Thursday, June 27, 2013

Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj............

"Again and again, I am hinting that you all must do two things before chanting the Divine name, only two things - 1. Bring Shree Krishn in front of you and do roop dhyan (lovingly remember the form). 2. Develop and evolve faith that Shree Krishn is seated in His Divine name" .
---------- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj.

FIFTH ORIGINAL JAGADGURU SWAMI SHRI KRIPALUJI MAHARAJ...........

THE 'VEDAS' SAY THAT 'BHAKTI' IS THE ONLY SUPREME PATH TO GOD.'THE GITA' SAYS THAT 'SELFLESS BHAKTI' ENSURES "DIVINE VISION,DIVINE KNOWLEDGE,AND DIVINE UNITY" WITH THE SUPREME FORM OF GOD,'KRISHN'.AND THE 'BHAGWATAM' TELLS US THAT TO ATTAIN THE NECTAR OF THE BLISS OF 'KRISHN LOVE' THROUGH BHAKTI(DIVINE-LOVE-CONSCIOUSNESS) AND KEEP ON DRINKING IT FOREVER.
-----FIFTH ORIGINAL JAGADGURU SWAMI SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.

JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

Never approach a Saint with pride in your heart, rather go to him with love and devotion. It is only through the grace of God that you meet a true Saint. Hearing your heartfelt cry, God responded to your love by making the ways for you to meet a true Saint. But until you accept him as your Guru with firm conviction, all this will be in vain.
--------JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ............

