Saturday, March 30, 2019

विश्वास बनाये रखो कि तुम अकेले नहीं हो!!
माना कि हममे अनंत पाप समाहित है। फिर भी विश्वास रखो,क्योकि संसार में एक भी ऐसा नहीं है जिसके अनंत पाप न हो। वे तुमसे बेहद प्यार करते है। तुम्हारी फ्रिक उन्हें दिन रात लगी रहती है। अगर कोई कष्ट या तकलीफ तुम्हें हो रही है, तो यही समझों की तुम्हारा समय खराब चल रहा है प्रारब्ध के कारण।
इसलिए उसे स्वीकार करते हुए मन को एकाग्रचित्त करके सिर्फ उनमें ही लगाए रखो। वे सब अच्छा कर देंगें। यही विश्वास बनाए रखो कि वे सदा तुम्हारे हृदय मे रहते है, तुम अकेले नहीं हो।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज

जिसके मन में भगवान् के प्रति भक्ति है, वही यथार्थ भक्त है। बाहरी आडम्बर वाला नहीं।भगवान् मन का भाव देखते हैं, मन पर ध्यान देते हैं, बाहरी वेशभूषा पर नहीं।
इसलिये मन से भगवान् की भक्ति करें। दुनियाँ के लोग चाहे तुम्हे भक्त न मानें।
' अरे मन मूरख होश सँभाल।
प्रेम से भज ले श्री गोपाल।। '
प्रेम रस रूप अगाधा राधा।
सोइ बिनु बाधा पाय रास–रस, जोइ राधा आराधा।
नित्य विहार करति बनि सहचरि, रस न विरह पल आधा।
रासहिं रिझवत सानुराग नित, ताल राग स्वर साधा।
निरतत दिव्य हाव–भावन सों, कहि धा तिर–किट–धा–धा–धा।
लहि ‘कृपालु’ इमि युगल–रास–रस, होति धन्य बिनु बाधा||

भावार्थ:– श्री किशोरी जी प्रेम–रस एवं रूप की अनंत राशि हैं। उनकी जो उपासना करता है वह सहज ही दिव्य रास–रस प्राप्त करता है। इतना ही नहीं, वह किशोरी जी की सहचरी बनकर उनके साथ नित्य विहार करता है। उसे आधे पल के लिये भी रस का वियोग नहीं हो सकता। वह सदा स्वरों को साध कर अनुराग–युक्त विविध रागों के द्वारा किशोरी जी के गुणों को गाकर उन्हें प्रसन्न करता है एवं ‘धा–तिर-किट–धा–धा’ आदि नृत्य के शब्दों का उच्चारण करता हुआ विविध हाव-भाव द्वारा अलौकिक नृत्य करता है। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि वह इस प्रकार सहज ही श्यामा–श्याम के दिव्य प्रेमानन्द का निरन्तर अनुभव करता हुआ कृतार्थ रहता है।
(प्रेम रस मदिरा:-श्रीराधा–माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
बड़ो कब ह्वैहैं हमरो लाल।
कब चलिहहिं घुटुवन बल आँगन, करिहैं हमहिं निहाल।
कब कर–अँगुरि पकरि ह्वै ठाढ़ो, चलिहैं लटपट चाल।
कब तुतरिन बतियन कछु मोते, बोलिहहिं वचन रसाल।
कब दृग जल भरि मम अंचल गहि, कछु माँगिहहिं गोपाल।
कब ‘कृपालु’ मोते कह ‘मैया,’ इमि कहि चूमति गाल।।
