Tuesday, June 7, 2016

हरि गुरु के प्रति अनन्य भक्ति हो और निष्काम हो। उनकी इच्छा में इच्छा रखना ,उनको सुख देना, तन मन धन से सेवा करना,अपना सर्वस्व मानना,निरंतर मानना,यही प्रेम है,शरणागति है। जिसने ये शर्तें पूरी कर दीं वो कृतार्थ हो गया। जिसने नहीं पूरी कीं वो चौरासी लाख योनियों में जैसे कोल्हू का बैल होता है ऐसे घूम रहा है बेचारा ।

..........जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाप्रभु।

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