Sunday, January 17, 2016

चाहे जैसी भी परिस्थिति हो सदैव हरि-गुरु के अनुकूल ही चिन्तन करो । प्रतिकूल परिस्थिति में भी अनुकूल चिन्तन बना रहे तभी समझो कि हमारी स्थिति ठीक है। चाहे कैसी भी कठिन सेवा हो या आज्ञा हो उसके पालन में प्राणपन से बलिहार जाना चाहिए।
--------सुश्री श्रीधरी दीदी (जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका)।
प्रिय मित्रों...!
जय श्री राधे।
यह नीचे फ़ोटो में जो भी weblinks दिये गए हैं वो "जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज'' के दिव्य तत्वज्ञान, उनकी रसमय वाणी, उनके पद, कीर्तन, फ़ोटो, विडियो, इत्यादि से सजी हुई फुलवारी है, जहाँ परम श्रद्धेय श्री सद्गुरु जी की कृपालुता की सुगंधी हैं, उनकी महक है।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज इस युग के पंचम मूल जगद्गुरु हैं, जिन्हें काशी विद्वत परिषत द्वारा ''जगद्गुरुत्तम'' की उपाधि से विभूषित किया गया है। आज सारा विश्व उनके द्वारा प्रदत्त अद्वितीय तत्वज्ञान और उनके द्वारा लुटाये गए ब्रजरस को पाकर उनका हमेशा-हमेशा के लिए ऋणी हो गया है। सारा विश्व आज गौरवान्वित है जो ऐसे रसिक संत आज हम सबके बीच में हैं और जिन्होंने अपने जीवन का एक-एक क्षण हम पतित जीवों के कल्याणार्थ ही अर्पण कर दिया है, जो हम सबको सबसे बड़ा रस, ब्रजरस और श्री प्रिया-प्रियतम की सेवा दिलाने को, उनका प्रेम दिलाने को आतुर है, उनकी कृपालुता धन्य है, उनका प्रेम धन्य है, उनका धाम धन्य है, उनकी वाणी धन्य है, उनका रोम रोम धन्य हैं.. वे ऐसे महापुरुष है जो केवल नाम से ही नहीं वरन जिनका स्वाभाव ही स्वभावतः 'कृपा कृपा कृपा' का ही है। ऐसे सद्गुरु की शरण जाकर हम सबको अपनी बिगड़ी संवार लेनी चाहिए। अनंतानत जन्मों से भटकते हम पापी जीवात्माएं आनंद के लिए भटक रहीं हैं, आज उसी आनंद को पाने का एक रास्ता, जो सद्गुरु देव की कृपा से अति ही सरल जान पड़ता हैं, अगर कोई गहराई से सोचे, इन महापुरुष की दया से सहज में ही मिल रहा है, तो क्यूँ न इस पापी और ढीठ मन को एक बार उनके चरणों में झुका दें और और उनका खजाना पा लें, जो अनंत हैं।

इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु आज से साढ़े चार वर्ष पूर्व हमने श्री युगलसरकार की कृपा से हमारे पूजनीय जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के दिव्य ज्ञान को social media पर प्रचारित-प्रसारित करने का संकल्प लिया था। जो आज हरि-गुरु कृपा से बहुत ही सुचारु रूप से चल पड़ा है। हजारों मित्रों को रोज यहाँ से आध्यात्मिक लाभ मिल रहा है।
आप सभी साधकों से विनती है कि इन सभी weblinks में जो की श्री महाराजजी की कृपा से ही प्रारम्भ हुए हैं ,इसमें अधिक से अधिक सत्संगी बहन-भाइयों को जोड़ते रहें। जिससे सभी को श्री महाराजजी के दिव्य तत्वज्ञान का लाभ मिल सके। हमारा एकमात्र उद्देश्य श्री महाराजजी द्वारा प्रगटित दिव्य ज्ञान को जन-जन तक हर घर तक पहुंचाने का है। सभी श्री महाराजजी को जानें...समझे और उनके मार्गदर्शन उनकी बताई गयी साधना पद्धति से अपना अमूल्य मानव देह सफल बनाये।
अगर आपको इन सभी weblinks से जुड़ने पर वास्तविक लाभ होता है तो मन ही मन श्री महाराजजी का ही आभार व्यक्त करें की उनकी कृपा से उनका अमूल्य तत्वज्ञान आपको यहाँ social media पर एक click में उपलब्ध हो रहा है।
इन ग्रुप्स/pages से जुडने से अगर आपको वास्तविक लाभ हुआ है तो वो अनुभव भी आप यहाँ share कर सकते हैं जिससे अन्य साधकों को भी लाभ मिलें।
आप सभी के सुझाव इन weblinks को और बेहतर बनाने के लिए भी आमंत्रित हैं।
**************जय-जय श्री राधे*************