भावार्थ:– यशोदा अपने लाल को गोद में लेकर वात्सल्य–प्रेम में विभोर होकर विधाता से कामना करती हैं,और कहती हैं कि वह दिन कब आयेगा जब मेरे लाल बड़े हो जायेंगे। कब हमारे आँगन में घुटनों के बल चलते हुए हमें निहाल करेंगे। कब हमारे हाथ की अँगुलियों के सहारे खड़े होकर लड़खड़ाते हुए चलेंगे। कब हमसे तोतली भाषा में मधुर–मधुर बाल–विनोद–युक्त बातें करेंगे। कब अपनी आँखों में आँसू भरकर हमारा अंचल पकड़े हुए कोई वस्तु माँगेंगे। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि मुझे मेरा लाल कौन सी घड़ी में ‘मैया’ कहेगा? इसके पश्चात् वात्सल्य–प्रेम में विभोर यशोदा कुछ भी न कह सकी। इतना ही कहकर बार–बार अत्यन्त प्यार से अपने लाल के दोनों गाल चूमने लगीं।
(प्रेम रस मदिरा:-श्री कृष्ण–बाल लीला–माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
हे #प्राणेश्वर ! #कुंजबिहारी #श्रीकृष्ण ! तुम ही मेरे #जीवन #सर्वस्व हो । हमारा–तुम्हारा यह #सम्बन्ध सदा से है एवं सदा रहेगा (अज्ञानतावश मैं इस सम्बन्ध को भूल गयी)।तुम चाहे मेरा #आलिंगन करके मुझे अपने गले से लगाते हुए, मेरी #अनादिकाल की #इच्छा पूर्ण करो, चाहे #उदासीन बनकर मुझे #तड़पाते रहो, चाहे पैरों से ठोकर मार-मारकर मेरा सर्वथा परित्याग कर दो। #प्राणेश्वर ! तुम्हें जिस-जिस प्रकार से भी #सुख मिले, वही करो मैं तुम्हारी हर इच्छा में प्रसन्न रहूंगी । ‘#श्री #कृपालु #जी’ कहते हैं कि #निष्काम #प्रेम का स्वरूप ही यही है कि अपनी #इच्छाओं को न देखते हुए, प्रियतम की प्रसन्नता में ही प्रसन्न रहा जाय । अपने #स्वार्थके लिए प्रियतम से बदला पाने की #भावना से प्रेम करना #व्यवहार #जगत का #नाटकीय#व्यापार सा ही है।
हाथ पैर की सेवा करना कोई बहुत बड़ी सेवा नहीं है, संत जो कहता है उसके अनुसार चलना ,सबसे बड़ी सेवा है।
#श्री_महाराजजी
आलस्य मत करो, तत्वज्ञान प्राप्त करो।
Practise of Devotion involves replacing Desires for the world with Desires for God.
संसार की कामना के स्थान पर भगवान् की कामना बनानी है। बड़ी सीधी सी बात है उसी का नाम भक्ति है।
मनुष्य का शरीर' 'श्रद्धा' और 'महापुरुष की प्राप्ति' इन तीन चीजों का मिलना अत्यंत दुर्लभ है।
'मनुष्य शरीर' और 'महापुरुष' मिल भी जाये तो तीसरी चीज 'श्रद्धा' मिलना अत्यधिक दुर्लभ है। अनादिकाल से इसी में गड़बड़ी हुई है। अनंत संत हमें मिलें लेकिन हमारी उनके प्रति श्रद्धा नहीं हुई इसलिए हमारा लक्ष्य हमें प्राप्त नहीं हुआ।
पहले श्रद्धा, उसके बाद साधु संग, फिर भक्ति करो - ये नियम है।
हरि- गुरु चरणानुरागी भक्तवृन्द !
