Tuesday, September 5, 2017

अरे मूर्ख मन ! इस परम अन्तरंग तत्वज्ञान को समझ ले। तीन तत्व नित्य हैं – पहला ईश्वर, दूसरा जीव, एवं तीसरा तत्व माया । इनमें माया चिदानन्दमय ईश्वर की जड़ शक्ति है एवं जीव चिदानन्दमय ईश्वर का सनातन दास है, जिसे वेदादिकों में अंश शब्द से विहित किया गया है। जीवात्मा देही है तू उसको देह मान रहा है, बस यही अनादिकालीन तेरा अज्ञान है । जो इस बात को जितना जान लेता है, उतना ही उस पर विश्वास भी कर लेता है, उसके जानने की यही पहिचान है। पुन: जो जितनी मात्रा में उपर्युक्त बात पर विश्वास कर लेता है, उतनी ही मात्रा में अपने आप उसका श्यामसुन्दर के चरणों में अनुराग हो जाता है।‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं :- अरे मन ! अब मनमानी छोड़ दे, एवं मनमोहन में रूपध्यान द्वारा अपने आप को अनुरक्त कर ।
( प्रेम रस मदिरा: सिद्धान्त–माधुरी )
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
--- सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति।

Shri Krishn does not need our service, but He kindly accepts it. When Shri Krishn asks us to surrender unto Him (Sarva-dharmaan parityajya maam ekam saranam vraja), this does not mean that Shri Krishn is lacking servants and that if we surrender He will profit. Shri Krishn can create millions of servants by His mere desire. So that is not the point. But, if we surrender to Shri Krishn, we shall be saved, for Shri Krishn says ‘aham tvaam sarva paapebhyo moksayisyami : ‘I shall free you from all sinful reactions’.
Radhey-Radhey.

हम किसी जीव को छोड़ देंगे यह कैसे संभव है । यह उस व्यक्ति विशेष की स्थिति पर निर्भर करता है। जब तक वह अलग रहेगा,तभी तक अलग रहेगा। जैसे ही अंदर से वह ठीक हो जाएगा तो 'कृपालु' को तुरंत ही ठीक हो जाना पड़ेगा,चाहे उससे पूर्व उसने अनंत अपराध किए हो।
---- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

सखी ! मैं, बिकी आजु बिनु दाम |
कियो न मोल – तोल कछु मोते, लियो मोल घनश्याम |
करि तन, मन, अरु प्रान निछावरि, भइ जग सों बेकाम |
अब सोइ नाम – रूप – गुन – लीला, सुमिरत आठों याम |
भुक्ति – मुक्ति तजि पियत प्रेम – रस, कान्त भाव निष्काम |
जाको चहत ‘कृपालु’ पिया बस, सोइ सुहागिनि बाम ||

भावार्थ – ( एक गोपी का प्यारे श्यामसुन्दर से प्रथम – मिलन एवं उसका अपनी सखी से कहना |)
अरी सखी ! आज मैं तो बिना मोल के ही बिक गई | उस प्यारे श्यामसुन्दर ने बिना कुछ मोल – तोल अर्थात् बात – चीत किये ही मुझे मोल ले लिया, अर्थात् सदा के लिए अपनी बना लिया | मैं भी तन, मन, प्राण आदि सर्वस्व देकर संसार से सदा के लिए पृथक् हो गई | अरी सखी ! अब मैं श्यामसुन्दर के नाम, रूप, गुण, लीला का निरन्तर ही स्मरण कर रही हूँ | संसार के सुख एवं मोक्ष आदि के सुख, सभी को छोड़कर कान्तभावयुक्त निष्काम – प्रेम का ही निरंतर पान कर रही हूँ | ‘श्री कृपालु जी‘ कुछ लम्बी साँसें भरते हुए कहते हैं कि जिसको पिया चाहता है वही सुहागिनी स्त्री हो सकती है अर्थात् मुझ अभागिनी के भाग्य में ऐसा विधाता ने अभी तक विधान ही नहीं रचा |

