तरीका है अजब इस इश्क की मंज़िल में चलने का,
कदम पीछे गुज़रता है, गुज़रता है सर पहले।
उसी का घर बना पहले, दिल-ए-मोहन की बस्ती में,
कि जिसका दीन-ओ-दुनिया दोनों से उजड़ा है घर पहले।
मज़ा तब है कि कुर्बानी में हर एक ज़िद से बढ़ता हो,
ये तन पहले, ये जाँ पहले, ये दिल पहले, ज़िगर पहले।
ना घबरा गर ये तेरी आँख के ये अश्रु लुटते हैं,
यकीं रख ये कि उल्फ़त में नफ़ा पीछे, ज़रर पहले।।

जय-जय श्री राधे।
जब तक भगवान् की भक्ति न की जायगी तब तक अन्त:करण शुध्द ही न हाेगा। बिना अन्त:करण शुध्द हुये हम सत्य आदि दैवीगुणाें का प्रदर्शन मात्र कर सकते है किन्तु वास्तव में दैवीगुण युक्त नही हाे सकते। केवल मन से साेचने मात्र से हमारा मन शुध्द न हाेगा। हां- यह हाे सकता है कि बार-बार साेचने से, परलाेक के भय से कुछ मात्रा में बहिरंग रुप से इन गुणाें का दिखावा कर लें।
------- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

सिद्धान्त ज्ञान में theory की नॉलिज (knowledge) में आलस्य न करो। अगर पूरा ज्ञान तुम्हें थ्योरी (theory) का नहीं होगा तो तुम साधना में गिर जाओगे। पूरी नॉलिज (knowledge) चाहिये -----
भगवान् कौन है ?
जीव क्या है ?
माया क्या है ?
संसार क्या है ?
मन क्या है ?
बुद्धि क्या है ?
हर चीज़ आपकी नॉलिज (knowledge) में रहनी चाहिये। तब आपका पतन नहीं होगा। आप चलते जायेंगे सीधे।

..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

जगद्गुरु वंदना:
हे मंगलमूर्ति ! कृपा सिन्धु गुरुवर ! आपके चरणों का ध्यान, आपके चरित्र का गुणगान जीव को माया मोह जाल से छुड़ाकर शाश्वत सुख प्रदान करता है । आपकी दिव्य वाणी का अनुसरण त्रिगुण, त्रिताप दूर भगा देता है।
जय श्री राधे।