आप सभी भगवत्प्रेमियों का सहज-स्नेह (क्योंकि ईश्वरीय अनुराग के अतिरिक्त आपका मुझसे कोई और स्वार्थ नहीं है, और ये आध्यात्मिक स्वार्थ ही हर प्रकार से वंदनीय है) व हमारे जगद्वन्द्य गुरुवर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के अद्वितीय दिव्य सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार की सेवा में आपका प्रशंसनीय सहयोग हमें निरंतर प्राप्त हो रहा है । इस भगवदीय प्रीति व सहयोग के लिए मैं हृदय से आपकी आभारी हूँ और बारम्बार साधुवाद के साथ आगे भी और अधिक सहयोग की आशा करती हूँ।
और इतने दिनों से Social Media के माध्यम से मैं भी आपकी स्नेह रज्जु में बँधी हुई हूँ इसलिए अपना मानकर ही आप सभी से एक और सहयोग की अपेक्षा करते हुए कुछ निवेदन करना चाहती हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मेरी किसी भी बात को अन्यथा न लेते हुए इस वास्तविक स्थिति को समझकर अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करेंगें।
आप में से अधिकांश लोग जानते ही हैं कि मैं पिछले लगभग 15 वर्षों से राजस्थान की राजधानी जयपुर व आस पास के क्षेत्रों में श्री महाराज जी की आज्ञा से प्रचार की सेवा कर रही हूँ। लेकिन प्रतिवर्ष यहाँ श्री महाराज जी के प्रवचन, जगद्गुरु कृपालु परिषत(JKP) की तीनों अध्यक्षाओं के सान्निध्य में साधना शिविरों का आयोजन, अन्य प्रचार कार्यों की व्यस्तता के कारण यहाँ अब तक कभी स्थायी सत्संग केंद्र के विषय में अधिक विचार नहीं किया।
लेकिन अब चूंकि बदलते समय के साथ ही यहाँ पर संकीर्तन, अन्य पर्वों इत्यादि के आयोजन के दौरान सत्संग कार्यक्रमों में अस्थायी हॉल में प्रैक्टिकल प्रॉब्लम्स दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रहीं हैं , आर्थिक अपव्यय भी होता है, इसीलिए इसके स्थायी समाधान पर विचार करते हुए,आगे भी सभी के पारमार्थिक लाभ के लिए , एक स्थायी सत्संग केंद्र इस एरिया में बनवाना चाहती हूँ जिसमें समय-समय पर हमारी ट्रस्ट के द्वारा आयोजित अन्य चैरिटेबल एक्टिविटीज़ भी सुविधापूर्वक सम्पन्न होती रहें।
अभी हाल ही में जयपुर के निकट ही 'दौसा जिले' में भगवदिच्छा से ही एक धार्मिक सज्जन ने बिना मांगे ही लगभग 6500 गज ज़मीन हमारी 'राधागोविंद पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट' को दान में दी है। और उनकी यही इच्छा है कि अब शीघ्र ही जनसहयोग से हम इसका सदुपयोग एक सत्संग केंद्र, गोशाला , व निर्धन बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा के रूप में करें। अतएव इस लोकोपकारी प्रोजेक्ट के लिए मुझे आप सभी का उदार सहयोग चाहिए। क्योंकि ये दूरगामी योजनायें आप सभी के लाभ के लिए ही हैं और बिना आपके सहयोग के क्योंकि बजट इतना ज़्यादा है कि पूर्ण भी नहीं हो सकतीं।
आप सभी जानते ही हैं श्री महाराज जी ने जीवों के आध्यात्मिक विकास के साथ ही उनके भौतिक विकास पर भी सदैव ध्यान दिया है ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके । शिक्षा हमारे जीवन में इतनी अधिक महत्त्वपूर्ण है कि उसके बिना व्यक्ति की तुलना पशु से की गई है- 'विद्या विहीन: पशु: ' ( भर्तिहरि ) । लेकिन आज भी हमारे समाज में लाखों लोग ऐसे हैं जो धन के अभाव में जीवन की इस मूलभूत आवश्यकता की भी पूर्ति नहीं कर पाते और अशिक्षित ही रह जाते हैं। इसलिए समाज के समर्थ लोगों का ये परम कर्तव्य है कि वे इन सेवाओं के लिए भी अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करें विशेषकर तब जब ये निःशुल्क विद्यालय बिना किसी स्वार्थ के किसी आध्यात्मिक संस्था के द्वारा चलाये जायें , जिनमें उनके आध्यात्मिक विकास का भी प्रयत्न किया जाए जैसे श्री महाराज जी द्वारा कुंडा में निर्मित निःशुल्क शिक्षण संस्थानों में किया जा रहा है। बच्चे ही समाज का भविष्य हैं, और सही शिक्षा व आध्यात्मिकता के विकास से ही इन्हें भावी समाज का जिम्मेदार नागरिक बनाया जा सकता है इसमें इनका भी कल्याण निहित है, और सम्पूर्ण समाज का, देश का, मानवजाति का भी।