मानवदेह देव दुर्लभ है। अत: अमूल्य है। इसी देह में साधना हो सकती है। अत: उधार नहीं करना है। तत्काल साधना में जुट जाना है। निराशा को पास नहीं फटकने देना है। मन को सद्गुरु एवं शास्त्रों के आदेशानुसार ही चलाना है। अभ्यास एवं वैराग्य ही एकमात्र उपाय है। सदा यही विश्वास बढ़ाना है कि वे अवश्य मिलेंगे। उनकी सेवा अवश्य मिलेंगी।
-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

रक्षिष्यतीति विश्वास:- ये विश्वास रखो कि हरि-गुरु हमारी रक्षा करेंगे। हम चलें निर्भय होकर चलें ईश्वर की ओर ,वे योगक्षेम वहन करेंगे उनका कानून है। अकाट्य कानून है। करेंगे कि नहीं करेंगे,करेंगे कि नहीं करेंगे मुँह से पूछें या लिखकर पूछें। अरे लिखना पढ़ना पूछना कुछ नहीं है। वो कानून है वो तो करना ही पड़ेगा उनकी ड्यूटि है और रक्षा कर रहे हैं ये भी realize करना है।
--------सुश्री श्रीधरी दीदी (जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका)।

ईश्वरीय क्षेत्र में अपने से ऊँचे को देखो, सांसारिक क्षेत्र में अपने से नीचे वाले को देखो।
.........श्री महाराजजी।

Tuesday, January 5, 2016

We all devotees of Shree Maharaj ji always experience one thing that, our life was just meaningless before meeting Maharaj ji. We didn't even know the purpose of our lives. Always wandering here and there just for the satisfaction of immortal desire for happiness. We had made innumerable relationships Mother, Father, Sister, Brother etc. but none could satisfy.
Life was just stationary before Maharaj ji. Heart was just dead. Mind was tired of this world.
But after getting Maharaj ji, the seed of divine love is spurting in our hearts. This we all realize. But we must think, that we are all his souls, his children, his parts. That is why, in 7 billion people only few get this rare opportunity to be in his association. Isn't this is grace. Only by his grace we are at this stage. Always loving us. keep on gracing us every time. We have uncountable sins in backlog, lots of sinful activities on our account but in spite of our shortcomings, Maharaj ji always grace us. With even fraction of time devoted in his remembrance, he grace us with so much love.
He really loves us very much. Care for us. He is our real relative, real friend, real mother father everything. He is our true companion. We must listen to him. We must follow him. We must cry out loud and call him. He is doing so much for us. So much so much. So much for our welfare. He knows what is best for us, what is harmful for us. We must surrender ourselves to his lotus feet.

Radhey- Radhey.