( प्रेम रस मदिरा मिलन – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

विश्व शान्ति....!!!
यदि विश्व के सभी मनुष्य श्रीकृष्ण भक्ति रूपी शस्त्र को स्वीकार कर लें, तो समस्त देशों का,समस्त प्रांतों का,समस्त नगरों का,समस्त परिवारों का झगड़ा ही समाप्त हो जाये। केवल येही मान ले कि सभी जीव, श्रीकृष्ण के पुत्र हैं। अत: परस्पर भाई भाई हैं। पुनः सभी जीवों के अंत:करण में श्रीकृष्ण बैठे हैं।
अतएव किसी के प्रति भी हेय बुद्धि,निंदनीय है। वर्तमान विश्व में इस सिद्धान्त पर किसी भी राजनीतिज्ञों का ध्यान नहीं जाता अतएव अन्य भौतिक उपायों से शांति के स्थान पर क्रांति उत्तरोतर बढ़ती जा रही है। केवल उपर्युक्त भावों के भरने से ही विश्वशान्ति संभव है।

-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

' हम ' माने जीव। इस 'हम' माने जीव के अतिरिक्त दो तत्व और हैं , एक भगवान् , एक माया। इसके अतिरिक्त और कोई तत्व नहीं है। और हमारे पास एक सामान है , जिस को हम कहीं भी लगा सकते हैं। उस सामान का नाम है , मन।
अर्थात , मन को हम चाहे भगवान् में लगा दें चाहे माया के एरिया में लगा दें। दो में एक जगह लगाना पड़ेगा।
क्यों ? इसलिए कि मन का स्वभाव है, प्रतिक्षण वर्क करना। निरंतर कर्म करना। और कर्म क्या करना ?
बिना किसी उद्देश्य के कोई कोई कर्म नहीं होता। बिना कारण के कार्य नहीं होता।
रीजन क्या ? रीजन है , आनंद।
हम आनन्द चाहते हैं , शान्ति चाहते हैं , सुख चाहते हैं , हैप्पीनेस चाहते हैं , पीस चाहते हैं। यह चाहना पड़ेगा। अगर आप कहें , हम न चाहे आनन्द , ऐसा नहीं हो सकता। क्यों ? इसलिए कि हम आनन्द रुपी भगवान् के अंश हैं।
...........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु ।

विश्व शांति के हेतु विश्वबंधुत्व ही आज की प्रमुख मांग है। वह केवल हिन्दू वैदिक फिलोसोफी से ही हो सकता है। 'य आत्मनि तिष्ठती' इस वैदिक सिद्धान्त के अनुसार सभी जीवों में भगवान का निवास है। यदि यह बात मानवमात्र स्वीकार करले, तो समस्त झगड़े समाप्त हो जाये और विश्वशांति का मार्ग प्रशस्त हो जाये।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
वे हमें अपना बनावें चाहे न बनावें, इसकी हमें चिन्ता नहीं ।
हम सदा उन्हें अपना बनाए रहेंगे बस यही निश्चय रहे ।

------जगद्गुरु श्री कृपालु महाराज।
God cannot be attained by any objective deeds, religiosity, performances of fire-sacrifices, meditation, austerity, fasting etc. God wants us to turn towards Him as we naturally are, without any make-ups....He loves us, He never leaves us and He is always ready to reciprocate our love...All we have to do is to turn our minds towards Him with favorable feelings desiring to revive our lost relation with Him......!!!
RADHEY-RADHEY.

We all devotees of Shree Maharaj ji always experience one thing that, our life was just meaningless before meeting Maharaj ji. We didn't even know the purpose of our lives. Always wandering here and there just for the satisfaction of immortal desire for happiness. We had made innumerable relationships Mother, Father, Sister, Brother etc. but none could satisfy.
Life was just stationary before Maharaj ji. Heart was just dead. Mind was tired of this world.
But after getting Maharaj ji, the seed of divine love is spurting in our hearts. This we all realize. But we must think, that we are all his souls, his children, his parts. That is why, in 7 billion people only few get this rare opportunity to be in his association. Isn't this is grace. Only by his grace we are at this stage. Always loving us. keep on gracing us every time. We have uncountable sins in backlog, lots of sinful activities on our account but in spite of our shortcomings, Maharaj ji always grace us. With even fraction of time devoted in his remembrance, he grace us with so much love.
He really loves us very much. Care for us. He is our real relative, real friend, real mother father everything. He is our true companion. We must listen to him. We must follow him. We must cry out loud and call him. He is doing so much for us. So much so much. So much for our welfare. He knows what is best for us, what is harmful for us. We must surrender ourselves to his lotus feet.