और गौशाला का जो प्रस्ताव मेरे पास आया है वो भी सराहनीय है क्योंकि आज हमारे ठाकुर जी की प्रिय गोमाता की दयनीय स्थिति से आप सभी परिचित हैं। भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं नंगे चरण वन में गोचारण किया, उनकी सेवा की , अपने अद्भुत गो प्रेम के कारण ही वे अनंत कोटि ब्रह्मांड पाल होकर भी 'गोपाल' कहलाये। जिस गोमाता का गोबर, मूत्र इत्यादि भी पवित्रता का सूचक हो, बड़े बड़े धार्मिक अनुष्ठानों में स्थान की शुद्धि इत्यादि हेतु प्रयोग में लाया जाता हो, अनेक रोगों के निवारण के काम आता हो वो गौ वास्तव में सबकी माता ही है जो अपने दुग्ध के दान से समस्त मानवजाति को पुष्ट करती है। उसे मात्र पशु समझने वाले और निर्दयता का आचरण करने वाले सभी मनुष्य स्वयं अपने लिए नरक जाने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। ऐसे निर्मम मनुष्यों से उनकी रक्षा करना और गोमाता की सेवा करना सभी के लिए सौभाग्य की बात है। इसीलिए सरकार के द्वारा भी और समाज के कई वर्गों के द्वारा भी गोसेवा का प्रशंसनीय कार्य किया जा रहा है। आप सब भी हमारे साथ इस सेवा में सहयोगी बनकर गोसेवा का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।
वैसे तो 'वसुधैव कुटुम्बकं' के अनुसार ये समस्त विश्व हमारा है क्योंकि हम सभी उस एक परम पिता की ही संतान हैं इसलिए इस ईश्वरीय कार्य में सभी का सहयोग अपेक्षित है लेकिन चूँकि उस ईश्वर को सभी अपना पिता मानते नहीं , सभी व्यक्ति धार्मिक नहीं इसलिए धर्म में, ईश्वर में, गुरु चरणों में प्रीति रखने वाले आप जैसे भगवद्भक्तों से ही सहयोग की अपील की जा सकती है, जो वास्तव में सत्संग का महत्त्व समझते हैं और ये भी समझते हैं कि बिना अर्थ के आज के युग में धार्मिक कार्य भी सम्पन्न नहीं हो सकते।
श्री महाराज जी सत्संग की महिमा बताते हुए 'राधा गोविंद गीत' में कहते हैं -
स्वर्ग अपवर्ग सुख गोविंद राधे।
मिलि सत्संग सुख सम ना बता दे।।
सत्संग सम सुख गोविंद राधे।
भुक्ति - मुक्ति वैकुंठ का ना बता दे।।
अर्थात् सत्संग का सुख भुक्ति, मुक्ति, वैकुंठ के सुख से भी बढ़कर है, फिर श्री महाराज जी के अद्वितीय सत्संग के विषय में क्या कहा जाये ? उनके सत्संग के व्यापक प्रचार - प्रसार हेतु धन का दान करना तो सर्वश्रेष्ठ दान है, धन का वास्तविक सदुपयोग है जिससे आपके साथ साथ अन्य जीवों का भी पारमार्थिक कल्याण होता है।
इतने दिनों से आप हमारे संपर्क में हैं इसलिये पारमार्थिक दान की महिमा भी समझते ही हैं, और श्री महाराज जी के अद्वितीय सत्संग की भी ( जिसकी इस समय विश्व को सबसे अधिक आवश्यकता है ) । अतएव संक्षेप में बस इतना ही निवेदन करना चाहती हूँ कि हरि-गुरु के होने के नाते हम केवल एक दूसरे को अपना मान लें, और श्री महाराज जी के सत्संग संबंधी कार्यों को अपना कार्य, तो सभी कार्य चुटकियों में सम्पन्न हो सकते हैं। इनमें सहभागी बनकर हम अपना भी कल्याण करें व दूसरों के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त करें जिस सेवा से हमारे हरि गुरु सर्वाधिक प्रसन्न होते हैं।
इन सभी सेवाओं से जुड़ने का आध्यात्मिक फल , आत्मतुष्टि आपको प्रत्यक्ष अनुभव में आएगी, हरि गुरु चरणों में प्रीति भी निरन्तर बढ़ती जाएगी।
एक कदम बढ़ाकर विश्वास करके तो देखें।
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धन्यवाद।
राधे-राधे।