अनंत बार हमने सुना है संतो का लैक्चर और उस समय सिर को भी हिलाया...."आप बिलकुल ठीक कहते हैं गुरु जी" लेकिन फिर संसार में आसक्त हो गये।
......श्री महाराजजी।
In Life we will face difficulties and obstacles. However, we should not let them overpower our mind. We have to use the shield of spiritual knowledge and apply it to protect us from getting carried away by the waves of Maya. We should keep in mind the ultimate goal of our life all the time and keep our focus on Hari and Guru. It is very important to protect the Bhakti that we have done otherwise we will end up losing more than accumulating our spiritual wealth. Be extremely cautious and use spiritual knowledge practically as your shield to protect your spiritual wealth. Do not let the waves of Maya wash away your Bhakti. Be very cautious in the beginning to protect the seed of devotion until it grows up into a strong tree which cannot be affected.
..........SHRI MAHARAJJI.
One should not forget God in times of happiness and should realise His grace even in times of misery.
सुख का अनुभव करते समय भी भगवान् को मत भूलो तथा दुःखकाल में भी उनकी कृपा का अनुभव करो।
........सुश्री श्रीधरी दीदी (जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका)।
सहज सनेही प्रभु हमारे,बड़े ही भोले भाले हैं।
जो जन इनकी शरण में आये,बन जाते रखवाले हैं।।
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की जय.....राधेरानी की जय हो।

जिस महापुरुष के सानिध्य में हृदय में भगवतप्रेम बढ़ने लगे एवं हृदय पिघलने लगे तो समझ लो की वह वास्तविक महापुरुष ही है।
With Whomsoever Saint’s Company, Your heart melts and Your love for God Increases, Then surely realize that saint to be a real saint.
.....Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
तुम्हारा श्याम सुंदर के बिना जीना निरर्थक है। पेट तो शूकर भी भर लेते हैं। क्या केवल पेट भरना ही जीवन का उद्देश्य है?
.........श्री महाराजजी।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।
यह जोरी नीकी जान रे |
यह मन अरु वह मनमोहन दोउ, दीखत एक समान रे |
इत कह मन अति चंचल वाको, वेग वायु बलवान रे |
उत चंचलताहूँ ते चंचल, सुंदर श्याम सुजान रे |
इत कारो मन जनम कोटि के, पापन, संत बखान रे |
उत ‘कृपालु’ कारो हरि पुनि कत, धरत न मन ! उन ध्यान रे ||

भावार्थ - यह युगल जोड़ी कितनी अच्छी है | अरे मन ! तेरी एवं मनमोहन की सभी बातें एक सी हैं | तेरा भी वेग वायु से बढ़कर है, उधर श्यामसुन्दर भी चंचलता से भी अधिक चंचल हैं | महापुरुषों के कथनानुसार इधर तू भी करोड़ों जन्मों के पापों से काला है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि उधर श्यामसुन्दर भी काले हैं | फिर भी अरे मन ! तू उन श्यामसुन्दर से मैत्री क्यों नहीं कर लेता |
( प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