भगवान् के नाम में भगवान् का निवास है और वह भगवान् से अधिक इम्पोर्टेन्ट है। क्यों ? अगर भगवान् नन्द के यहाँ अवतार लेंगे और वह गोकुल या नंदगाँव में हैं। और बरसाने से कोई भक्त दर्शन करना चाहे अभी तुरंत। कैसे करेगा वह ? वह जायेगा नन्दगाँव फिर वहाँ कहाँ है श्रीकृष्ण देखेगा। और नाम सब जगह है। आप लेट्रीन बाथरूम में जहाँ कहीं आप बैठे हों भगवन्नाम ले सकते हैं। डरें नहीं कि ये गन्दी जगह में भगवान् का नाम कैसे लें ? भगवान् का नाम गंदे को शुद्ध कर देता है , भगवान् अशुद्ध नहीं होते। अनंत पाप तो भरा है मन में। उसी को तो शुद्ध करने के लिये। अगर हम यह कहें कि गन्दगी में भगवान् का निवास कराना बड़ी बुरी बात है तो हमारा मन कभी शुद्ध ही न होगा। कहाँ से हम मन को शुद्ध करके लायेंगे ? तो भगवान् का नाम लेंगे। इसलिये आप हर जगह ,हमेशा भगवान् को अपने साथ मने। हरि गुरु हमारी हर हरकत को देख रहें हैं। नोट कर रहें हैं। ये विश्वास बढ़ावें , यह रियलाइज़ (realize) करेंगे उतना ही जल्दी आगे बढ़ेंगे। देखो हमारे धन्ना जाट वगैरह। तमाम इतिहास भरा पड़ा है। सब लट्ठ गँवार , बेपढ़े लिखे। विशवास कर लिया बस विशवास मात्र से भगवत्प्राप्ति होती है।
~~~~~~~ जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी~~~~~~~

JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ...........

Krishna means 'One who attracts'. Through His beauty, Grace, sweetness, merciful nature and loving ways, the sweet Lord has the power to attract even the coldest heart, and lighten even the heaviest of minds. He showers Divine love on all, without giving any thought to whether or not the recipient is worthy of the gift.

Tuesday, June 25, 2013

ये तो प्रेम की बात है उद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है........

यहाँ सर दे के होते है सौदे, आशिकी इतनी सस्ती नहीं है॥

ये तो प्रेम की बात है उद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है.........

प्रेम वालो ने कब वक्त पूछा, उनकी पूजा में सुन ले ऐ उद्धव।। यहाँ दम दम होती है पूजा, सर झुकाने की फुर्सत नहीं है॥

ये तो प्रेम की बात है उद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है...........

जो असल में है मस्ती में डूबे, उन्हें क्या परवाह जिंदगी की। जो उतरती है चढ्ती है मस्ती, वो हकीकत में मस्ती नहीं है॥

ये तो प्रेम की बात है उद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है............

जिनकी नज़रो में है श्याम प्यारे, वो तो रहते हैं जग से न्यारे। जिनकी नजरो में मोहन समाये,
वो नज़र फिर तरसती नहीं है॥

ये तो प्रेम की बात है उद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है.............
ये तो प्रेम की बात है उद्धव, बंदगी तेरे बस की नहीं है...............................
जिस समय कुसंस्कार आये उस समय और अधिक परिश्रम करना चाहिये जैसे चढ़ाई आने पर साइकिल चलाने में और अधिक जोर लगाना पड़ता है।
.......श्री महाराज जी।
जिस प्रेम के द्वारा संसार की कामना नहीं कर रहा है किन्तु उससे मुक्ति की कामना कर सकता है। मुक्ति से भी ईश्वर की प्राप्ति होती है - एकत्व मुक्ति की। लेकिन उससे भी ऊँची स्थिति है मुक्ति की भी कामना न करके भगवान् का निष्काम प्रेम चाहना।
..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
The name of God is endowed with all His powers. If one develops a firm conviction that God and His names are not two separate entities, but are both one and the same, he will certainly attain God. Therefore, you need not fall prey to the tricks of dodgy babas. First purify your heart and make it eligible to receive the grace of Guru.
..........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
भगवान् केवल भाव नोट करते हैं , क्रिया नहीं।
......श्री महाराज जी।
मन ! ‘मैं’ को मत छोड़ तू , दास जोड़ दे और |
‘मेरा’ भी रख साथ में , सो रसिकन सिरमौर ||३१||

भावार्थ – हे मन ! तू ‘मैं’ को मत छोड़ | वरन ‘मैं’ के आगे दास को और जोड़ दे (मैं दास हूँ) मेरा भी मत छोड़ | वरन मेरा के आगे रसिक शेखर श्रीकृष्ण जोड़ दे | (मेरे स्वामी)