All Glories to our Divine Master Jagadguruttam Shri Kripaluji Mahaprabhu.
Radhey- Radhey.
DON'T MISS To Watch Some Special Moments 'Live on Facebook' on 9th and 10th September during Bhaktiyog Sadhna Shivir,Jaipur.
Radhey-Radhey.

नंद यशोदा वारो,मेरो प्रानन प्यारो।
वापै तन मन वारो, मेरो प्रानन प्यारो।
मोर मुकुट वारो, मेरो प्रानन प्यारो।
मृदु मुसकनि वारो, मेरो प्रानन प्यारो।।
------ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
रसिक जन – धन गोवर्धन धाम |
त्रिगुणातीत दिव्य अति चिन्मय, ब्रज परिकर विश्राम |
मरकत – मणि – मंडित खंडित मद, गिरि सुमेरु अभिराम |
राधाकुंड कुसुम सर आदिक, लीलाधाम ललाम |
मर्दन – मघवा – मद मनमोहन, पूजित पूरनकाम |
सखन सनातन संग श्याम जहँ, विहरत आठों याम |
कब ‘कृपालु’ हौंहूँ बड़भागी, ह्वैहौं बसी अस ठाम ||

भावार्थ – रसिक जनों का सर्वस्व श्री गोवर्धन धाम है जो गुणों से अतीत है एवं दिव्यातिदिव्य चिन्मय तथा ब्रज के निवासियों का विश्राम स्थल है | वह गोवर्धन धाम मरकत मणियों से सुशोभित तथा सुमेरु गिरि ( पर्वत ) के भी मद को मर्दन करने वाला है | वहाँ राधाकुंड, कुसुम सरोवर आदि अनेक मनोहर लीला स्थलियाँ हैं, जो इन्द्र के अभिमान को चूर्ण करने वाला ब्रह्म श्रीकृष्ण से भी पूज्य और कामनाओं से परे हैं | इस गोवर्धन धाम में सनातन गोलोक के श्रीदामा आदि सखाओं के साथ, श्रीकृष्ण सदा ही विविध प्रकार के खेल खेला करते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि ऐसे दिव्य गोवर्धन धाम में बस कर हम कब परम भाग्यशाली बनेंगे ?
( प्रेम रस मदिरा धाम – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
उद्धव ने भगवान् से प्रश्न किया कि संसार में मूर्ख कौन है?उन्होंने कहा कि जो अपने को देह मान ले। बस इससे बड़ा कोई मूर्ख नहीं। इस परिभाषा के अनुसार हम लोग क्या हैं ? अकेले में सोचना..!!!
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
हम लोग छोटी सी चीज को पाने के लिये पहले सोचा,फिर प्लानिंग किया,फिर प्रैक्टिस किया,फिर भी वो काम पूरा हो न हो,डाउट है।अरे देखो चित्रकेतु के एक करोड़ स्त्रियाँ और बच्चा नहीं हुआ। तो एक स्त्री से कोई चैलेन्ज करे कि बच्चा होगा। अरे एक स्त्री से क्या चैलेन्ज कर रहे हो ? सतयुग के हैं चित्रकेतु। लेकिन भगवान् के एरिया में ये बात नहीं। भगवान् ने सोचा कि ये संसार बन गया और उन्होंने ऐसी शक्ति हमको दी है अपने आपसे मिलने के लिये कि बच्चों ! तुम भी सोचो, हम मिल जायेंगे। ऐं सोचने से मिल जाओगे ? हाँ।
मामनुस्मरतश्र्चित्तं मय्येव प्रविलीयते।
( भाग.११-१४-२७ )
केवल सोचो मन से कि वो मेरे हैं,वो मेरे हैं,वो मेरे हैं,वो मेरे अन्दर में हैं,सर्वव्यापक भी हैं,वे गोलोक में भी हैं। ये फेथ(Faith),विश्वास,इसका रिवीजन(Revision)।इसी का नाम साधना। बस सोचो।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।