Wednesday, July 23, 2014

अनंत जन्मों तक माथा पच्ची करने के पश्चात भी जो दिव्य ज्ञान हमें न मिलता वह हमारे गुरु ने इतने सरल और सहज रूप में हमें प्रदान कर दिया, अब इसके बाद हमारी ड्यूटि है कि उस तत्त्वज्ञान को बार-बार चिंतन द्वारा पक्का करके उसके अनुसार प्रैक्टिकल करें। अब हमने यहाँ लापरवाही की, एक ने कुछ परवाह की, एक ने और परवाह की, एक ने पूर्ण परवाह की, पूर्ण शरणागत हो गया, अब महापुरुष ने तो अकारण कृपा सबके ऊपर की, सबको स
मझाया। लेकिन उसमें एक घोर संसारी ही रहा, एक थोड़ा बहुत आगे बढ़ा, एक कुछ ज्यादा आगे बढ़ा, एक सब कुछ त्याग करके 24 घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति पर। पर जो 24 घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति हेतु क्या उसके ऊपर विशेष कृपा हुई, यह सोचना मूर्खता है। कृपा तो सब पर बराबर हुई लेकिन तपे लोहे पर पानी पड़ा छन्न, जल गया और कमल के पत्ते पर पड़ा तो मोती की तरह चमकने लगा और वही पानी अगर सीप में पड़ा स्वाति का तो मोती बन गया। पानी तो सब पर बराबर पड़ रहा है लेकिन जैसा पात्र है, जैसा मूल्य समझा जितना विश्वास किया जितना वैराग्य है जिसको उसका बर्तन उतना बना, उसके हिसाब से उसने उतना लाभ उठाया। तो महापुरुष की यह कृपा है तत्त्वज्ञान करवा देना। क्योंकि बिना तत्त्वज्ञान के हम साधना भी क्या करते, भगवदप्राप्ति का तो प्रश्न ही नहीं है। तर्क, कुतर्क, संशय ही करते रहते, इसी में पूरा जीवन बीत जाता, मानव देह व्यर्थ हो जाता। साधना करते भी तो अपने अल्पज्ञान या गलत ज्ञान के अनुसार ही करते जिससे कोई लाभ नहीं होता।

--------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाप्रभु।

विनम्र निवेदन........
प्रिय साधक समुदाय।
श्री महाराज जी के चरणों में प्रणाम करते हुये गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक बधाई दे रही हूँ।
भक्ति - धाम में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है। यह श्री महाराजजी की जन्मस्थली आप सभी को श्री महाराजजी का दिव्य सन्देश दे रही है। यहाँ का कण कण दिव्य चिन्मय है जो भक्ति का अनुपम स्रोत है क्योंकि यहाँ श्री महाराजजी ने अहनिर्श श्यामा-श्याम गुण - गान कराया है।
अखण्ड संकीर्तन , करुण क्रन्दन युक्त साधना यही यहाँ का इतिहास है। यहाँ रहकर गुरु सेवार्थ जीवन समर्पित करने वाले तो धन्य हैं ही किन्तु आप सब भी परम सौभाग्यशाली हैं जो गुरुधाम में साधना करने के लिये समय समय पर आतें हैं। और श्री महाराजजी की सहर्ष सेवा करते हैं।

जे.के.पी. द्वारा जितने भी जनहित कार्य किये जा रहे हैं वह श्री महाराजजी की कृपा से अत्यधिक सुचार रूप से चल रहे हैं। वे स्वयं ही योगक्षेम वहन कर रहे हैं , किन्तु आप सभी से मैं आशा करती हूँ कि आप सभी सदैव श्री महाराजजी के कार्यों को आगे बढ़ाने में पूर्ण सहयोग करेंगे। उनके दिव्य संदेशों को , उनकी दिव्य वाणी को , उनके साहित्य को हमें जन -जन तक पहुँचाना है।
शुभकामनायों सहित
तुम्हरी बड़ी दीदी.

अरी मैं, मरी हरी बिनु हाय |
विरह न रहन देत अब प्रानन, कोउ बचावहु धाय |
बिनुहिं अनल हौं जरी जात हौं, रहे नैन झरि लाय |
कहा करूँ ? कित जाऊँ ? एक छिन, उन बिनु रह्यो न जाय |
तुम प्राणन – ईश्वर प्राणेश्वर !, पुनि कत बेर लगाय |
अब ‘कृपालु’ पिय बेगि मिलहु न तु, हौं ही मिलिहौं आय ||

भावार्थ – एक विरहिणी कहती है कि अरी दैया ! प्यारे श्यामसुन्दर के बिना मेरा तो प्राण निकला जा रहा है | विरह अब प्राणों को लेकर ही मानेगा | हाय ! हाय !! कोई तो दौड़ कर मुझे बचाओ | बिना आग के ही मै जली जा रही हूँ एवं उससे बचने के लिये आँखों से आँसू की वर्षा भी कर रही हूँ ? हाय ! मैं क्या करूँ ? कहाँ चली जाऊँ मुझसे श्यामसुन्दर के बिना तो एक क्षण भी रहा नहीं जाता | हे प्राणेश्वर ! तुम मेरे प्राणों के स्वामी होते हुए भी इतनी देर क्यों लगा रहे हो ? ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अब शीघ्र ही दर्शन दे दो, नहीं तो प्राण निकल जाने पर मैं स्वयं ही आकर मिल जाऊँगी |
( प्रेम रस मदिरा विरह - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

जानने मात्र ते ना बने कछु कामा।
जानो पुनि मानो पुनि जाहु शरण श्यामा।।

janne matr te na bane kachu kama.
jano puni mano puni jahu sharan shyama.

Theoritical knowledge of the scriptures is of no use until it leads you to complete faith and complete surrender to Shri Shyama.
Shyama Shyam Geet - 72
-Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
Radha Govind Samiti.

गुरु वन्दना........!!!!!
वेदों शास्त्रों, पुराणों, गीता,भागवत ,रामायण तथा अन्यानय धर्मग्रन्थों के शाश्वत अलौकिक ज्ञान के संवाहक तुमको कोटि-कोटि प्रणाम। जन-जन तक यह ज्ञान पहुँचाकर दैहिक ,दैविक,भौतिक तापों से तप्त कलियुगी जीवों के लिए तुमने महान उपकार किया है जो सरलतम,सरस,सार्वत्रिक ,सार्वभौमिक,भक्तियोग प्राधान्य मार्ग तुमने प्रतिपादित किया है,वह विश्व शांति का सर्व-सुगम साधन है,असीम शाश्वत आनंद का मार्ग है। सभी धर्मानुयायीयों को मान्य है।
हे जगद्गुरूत्तम! तुमको कोटि-कोटि प्रणाम। कोटि-कोटि प्रणाम।

हे जगद्गुरूत्तम! भगवती नन्दन!
तुम्हारी महिमा का गुणगान सहस्त्रों मुखों से भी असंभव है। तुम्हारी वंदना में क्या लिखें कोई भी लौकिक शब्द तुम्हारी स्तुति के योग्य नहीं है।
बस तुम्हारा 'भक्तियोग तत्त्वदर्शन ' युगों-युगों तक जीवों का मार्गदर्शन करता रहेगा।
तुम्हारे श्री चरणों में यही प्रार्थना है कि जो ज्ञान तुमने प्रदान किया उसको हम संजोये रहे और तुम्हारे द्वारा बताये गये आध्यात्मिक ख़जाने की रक्षा करते हुएतुम्हारे बताए हुए मार्ग पर चल सकें।
धर्म,संस्कृति ,ज्ञान,भक्ति के जीवंत स्वरूप हे जगद्गुरूत्तम ! तुमको कोटि-कोटि प्रणाम। कोटि-कोटि प्रणाम।

तुमने समझा ही नहीं और ना ही समझना चाहा.....!
कि हमने चाहा ही क्या तुम्हारे सिवा......!!
राधे-राधे।

सबसे बड़ा पाप है दूसरे को दुःख देना।
....श्री महाराज जी।

We should always feel God's presence with us every moment.
यह न भूलें कि भगवान् प्रतिक्षण हमारे साथ हैं।
----SHRI MAHARAJ JI.

जो समझा दे श्रुति सार, उर भरा प्रेम रिझवार।
सोई है सद्गुरु सरकार, गुरु सोई 'कृपालु' सरकार।।

Tuesday, July 22, 2014

For a spiritual aspirant, the effort to avoid all forms of Kusang is even more important than the practice of devotion.
.........SHRI MAHARAJJI.

त्रिभुवन में सत(सत्य) केवल हरि व हरिभक्त ही हैं, शेष असत(असत्य) हैं।
------श्री महाराजजी।

परमार्थ के मार्ग पर चलने वाले को भविष्य की चिन्ता कैसे? वह तो भगवान के शरणागत है,और शरणागत जीव का योगक्षेम भगवान स्वयं वहन करते हैं।
..........श्री महाराजजी।

विनम्र निवेदन.....
प्रिय साधक समुदाय।
श्री महाराज जी के चरणों में प्रणाम करते हुये गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक बधाई दे रही हूँ।
भक्ति - धाम में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है। यह श्री महाराजजी की जन्मस्थली आप सभी को श्री महाराजजी का दिव्य सन्देश दे रही है। यहाँ का कण कण दिव्य चिन्मय है जो भक्ति का अनुपम स्रोत है क्योंकि यहाँ श्री महाराजजी ने अहनिर्श श्यामा-श्याम गुण - गान कराया है।
अखण्ड संकीर्तन , करुण क्रन्दन युक्त साधना यही यहाँ का इतिहास है। यहाँ रहकर गुरु सेवार्थ जीवन समर्पित करने वाले तो धन्य हैं ही किन्तु आप सब भी परम सौभाग्यशाली हैं जो गुरुधाम में साधना करने के लिये समय समय पर आतें हैं। और श्री महाराजजी की सहर्ष सेवा करते हैं।

जे.के.पी. द्वारा जितने भी जनहित कार्य किये जा रहे हैं वह श्री महाराजजी की कृपा से अत्यधिक सुचार रूप से चल रहे हैं। वे स्वयं ही योगक्षेम वहन कर रहे हैं , किन्तु आप सभी से मैं आशा करती हूँ कि आप सभी सदैव श्री महाराजजी के कार्यों को आगे बढ़ाने में पूर्ण सहयोग करेंगे। उनके दिव्य संदेशों को , उनकी दिव्य वाणी को , उनके साहित्य को हमें जन -जन तक पहुँचाना है।
शुभकामनायों सहित
तुम्हरी बड़ी दीदी....

तुम , तुम और सिर्फ तुम......!
लो बस, खत्म हो गयी हमारी दास्ताँ ........!!
राधे-राधे।

एक -एक दिन करि बीते प्यारे।
मौत आ जायेगी,या आ जाओ प्यारे।।
.....श्री महाराजजी।

जिस प्रकार जल जाने के पश्चात् भी रस्सी अपने रस्सी रूप में ही संसार में दिखाई देती है। इसी प्रकार से संसार को हरि हरिजन के शुभ व् अशुभ कर्म ही दिखाई देते हैं उनका निर्विकार स्वरूप नहीं दीखता। उसे तो कोई महापुरुष ही देख सकता है। साधक को सदैव यह विचार करना चाहिये कि मायाबद्ध अवस्था में निरंतर अपनी मन - बुद्धि का योग हरि गुरु की बुद्धि से करने में ही कल्याण है।
~~~~~~~~जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

जो भक्त सिद्धावस्था को प्राप्त कर चुके हैं उन्हें कभी कहीं भी माया स्पर्श नहीं कर सकती। मायापति भक्त के पीछे - पीछे चलता है तब उसकी दासी माया भला भगवान् के प्राणप्रिय भक्तों का क्या बिगाड़ सकती है।
......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

प्रिय मित्रों.......राधे-राधे।
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आप सभी 'प्रेम मंदिर......श्री वृन्दावन धाम' सादर आमंत्रित हैं। 17 august को सभी व्यवस्थाएँ सुचारु रूप से संभालने हेतु मुझको कम से कम 100 volunteers की आवश्यकता है। मंदिर परिसर में अत्याधिक भक्तों के आगमन के कारण सब व्यवस्थाएँ पहले से ही तय करनी होंगी। कृपया अपना नाम एवं फोन no. एवं आप श्यामा-श्याम धाम कब पहुँच रहे हैं,ये सब detail मुझे sharadgupta40@yahoo.com पर प्रेषित करें। सभी साधकों से विनती है कि सेवा कार्य में बढ़-चढ़ के हिस्सा लें।
राधे-राधे।

Monday, July 21, 2014

Sadhana means practice, and siddhi, perfection. Sadhana leads to siddhi. In other words, practice makes perfect. In order to perfect skills like riding a bike, typing, playing the drums, sewing, swimming, cooking, designing a web page, speaking in public or playing chess, one is required to put in hours and hours of practice. In the very same way, if you wish to know God and taste His ever increasing bliss, you must devote some time for sadhana.
........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.


श्यामा को भूलो जनि कभू आठु यामा।
उनते भी कहो भूलें जनि तोहिं श्यामा।।

shyama ko bhulo jani kabhu athu yama.
unte bhi kaho bhulen jani tohin shyama.

Never forget your Svamini, Shyama. At the same time, pray to Her that She may never forget you too .
Shyama Shyam Geet - 70
-Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
Radha Govind Samiti.

सखी तू, उनहिन ओर ढुरे |
मानिनि कहति, सुनो सखि ! ललिता, वे सब भाँति बुरे |
हम उन ते नहिं बात करन चह, वे ऐसे निगुरे |
ऐसे घाव किये उनने जो, कैसेहुँ नाहिं पुरे |
तोरि दियो तृण सम सब नातो, अब नहिं नात जुरे |
सुनत ‘कृपालु’ ओट ते हरि उर, लागत बैन छुरे ||

भावार्थ – मानिनी वृषभानुनन्दिनी ललिता सखी से कहती हैं कि अरी सखी ! तू तो उन्हीं की ओर होकर बात करती है | अरी ललिता ! वे सब प्रकार से बुरे हैं | अब मैं उन निगोड़े श्यामसुन्दर से बात नहीं करना चाहती | उन्होंने हमारे हृदय में ऐसा घाव किया है कि जो किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं हो सकता | अब हमारा उनका तो सम्बन्ध नहीं रहा | हमने अपना सम्बन्ध तृण के समान तोड़ दिया है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि श्यामसुन्दर ओट से यह सब सुन रहे हैं | किशोरी जी के कटुवचन उनके हृदय में छुरे के समान लग रहे हैं |
( प्रेम रस मदिरा मान – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

रटो रे मन! छिन-छिन राधे नाम............!!!!!

Most people today combine devotion to God with worship of celestial gods and goddesses. Some even worship ghosts and spirits! All this is a deception. When God is the source of all material and non-material powers, why bother to worship so many Deities? It should be remembered that worship of all powers will not amount to devotion to God, but worship of God alone, will amount to worship of all powers.
.......JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.


जिस जीव का अंत:करण जितना पापयुक्त होगा, उसको उतनी ही मात्रा में संत के प्रति अश्रद्धा होगी। वो हर जगह बुद्धि लगायेगा और तर्क, वितर्क, कुतर्क, अतितर्क, संशय करेगा। जितना अधिक पाप होगा अंदर, उतना ही हम दूर जाते जाएंगे महापुरुष और भगवान से।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

अनंत जन्मों तक माथा पच्ची करने के पश्चात भी जो दिव्य ज्ञान हमें न मिलता वह हमारे गुरु ने इतने सरल और सहज रूप में हमें प्रदान कर दिया, अब इसके बाद हमारी ड्यूटि है कि उस तत्त्वज्ञान को बार-बार चिंतन द्वारा पक्का करके उसके अनुसार प्रैक्टिकल करें। अब हमने यहाँ लापरवाही की, एक ने कुछ परवाह की, एक ने और परवाह की, एक ने पूर्ण परवाह की, पूर्ण शरणागत हो गया, अब महापुरुष ने तो अकारण कृपा सबके ऊपर की, सबको स
मझाया। लेकिन उसमें एक घोर संसारी ही रहा, एक थोड़ा बहुत आगे बढ़ा, एक कुछ ज्यादा आगे बढ़ा, एक सब कुछ त्याग करके 24 घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति पर। पर जो 24 घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति हेतु क्या उसके ऊपर विशेष कृपा हुई, यह सोचना मूर्खता है। कृपा तो सब पर बराबर हुई लेकिन तपे लोहे पर पानी पड़ा छन्न, जल गया और कमल के पत्ते पर पड़ा तो मोती की तरह चमकने लगा और वही पानी अगर सीप में पड़ा स्वाति का तो मोती बन गया। पानी तो सब पर बराबर पड़ रहा है लेकिन जैसा पात्र है, जैसा मूल्य समझा जितना विश्वास किया जितना वैराग्य है जिसको उसका बर्तन उतना बना, उसके हिसाब से उसने उतना लाभ उठाया। तो महापुरुष की यह कृपा है तत्त्वज्ञान करवा देना। क्योंकि बिना तत्त्वज्ञान के हम साधना भी क्या करते, भगवदप्राप्ति का तो प्रश्न ही नहीं है। तर्क, कुतर्क, संशय ही करते रहते, इसी में पूरा जीवन बीत जाता, मानव देह व्यर्थ हो जाता। साधना करते भी तो अपने अल्पज्ञान या गलत ज्ञान के अनुसार ही करते जिससे कोई लाभ नहीं होता।

--------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाप्रभु।

Realise the importance of this human birth and do not waste it in merely eating, drinking and making merry. This human body is inaccessible even to celestial gods. Having attained this precious birth, if we still fail to attain our ultimate aim in life, we will later regret our foolishness. There is no other form of life in which we will be able to do anything towards the attainment of our ultimate goal.
.......SHRI MAHARAJ JI.

JAGADGURU ADESHA.............
Your ultimate goal is the attainment of divine love of
Shri Krishna and His eternal service.
This divine love can be attained only through the grace of your Guru.
The grace of your Guru will be attained upon complete purification of the heart.
The purification of the heart is only possible through devotional practice as
instructed by your Guru.

SADHANA...........
Shed tears of longing for the divine vision and divine love of
Shri Radha Krishna, singing the glories of their
names, qualities, pastimes, etc.
along with rupadhyana (mental visualisation of the divine forms of Shri Radha Krishna).
You are free to choose any form,
but whatever form you meditate on, you must feel that it is divine.
Always feel the presence of Lord Krishna with you.
Abandon all desires up to the desire for liberation.
Practice devotion only with the desire of attaining selfless divine love.
Develop strong faith that Shri Krishna alone is mine and intensify your yearning for Him.
Avoid spiritual transgressions such as fault finding etc.
and consider each moment of this human life to be invaluable.

I will always be there to guide you.
Yours
Kripalu.

जगत की प्राप्ति जीव का लक्ष्य नहीं हैं। जीव भगवान् का अंश है अतः अपने अंशी को प्राप्त कर ही आत्मा की शांति को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार का वास्तविक विवेक गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है। ऐसा विवेक जाग्रत करने वाले गुरु को अपने करोड़ों प्राण देकर भी कोई उनके ऋण से उऋण होना चाहे तो यह जीव का मिथ्या अभिमान है।
......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

Sunday, July 20, 2014

मन में निश्चय करो की हमारा लक्ष्य हरि-गुरु सेवा ही रहे, हम उनके लिए ही सब कार्य करें, उन्हीं के लिए ही जियें और अंत में भगवान का स्मरण करते हुए ही इस नश्वर शरीर को त्याग कर भगवान के श्रीचरणों में चलें जाएँ ।
जय श्री राधे।
'Shree Maharajji' ---- this is what we call Him lovingly... He is *The* 'JAGADGURU' - the teacher of entire world, yet He asks question as if He is a Ist standard kid... He is *The* epitome of Divine Love, yet He asks for divine love...... He Himself is *The* Avataar of Radha Rani yet He chants Radhey Radhey every second... His one thought can change the entire equations of countless Universe yet He asks His satsangees to do everything...... He is *Kripalu* - ever gracious 'kripa avataar' - which this mankind would cherish for countless ages... Thats why we satsangees says: Auran Ko Guru Ho Ya Na Ho, Guru Mero *Kripalu* Subhaag Hamaro!!

मैं आप लोगो से फिर से निवेदन करता हूँ,आज्ञा देता हूँ कि खाली समय का सदुपयोग करें,काम में ले,कुछ कमा ले,'राधे' नाम का जाप करें। मेरी बात पर विश्वास करके अगर दस दिन कर लिया तो आदत पड़ जायेगी,फिर 'राधे' जाप के बिना रहा नहीं जायेगा। कुछ दिन जबरदस्ती किसी चीज का अभ्यास कर लो,फिर आदत पड़ जाती है,अपना खाली समय काम में लो।
........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

If you have Shri Krishna and nothing else, you have everything. If you have everything but not Shri Krishna, you have nothingl. Shri Krishna is your greatest wealth. No one can steal this wealth from you, nor can anyone rob you of it.
----SHRI MAHARAJ JI.

''हमारे श्री महाराजजी की वाणी सनातन वेद वाणी है। उनके श्रीमुख से नि:सृत एक-एक शब्द, उपदेश साक्षात भगवान श्री कृष्ण के ही उपदेश हैं। हमें उन्हे विश्वास एवं श्रद्धा से हृदयंगम करना चाहिये।''

साधक ने अपनी बुद्धि को जब महापुरुष एवं भगवान् के ही हाथ बेचा है , तब उसे अपनी बुद्धि को महापुरुष के आदेश से ही सम्बद्ध रखना चाहिये। लोक में भी देखो , एक कूपमण्डूक अत्यन्त मूर्ख ग्रामीण भी , अपने मुकदमे में किसी व्युत्पन्न वकील के द्वारा प्रमुख कानूनी विषयों को अपनी बुद्धि में रखकर धुरन्धर वकील की जिरह में भी नहीं उखड़ता।
****** श्री महाराज जी।

Saturday, July 19, 2014

BHAKTI is not the physical act of observing the worshipping formalities or doing jap without meditation.It is the affinity of your heart which sprouts longing for your divine beloved Radhakrishn.
.......SHRI MAHARAJ JI..

श्रीकृष्ण, उनके नाम, उनके गुण, उनकी लीला, उनके धाम, उनके संतजनो में पूर्ण अभेद मानना है। यह सब श्री कृष्ण ही है।
........श्री महाराज जी।

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु के श्रीमुख से:-
'स्मरण',एक मिनट तो क्या एक क्षण से शुरू होता है, इसे बढ़ाना ही साधना है। इस एक क्षण के स्मरण को मरण तक बढ़ाते रहना है। यह एक क्षण का स्मरण जब एक क्षण को भी विस्मृत न हो ,यही लक्ष्य की सिद्धि है।

सूर्य के उदय होते ही प्रकाश पा कर वस्तुएँ दिखायी देने लगती हैं। इसी प्रकार संत साधक को दिव्य द्रष्टि प्रदान कर हरि का प्रत्यक्ष दर्शन करा देते हैं।
*********जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु।

"हम लोगो ने कभी नहीं सोचा,कि ये मानव देह की क्या इम्पोर्टेंस(importance) है....हम देख तो रहे हें, एक गढ़े में, करोडो कीड़े कैसा जीवन बिता रहे है....हम भी कभी वही थे......
एक जंगल का प्राणी, भूख के मारे मर जाता है, पानी के मारे मर जाता है, उससे बलवान प्राणी उसको खा जाता है, वो कुछ नहीं कर सकता...ये सब हम लोग देख रहे है आँख से, कि हम भी उन सब योनियों में जा चुके है और वे सब दुःख भोग चुके है और हम फिर वही गलती कर रहे है, कि मानव देह पाकर और इस देह का महत्व realize नहीं करते, महसूस नहीं करते....
और फिर मानव देह मिल भी गया है...आज ७ अरब(7 Billion) आदमी है हमारी दुनिया में , १९३ देश(193 countries) है..१९३ देशो की आबादी ७ अरब...मनुष्यो की ......
कितने आदमियों को तत्वज्ञान दिया है किसी गुरु ने ??...
सोचिये अकेले में......
ये सौभग्य कितने लोगो को मिला है, शायद ७ करोड़ भी नहीं होंगे ऐसे...जिनको पूरा पूरा ज्ञान हो गया हो....हम कौन है?, हमें क्या करना है? और हमारा लक्ष्य क्या है और वो कैसे मिलेगा?
ये ज्ञान बेठ गया हो...किसी को थोडा सा ज्ञान है, बिचारे को कम मौका मिला है, किसी को गलत ज्ञान है, उसने बहोत मेहनत की है लेकिन उसका गाइड(Guide) गलत था, इसलिए गलत ज्ञान हो गया, गलत साधना कर रहा है जिंदगी भर.....तो बार बार सोचिये की हम कितने सौभाग्यशाली है और इस देह का महत्व realize करो क्षण क्षण...!!!!!!"
.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

जीवन क्षणभंगुर है, अपने जीवन का क्षण क्षण हरि-गुरु के स्मरण में ही व्यतीत करो, अनावश्यक बातें करके समय बरबाद न करो। कुसंग से बचो, कम से कम लोगो से संबंध रखो, काम जितना जरूरी हो बस उतना बोलो।
-----श्री महाराज जी।

परमार्थ के मार्ग पर चलने वाले को भविष्य की चिन्ता कैसे? वह तो भगवान के शरणागत है,और शरणागत जीव का योगक्षेम भगवान स्वयं वहन करते हैं।
..........श्री महाराज जी।

The Divine Love that is the goal of human life cannot be stolen since God and Guru are all-knowing. It cannot be robbed since God and Guru are all-powerful. It can only be begged for. And it is God's law that anyone who begs for it with 100% sincerity is guaranted to get it.
......JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

When you have faith in someone, you begin to like him. When you like him more, you begin to love him. When you love him, you like to serve him. When you serve him, you become humble and like to be near him, and all that ends up in deep affinity. A true affinity has no demands and no requisites. There is only one desire: to love him and to serve him and to make him happy, because you feel happy in his happiness. Such feelings for Radha Krishn is Bhakti.
........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHAPRABHU.

श्रवण कीर्तन स्मरण ही है ,प्रमुख साधन प्यारे।
स्मरण ही को साधना का, प्राण मानो प्यारे।।

सकल दुख का मूल है इक, हरि विमुखता प्यारे।
हरिहि सन्मुखता है याकी, एक औषधि प्यारे।।

स्मरणयुक्त नित रोके माँगो,प्रेम हरि का प्यारे।
उनके सुख को मानु निज सुख लक्ष्य यह रखु प्यारे।।

------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु के श्रीमुख से:
क्रोध आया कि सर्वनाश हुआ। बदतमीज़ कहने पर 'बदतमीज़' बन गए। आप इतने मूर्ख हैं कि एक मूर्ख ने 'मूर्ख' कह कर आपको मूर्ख बना दिया।

साधक ने अपनी बुद्धि को जब महापुरुष एवं भगवान् के ही हाथ बेचा है , तब उसे अपनी बुद्धि को महापुरुष के आदेश से ही सम्बद्ध रखना चाहिये। लोक में भी देखो , एक कूपमण्डूक अत्यन्त मूर्ख ग्रामीण भी , अपने मुकदमे में किसी व्युत्पन्न वकील के द्वारा प्रमुख कानूनी विषयों को अपनी बुद्धि में रखकर धुरन्धर वकील की जिरह में भी नहीं उखड़ता।
****** श्री महाराज जी।

भजन आज करेंगे, आज पर भी मत टालों। तुरन्त प्रारम्भ कर दो क्योंकि मृत्यु नाम की फाँसी आशा लगाये बैठी है।
.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

DIVINE CHARAN DARSHAN OF SHRI KRIPALU MAHAPRABHU JI... 

RADHEY - RADHEY.

Wednesday, July 9, 2014

हे प्रभु ! मैं तो सदा से ही माया से भ्रमित होकर आपसे विमुख होकर संसार में भटकता रहा। गुरु कृपा से मेरी मोह निद्रा टूटी। उनके इस उपकार के बदले में मैं कंगाल भला कौन सी वस्तु उन्हें अर्पित कर सकता हूँ। क्योंकि गुरु के द्वारा दिये गये ज्ञान के उस शब्द के बदले सम्पूर्ण विश्व की सम्पति भी उन्हें सौंप दी जाय तो भी ज्ञान का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता। ज्ञान दिव्य है और सांसारिक पदार्थ मायिक हैं।
--------जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु ।

पंच तत्व अरु अहं का, भेदन करि दे ज्ञान।
पै बिनु भक्ति न करि सके , भेदन प्रकृति महान।।६२।।

भावार्थ- ज्ञानी , ज्ञान से पृथिवी , जल , तेज , वायु एवं आकाश तथा उससे भी परे अहंकार आवरणों का भेदन कर देता है। किन्तु अहंकार से परे २ तत्व महान एवं प्रकृति अवशिष्ट रह जाते हैं। इन दोनों में भी प्रमुख प्रकृति या माया है। यह प्रकृति केवल भक्ति से ही समाप्त की जा सकती है।
भक्ति शतक (दोहा - 62)
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)