(भक्ति शतक )
जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित |
जिमी हो शीत निवृत्त तिन , जिन ढिग अगिनि सिधार |
तिमि हो कृपा तिनहिं जिन , मन जाये हरि द्वार ||३०||

भावार्थ – जिस प्रकार आग के पास जाने से ठंड चली जाती है , उसी प्रकार जिसका मन श्रीकृष्ण की शरण में चला जाता है , उस पर श्रीकृष्ण की कृपा हो जाती है |

(भक्ति शतक )
जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित |
Always engage the mind in thoughts of the Supreme Lord. Envision Shri Radha-Krishna to be with you as you go off to school or work in the morning, as you cook a meal or clean the house, as you walk on the beach or go off to sleep, as you roll the cart from aisle to aisle in the grocery store, even as you play computer games. When settling yourself in the car, put your Beloved Lord in the passenger seat and buckle Him up. Before you start eating, close your eyes and offer the food to God. Says Shri Krishna in the Gita, “Dedicate all activities to Me, thereby making all your actions acts of devotion.”

-------- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj.
अश्रद्धालु एवं अनाधिकारी से भगवतचर्चा करना कुसंग है।
------श्री महाराजजी।
WHEN A SOUL DESPERATELY CRIES FOR 'RADHARANI', SHE RUNS TO HIM WITHOUT EVEN CARING FOR HERSELF.WHEN A SOUL LOVINGLY CALLS 'RADHEY! 'RADHEY!' RADHARANI ALSO SHEDS TEARS OF LOVE FOR HIM.THE DEVOTEE FURTHER SAYS,"WHEN RADHA RANI HERSELF IS MY DIVINE GUARDIAN,WHY SHOULD I BE AFRAID OF ANYTHING IN THE WORLD."
-----JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
सब धामन वारो वृन्दावन पै, औ वृन्दावन हूँ गुरुधाम पै वारो।

जो गुरु के पद प्रीति जुरी तो, भज्यों चलि आवेगो ब्रह्म बिचारो।

हैं हरि निर्मल भक्तन को, गुरु हैं अधमों को उधारन हारो।

औरन को गुरु हों या न हों, गुरु मेरो 'कृपालु' सुभाग हमारो।।
Through selfless devotion anyone can find Krishna. There is no question of religion, culture or nationality because "devotion to Krishna" is not a religion. It is the unity of your heart and mind with the supreme power of Divine Love.
आँसू बहाने से अन्तःकरण शुद्ध होगा, याद कर लो सब लोग, रट लो ये कृपालु का वाक्य। भोले बालक बनकर रोकर पुकारो, राम दौड़े आयेंगे। सब ज्ञान फेंक दो, कूड़ा-कबाड़ा जो इकट्ठा किया है। अपने को अकिंचन, निर्बल, असहाय, दींन हीन, पापात्मा महसूस करो, भीतर से, तब आँसू की धार चलेगी, तब अन्तःकरण शुद्ध होगा, तब गुरु कृपा करेगा। गुरु की कृपा से राम के दर्शन होंगे, राम का प्यार मिलेगा और सदा के लिये आनन्दमय हो जाओगे।

-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
जैसे हम चलते , फिरते, बोलते हैं , ऐसे ही भगवान् की प्रत्येक वस्तु चेतन है।
........श्री महाराज जी।

Monday, June 24, 2013

Selfless devotion to Shri Krishna is the only way to purify the heart. So continuously practice devotion until your heart is completely purified. It may take one year, two years, may be one life or even many lifetimes. Guru will not initiate you with the divine mantra until your heart is completely purified. The moment he initiates you with his mantra, you will become free from the bondage of maya, all sufferings will come to an end and you will immediately realise God.
...........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
जगत की प्राप्ति जीव का लक्ष्य नहीं हैं। जीव भगवान् का अंश है अतः अपने अंशी को प्राप्त कर ही आत्मा की शांति को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार का वास्तविक विवेक गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है। ऐसा विवेक जाग्रत करने वाले गुरु को अपने करोड़ों प्राण देकर भी कोई उनके ऋण से उऋण होना चाहे तो यह जीव का मिथ्या अभिमान है।