Sunday, January 3, 2016

O Krishn, my Lord! Please make me a true devotee of one of Your rasik Saints so that I can have his darshan, association and affection all the time; and also, with my body, mind and money, I may delightfully serve him forever.
O Krishn, my Lord! Please allow me to do the satsang of your Saint with constancy so that I may fulfill his teachings, and thereby detach myself from worldly attractions.
---------JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
ये आदमी खराब है, ये अच्छा। होगा, ये भी खराब निकला, ये अच्छा होगा, यही रिहर्सल कर रहे हैं हम लोग अनादि काल से अब तक। फिर भी पक्का नहीं हो सका कि यहां सब गड़बड़ है। नर्मदा के कंकड़ सब शंकर। ‘कूप में ही यहां भांग घुली है’ और कोई बुरी बात नहीं है। अरे भाई, जैसे हम भूखे हैं, आनन्दके, ऐसे ही सब हैं। जैसे हम अपने मतलब के लिए मां बाप बेटा स्त्री पति पड़ौसी से प्लान बना-बनाकर स्वार्थ सिद्ध करने के चक्कर में रहते हैं, ऐसे ही सब रहते हैं। समझे रहो। तुम ही अकेले बुद्धिमान हो और नहीं है, क्यों भूल जाते हो तुम्हारे साथ कोई एक्टिंग कर रहा है और तुम समझते हो, फैक्ट है। हम तुम्हारे लिये जान दे सकते हैं। देखो उसने कहा था कि हम जान दे सकते हैं। ऐ! बेवकूफ बना रहा है। जितना अधिक भयानक शब्द। कोई बोलता है, समझ लो, उतना ही बड़ा वो ठग है, धूर्त है, चार सौ बीस है, उसका बहुत बड़ा स्वार्थ है। अगर स्वार्थ कम है तो हल्का शब्द ही बोलेगा और स्वार्थ नहीं है तो नमस्ते ऐसे करता है। एक हाथ से भी होता है नमस्ते आजकल। चले जा रहे हैं- नमस्ते, क्यों कि वहां स्वार्थ नहीं है। तो हम स्वयं को तो बुद्धिमान मानते हैं औरों को बेवकूफ मानते हैं। हमने उसको बेवकूफ बनाया। खूब दावत किया, खूब स्वागत-सत्कार किया वो बेवकूफ बन गया।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
Every minute is unlimitedly precious. We cannot buy back even one minute of lost time, even if we possess all the world's wealth. Therefore time should not be squandered in unnecessary sense gratification. We should instead fully dedicate our every thought, word, and deed in all times, places, and circumstances to awakening our dormant devotion to HARI-GURU. This is the proper utilization of the human form of life.
............Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
जीवन क्षणभंगुर है, अपने जीवन का क्षण क्षण हरि-गुरु के स्मरण में ही व्यतीत करो, अनावश्यक बातें करके समय बरबाद न करो। कुसंग से बचो, कम से कम लोगो से संबंध रखो, काम जितना जरूरी हो बस उतना बोलो।
-----श्री महाराजजी।

वे हमें अपना बनावें चाहे न बनावें इसकी हमें चिन्ता नहीं !
हम उन्हें अपना बनाए रहेंगे बस यही निश्चय रहे !

--------सुश्री श्रीधरी दीदी (जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका)।
भगवन्नाम में भगवान् की समस्त शक्तियाँ विधमान हैं ...........नाम स्वयं में पूर्ण है।
किसी अन्य व्यक्ति से दीक्षा लेने की आवश्यकता नहीं है।

-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के अनुसार समस्त वेदों शास्त्रों का सार 'राधा' नाम ही है। श्री राधाकृष्ण नाम, रूप, लीला, गुण, धाम का निरंतर गुणगान ही उनकी प्रमुख शिक्षा है जो वे सभी साधकों को बताते हैं।

हजारों जन्म के निरन्तर साधना के बाद तो यह अवस्था आती है जो आप लोगों को आज मिली है।
हजारों मील से यहां आये है , जमीन पर सोते हैं और इतना परिश्रम करते हैं।
यह सौभाग्य हजारों जन्मों के प्रयत्न के बाद मिलता है।
लेकिन आप साधारणरूप से यही समझते होंगे कि दो साल पहले {महाराजजी} मिले होते और उनका लैक्चर { LECTURE } सुना और उसके बाद ये सौभाग्य मिल गया।
यह ठीक है की { महाराजजी } के कारण गाड़ी आगे चली , लेकिन यह बर्तन तो आपके संस्कारों का ही बना हुआ था जिसमें { महाराजजी } के विषय में अधिकार मिला।

………जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
मानव देह मिला, वास्तविक गुरु मिले, संसार से प्रथक हो गये, हरि-गुरु सेवा भी मिली, इतनी कृपा तो करोड़ों जीवों में से किसी एक को भी नहीं मिलती। अत: क्षण-क्षण सावधान रहो।
--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
Your mind itself is the obstacle between you and God,and your mind itself is the medium of finding God.

........SHREEDHARI DIDI(PREACHER OF JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ).