Saturday, April 12, 2014

बहुत सावधान होकर के साधना की रक्षा करना है। ये सब लोग सोचते रहो।
डेली सबेरे उठकर दो मिनट ये सोचो -- आज हमको सावधान रहना है।
फिर रात को सोते समय सोचो -- आज हमने कहाँ - कहाँ गड़बड़ किया।
इस प्रकार अभ्यास करो तो १० दिन २० दिन में ही अपने को तुम बहुत आगे पाओगे कि आज हमारे बेटे ने ऐसा कहा लेकिन मैं चुप रही। जीत गयी। आज क्रोध नहीं आया। गाली - गलौच और जलना दुःख में, क्रोध में - ये सब नहीं हुआ।
फिर अगले दिन - आज हो गया एक जगह गड़बड़। अब कल नहीं होने पायगा।
ऐसे अभ्यास किया जाता है। दिन भर रात भर लापरवाह रहे, जो होना है होने दो, तो फिर माया है ही है वो तो नचा डालेगी तुमको, बर्बाद कर देगी। इस मन से बड़े - बड़े योगी लोग हार गये। लापरवाही किया कि गये।
बहुत सँभल कर चलना है, जितने क्षण मानवदेह के मिले हैं उसको अमुल्य समझना है पता नहीं कल का दिन मिले न मिले और हम राग द्वेष में समाप्त कर दें।

......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

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