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज !!
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बार बार सोचो , बार बार सोचो, बस वो मिल जायेंगे। हम इन्द्रियो से तो बहुत साधना करतें हैं , जबान से राम राम , श्याम श्याम, राधे राधे, तीर्थो में जाते हैं , मंन्दिरों में जाते है ,पैर से मार्चिंग करते हैं ,पूजा करते है हाथ से, आँख से देखते है मूर्ति को, कान से सुनते है भागवत पूराण , गर्ग पूराण , गरुड़ पूराण वगैरह ये इन्द्रियों का वर्क है। भगवान कहते हैं ये सब हम नहीं चाहते, न नोट करते है इसको हम। तुम्हारे मन का अटैचमेंट कितने परसेंट हुआ भगवान मे बस इसको ही प्यार, भक्ति, साधना कहते है।
...........श्री महाराजजी।
If you call out to Him wholeheartedly and He appears in front of you, then what should you do? Ask for the biggest thing, LOVE, because God is under the control of love and God controls liberation, liberation controls knowledge, knowledge controls deeds and deeds control every living entity.

So Love is the biggest entity. God comes under the control of His devotees.
............SHRI MAHARAJJI.
मैंने तो तुमको अपना बना लिया है अब तुमको मुझसे अपनापन बढ़ाना है ।

I have made you Mine Forever, now it's you have to Increase your Belongingness and Love for Me.

-----------श्री महाराजजी।
The absolute essence of all the Divine philosophies is to attach yourself in loving remembrance of your soul beloved krishna with a growing desire to serve Him more and more.
...........SHRI MAHARAJJI.
PRECAUTIONS FOR A DEVOTEE:

■A devotee who progresses continuously in devotion, even while living in an unfavorable environment of Kusang is a true devotee.
■Until there is pride, devotional tears won't flow during Kirtan.
■Real Seva is when it is done silently.
■God graces the one who surrenders, God remains firm in this law of his.
■The foundation of Bhakti (Devotion) is Deenta (Humility). The one who wants to obtain lot of devotional benefit will have to become humble.
■Become like a little child. No matter what someone tells a child he does not feel it, he is always smiling.
...........SHRI MAHARAJJI.
तुम लोगों के अंदर में ऐसा बैठ गया हूँ कि तुम लोग कितना ही प्रयत्न करो,घूम फिर कर आओगे यहीं । फिर बेकार चिंतन क्यो करते हो ? अगर तुम कहो कि आप अंदर बैठे हैं ,दीखते तो नहीं ? बाहरी दृष्टि में आना बहुत छोटी चीज है किन्तु अंदर बैठ जाना बहुत बड़ी बात है। यह आवश्यक नहीं कि जो माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार करती हो और बच्चा उसे प्रतिक्षण देखता हो।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
श्री महाराज जी अपने सम्पूर्ण साहित्य एवं प्रवचन द्वारा पुनः पुनः यही सिद्धान्त जीवों के मस्तिष्क में भर रहे हैं। उनके मतानुसार ब्रहम जीव माया तीन तत्व सनातन हैं , किन्तु जीव एवं माया दोनों ही ब्रहम की शक्ति हैं। ब्रहम श्री राधाकृष्ण का दिव्य प्रेम प्राप्त करना साध्य एवं उनकी ही निष्काम भक्ति करना ही साधना है।
You are free to choose any form (of God), but whatever form you visualise, you must feel that it is divine.
........SHRI MAHARAJ JI.
An anonymous devotee has said

Happy moments-Praise God.
Difficult moments-Seek God.
Quiet moments-Worship God.
Painful moments-Trust God.
Every moment-Thank God.
प्रथम नमन गुरुवर पुनि गिरिधर ,
जोइ श्री गुरुवर सोइ श्री गिरिधर।
हरि गुरु कृपा सदा सब ही पर ,
अंतःकरण पात्र पावन कर।
करहु ' कृपालु ' कृपा मोहूँ पर ,
तन मन धन अर्पण चरनन पर।।
The true meaning of the word LOVE (prem) is to give, give, give. Still not be proud or complacent about it. The feeling that I have not given enough yet". The highest ideal of such love was established by Maidens (Gopika) in Holy land of Braj in India for Shri Krishn.
कृष्ण-कृपा बिनु जाय नहिँ , माया अति बलवान |
शरणागत पर हो कृपा , यह गीता को ज्ञान ||२९||

भावार्थ – यह माया शक्ति इतनी बलवती है की शक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की कृपा के बिना नहीं जा सकती | और यह कृपा भी केवल शरणागत जीव पर ही होती है | यह सम्पूर्ण गीता का सारभूत ज्ञान है |

(भक्ति शतक )
जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित |
अगर हम ये सदा महसूस करें कि वो अंदर बैठे हैं और नोट करते हैं, एक अपराध नहीं कर सकता कोई,एक बात गलत नहीं सोच सकता कोई।
------प्रभु श्री कृपालुजी महाराज।

Saturday, June 22, 2013

Your thoughts have tremendous power. They can make you a demon or a Saint. It depends on what you reflect upon constantly. As you think, so you will become. If you think good things, you will be good. If you think on evil things, you will be evil. Your rise and fall depends on your thinking. So do not allow your mind to be idle. Do not let it be influenced by the company of wrong people.
......JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
Shri Maharaj Ji reminds us.........

If you feel offended at the harsh words of another person, it means that you are not practicing devotion, in a proper manner.
गुरु के व्यवहार को कभी मत देखो। सदा यह सोचो कि वो कुछ भी करें, कैसा भी व्यवहार करें , हमें इससे कोई मतलब नहीं। बस हमें तो आज्ञा पालन करना है। चाहे वो हमसे आँखें फेर लें, चाहे डांट लगायें, लेकिन हमारे प्यार में कभी कमी नहीं आयेगी। सदा उनको सुख पहुंचाना ही हमारे जीवन का प्रथम लक्ष्य है।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
म शिष्य भी नहीं बनाते एवं समपरदाय भी नहीं चलाते।
यह सब मेरे मत से उचित नहीं हैं। संपरदायों से परस्पर द्वेष फैलता है। मैं सभी संपरदायचार्यों के सिद्धांतों का पूरा समन्वय करता हूँ।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
Sit down for devotional practice with all your attention focused on it. In case you feel lethargic, just stand up. But be careful! You should have thoughts of God and nothing else in your mind.
-----JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
God is available only to those who sacrifice some of their time and make the effort to know Him. Lord Krishna is so merciful that He promises to run sixty steps to meet the devotee who takes just one step towards Him. But you have to take that first step yourself. No one can take it on your behalf, nor can you pay another to take it for you.
-----JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं हैं, क्या चीज़ हो, ख़ुद तुमको ये मालूम नहीं हैं।
जो हरि सेवा हेतु हो,सोई कर्म बखान।
जो हरि भगति बढ़ावे,सोई समुझिये ज्ञान।।

जिस कर्म से श्रीकृष्ण की सेवा हो एवं जिस ज्ञान से श्रीकृष्ण प्रेम बढ़े। वही कर्म,सही कर्म,एवं वही ज्ञान,सही ज्ञान है।

------श्री महाराजजी।
भगवद क्षेत्र में उधार मत करो। तुरंत साधना में लग जाओ। मृत्यु किसी भी क्षण आ सकती है। और जब आज कल पर ही टालते रहोगे तो उम्र चाहे जितनी भी हो पर कभी भजन प्रारंभ नहीं कर सकोगे। अत: भगवदप्राप्ति का लक्ष्य पूरा नहीं होगा।

-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महापभु।
अरे! यूँ तो हमने लाख हसीन देखे हैं,तुमसा नहीं देखा।
मायाबद्ध जीव का तो गोविन्द राधे !
तनु छुड्वाया जाय कष्ट हो बता दे !!

भावार्थ - मायाबद्ध जीव को शारीर छोड़ते समय असह पीड़ा होती है ! सहस्त्रों बिच्छुओं के एक साथ काटने से जो पीड़ा होती है वही पीड़ा मायाधीन जीव को मृत्यु के समय होती है ! मायाधीन जीव को शरीर छोड़ने को यमराज विवश करते हैं !
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज .
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज(श्री महाराजजी) ----एक संक्षिप्त परिचय (रोचक तथ्य सहित).....

गुरु मोर ''कृपालु'' सुनाम के, हैं अद्वितीय ''जगदगुरुत्तम'' एक मात्र भू-धाम के।

जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज वर्तमान काल में मूल जगदगुरु हैं. यों तो भारत के इतिहास में इनके पूर्व लगभग तीन हजार वर्ष में चार और मौलिक जगदगुरु हो चुके हैं। किन्तु श्री कृपालु जी महाराज के जगदगुरु होने में एक अनूठी विशेषता यह है की उन्हें ''जगदगुरुत्तम'' (समस्त जगदगुरुओं में उत्तम) की उपाधि से विभूषित किया गया है।यह अलौकिक और ऐतिहासिक घटना 14 जनवरी सन 1957 को हुयी थी, जब श्री कृपालु जी महाराज जी की आयु केवल 35 वर्ष थी।

श्री महाराज जी का जन्म सन 1922 ई. में शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि में भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त के प्रतापगढ़ जिले के मनगढ़ ग्राम में सर्वोच्च ब्राहमन कुल में हुआ।

जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज की प्रमुख विशेषताएं...............

1. ये पहले जगदगुरु हैं जिनका कोई गुरु नहीं है और वे स्वयं ''जगदगुरुत्तम'' हैं।

2. ये पहले जगदगुरु हैं जिन्होंने एक भी शिष्य नहीं बनाया किन्तु इनके लाखों अनुयायी हैं।

3. ये पहले जगदगुरु हैं जिनके जीवन काल में ही ''जगदगुरुत्तम'' उपाधि की पचासवीं वर्षगाँठ मनाई गयी हो।

4. ये पहले जगदगुरु हैं जिन्होंने ज्ञान एवं भक्ति दोनों में सर्वोच्चता प्राप्त की व् दोनों का मुक्तहस्त दान कर रहे हैं।

5. ये पहले जगदगुरु हैं जिन्होंने पूरे विश्व में श्री राधाकृष्ण की माधुर्य भक्ति का धुंआधार प्रचार किया एवं सुमधुर राधा नाम को विश्वव्यापी बना दिया।

6. सभी महान संतों ने मन से इश्वर भक्ति की बात बताई है, जिसे ध्यान, सुमिरन, स्मरण या मेडिटेशन आदि नामों से बताया गया है। श्री कृपालु जी ने प्रथम बार इस ध्यान को ''रूप ध्यान'' नाम देकर स्पष्ट किया कि ध्यान की सार्थकता तभी है जब हम भगवान् के किसी मनोवांछित रूप का चयन करके उस रूप पर ही मन को टिकाये रहे।

७. ये पहले जगदगुरु हैं जो समुद्र पार, विदेशों में प्रचारार्थ गए।

८. ये पहले जगदगुरु हैं जो 91 वर्ष की आयु में भी समस्त उपनिषदों, भागवतादि पुरानों, ब्रम्ह्सुत्र, गीता आदि प्रमाणों के नंबर इतनी तेज गति से बोलते हैं की श्रोताओं को स्वीकार करना पड़ता है की ये श्रोत्रिय ब्रम्हनिष्ठ के मूर्तिमान स्वरुप हैं।

प्राक्तन में महारासिकों ने जिस ब्रज रस की वर्षा की है उसी ब्रज रस को पात्र अपात्र का विचार किये बिना जगदगुरु कृपालु जी सभी को पिला रहे हैं। प्रेमावतार श्री कृपालु जी ने बिना जाति-पांति, साधू, असाधु, पात्र-अपात्र का विचार किये श्रीकृष्ण प्रेम प्रदान कर करुणा की पराकाष्ठा प्रकाशित करके अपने ''कृपालु'' नाम को चरितार्थ कर दिया।

जो सिद्धांत आज से 500 वर्ष पूर्व श्री चैतन्य महाप्रभु ने सिद्धांत रूप में प्रकट किये थे वही अब पूर्ण रूप में प्रकट किये गए हैं। प्रेमाभक्ति के इन दोनों आचार्यों ने श्री राधा नाम सुधा रस जैसे अमूल्य खजाने को बिना किसी मूल्य के जन जन तक पहुचाया है.......श्री कृपालु जी महाराज के द्वारा आचारित, प्रचारित एवं प्रसारित भक्ति एवं प्रेमरस सिद्धांत को देखकर सभी भक्त गुरुदेव को युगलावतार गौरांग महाप्रभु के रूप में ही देखते हैं, जिन जिन सिद्धांतो पर चैतन्य महाप्रभु ने उस अवतार काल में बल दिया और उनकी श्रेष्ठता सिद्ध की, उन्ही को कालान्तर में श्री कृपालु महाराज ने विस्तारित एवं स्थापित किया है।

श्री कृपालु जी का प्रवचन नूतन जलधर की गर्जना के समान है, यह नास्तिकता से पीड़ित मन की व्यथा को हरने वाला है। प्रवचन को सुनकर चित्त रुपी वनस्थली दिव्य भगवदीय ज्ञान के अंकुर को जन्म देती है, कुतर्क युक्त विचारों से विक्षिप्त तथा दुर्भावना से पीड़ित मनुष्यों की रक्षा करने में श्री कृपालु जी महाराज अमृत औषधि के समान हैं। उनकी सदा ही जय हो..............

श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन भारतवर्ष के विभिन्न टी. वी. चैनल्स पर आते हैं। हम सभी धन्य हैं जो श्री कृपालु जी महाराज जैसे अद्वितीय और महारसिक संत आज हमारे बीच हैं, अज्ञानता से भरे हम जन, हम लोगों को निश्चय ही ऐसे दिव्य महापुरुष की शरण में जाकर उनका दिव्य ज्ञान और दिव्य प्रेम रस प्राप्त करना चाहिए, ये महापुरुष हम पर अकारण करुना लुटाने आये हैं, हमें प्रेम रस से भिगोने आये हैं, आइये इनकी शरण में चलकर धन्य हो जाएँ और अपना लक्ष्य प्राप्त करें।

निम्न टी. वी. चैनल्स पर श्री महाराज जी के प्रवचन आते हैं, आप सभी इसका लाभ अवश्य लें......

संस्कार - सोमवार से शनिवार - सुबह 5.30 से 6 .00बजे तक।

साधना - प्रतिदिन सुबह 7 .10 से 7 .40 बजे तक।

जी जागरण - प्रतिदिन शाम 6 .00 से 6 .30 बजे तक।

आस्था - प्रतिदिन शाम 6 .20 से 6 .45 बजे तक।

प्रेम रस सिद्धांत, प्रेम रस मदिरा, ब्रज रस माधुरी, राधा गोविन्द गीत, भक्ति शतक, श्यामा श्याम गीत इत्यादि ग्रन्थ हैं श्री महाराज जी के, जिनमे उन्होंने अपना सारा तत्वज्ञान अति ही सरल और सरस वाणी में प्रस्तुत किया है, जिसमे से ''प्रेम रस सिद्धांत'' तो अद्वितीय है, अन्य ग्रंथो में श्री महाराज जी ने कीर्तन रूप में सारा ब्रज रस उडेला हैं........इस ग्रुप में इन्ही सब ग्रंथो से आपको रोज़ दिव्य ज्ञान उपलब्ध कराया जा रहा है।

आपसे अनुरोध है की ऐसे महापुरुष की दिव्य वाणी से एक बार अवश्य भीगे.........

इस गुरु पूर्णिमा पर( 22 जुलाई,2013) को जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज भक्ति धाम,मनगढ़(इलाहाबाद के निकट) जो की उनकी जन्म भूमि भी है, में रहेंगे, आप सभी वहां उनके सत्संग का लाभ लेकर अपना जीवन धन्य बनाएं........।

कोई भी अन्य जानकारी के लिये इस ग्रुप से जुड़े रहें,औरों को भी इससे जोड़े,जिससे,सभी को अधिकधिक संख्या में श्री महाराजजी के दिव्य ज्ञान का लाभ मिल सके।

****************राधे - राधे*************
अन्दर न जाने दें गन्दी चीज़। अन्दर तो केवल भगवान् , उनका नाम , उनका गुण , उनका रूप , उनकी लीला , उनका धाम , उनके संत बस इतने हमारे अंतःकरण में जायें। बाकी को बाहर रखें। चारों ऒर बिठा लो अपने कोई बात नहीं। अन्दर न जाने दो। नहीं तो वैसे ही मन गन्दा है और हो जायेगा। परत की परत मैल जम जायेगी उसमें। यानी प्यार भगवान् के क्षेत्र में ही हो। व्यवहार संसार भर में हो।
~~~~~जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु~~~~~
जिनके चरण कमलों का स्पर्श त्रिगुण , त्रिताप पाप से मुक्ति प्रदान कर श्री राधाकृष्ण का प्रेम प्रदान करता है
ऐसे श्री राधाकृष्ण मूर्तिमान स्वरूप प्रिय गुरुवर को कोटि कोटि प्रणाम !
"This World is like a Marketplace where Merchants from various places keep coming and going. Some People earn here, where as others lose even their capital. Various powerful thieves like Lust, Anger and Greed are to be found here, who rob one of one's earnings. However in this Market it is also possible to attain the priceless gem of divine love, if we understand the importance of Human Life, by practicing devotion to Lord Krishna........"
- Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
Devotion to Shri Krishna must be exclusive. The attachment of the mind must be reserved for God while worldly duties are being performed externally. The performance of any work requires involvement of the mind, not attachment of the mind.
..........SHRI MAHARAJJI.
"Reserve some time for God every day. Never miss an appointment with Him. Besides, thinking of Him while you perform your daily chores, spend some time alone with Him. Do not think that this is craziness and mere imagination. The fact is that God alone is real, all else is imaginary and also this is the purpose of your Human LIFE. This is the Real Wealth of your life which will go with you after death also."
- Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
तुम लोगों के अंदर में ऐसा बैठ गया हूँ कि तुम लोग कितना ही प्रयत्न करो,घूम फिर कर आओगे यहीं । फिर बेकार चिंतन क्यो करते हो ? अगर तुम कहो कि आप अंदर बैठे हैं ,दीखते तो नहीं ? बाहरी दृष्टि में आना बहुत छोटी चीज है किन्तु अंदर बैठ जाना बहुत बड़ी बात है। यह आवश्यक नहीं कि जो माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार करती हो और बच्चा उसे प्रतिक्षण देखता हो।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
मसूरी लीला.........साधक-श्री महाराजजी संवाद।

एक बार एक सत्संगी ने श्री महाराजजी से पूछा कि हम संसार के लोगों को बाकी सभी प्रश्नों के उत्तर तो दे देते हैं किन्तु एक प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते। जब लोग हमसे बहस करते हैं कि रामजी, कृष्णजी,और गौरांग महाप्रभु जी के गुरु थे,तो फिर तुम्हारे गुरु (श्री महाराजजी) के कोई गुरु क्यों नहीं है?

श्री महाराजजी: अरे! तो तुम कह दो न की उनके भी गुरु हैं।

सत्संगी: महाराजजी,लेकिन आपके गुरु तो कोई भी नहीं है।

महाराजजी: हैं.....हैं .....पर बताएँगे नहीं।

सत्संगी: महाराजजी,प्लीज बताइये न?

महाराजजी: जब प्रचारक लोग प्रवचन करते हैं और सत्संगी फिर उनसे जुडते हैं और बाद में ये प्रचारक लोग बताते हैं कि हमारे गुरु 'जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज' हैं। तो सब उन लोगों को छोड़ के मेरे पास आ जाते हैं। इसलिए अगर मैं भी अपने गुरु का नाम बता दूँगा तो तुम लोग भी मुझे छोड़ के उनके पास चले जाओगे, और मैं अकेले बैठा रह जाऊँगा मसूरी में।

थोड़ी देर बाद सिद्धान्त समझाया कि देखो दो प्रकार के महापुरुष होते हैं एक साधन सिद्ध,और एक नित्य सिद्ध। तो साधन सिद्ध को तो गुरु बनाना ही पड़ता है लेकिन नित्य सिद्ध महापुरुष को कोई आवश्यकता नहीं है,फिर भी चाहे तो बना सकते हैं।

इसके बाद फ़िर मज़ाक करते हुए बोले: हमारे भी गुरु हैं पर बताएँगे नहीं।

जय हो ऐसे विनोदी स्वभाव वाले श्री कृपालुजी महाप्रभु की।

*************राधे-राधे**************