सत्य अहिंसा आदि मन!
बिनु हरिभजन न पाय।
जल ते घृत निकले नहीं,
कोटिन करिय उपाय।।
भक्ति शतक------जगद्गुरू श्री कृपालुजी महाराज।
... भावार्थ: सत्य,अहिंसा आदि दैवी गुण केवल श्रीक़ृष्ण भक्ति से ही मिल सकते हैं। जैसे पानी मथने से घी नहीं निकल सकता। ऐसे ही अन्य करोड़ो उपायों से भी दैवी गुण नहीं मिलते।
जब तक भगवान की भक्ति न की जायेगी तब तक अंत:करण शुद्ध ही नहीं होगा। बिना अंत:करण शुद्ध हुए हम सत्य आदि दैवी गुणों का प्रदर्शन मात्र कर सकते हैं, किन्तु वास्तव में दैवीगुण युक्त नहीं हो सकते। केवल मन से सोचने मात्र से हमारा मन शुद्ध नहीं होगा। हाँ -यह हो सकता है कि बारबार सोचने से ,परलोक के भय से कुछ मात्रा में बहिरंग रूप से इन गुणो का दिखावा कर लें।
------श्री महाराजजी.
बिनु हरिभजन न पाय।
जल ते घृत निकले नहीं,
कोटिन करिय उपाय।।
भक्ति शतक------जगद्गुरू श्री कृपालुजी महाराज।
... भावार्थ: सत्य,अहिंसा आदि दैवी गुण केवल श्रीक़ृष्ण भक्ति से ही मिल सकते हैं। जैसे पानी मथने से घी नहीं निकल सकता। ऐसे ही अन्य करोड़ो उपायों से भी दैवी गुण नहीं मिलते।
जब तक भगवान की भक्ति न की जायेगी तब तक अंत:करण शुद्ध ही नहीं होगा। बिना अंत:करण शुद्ध हुए हम सत्य आदि दैवी गुणों का प्रदर्शन मात्र कर सकते हैं, किन्तु वास्तव में दैवीगुण युक्त नहीं हो सकते। केवल मन से सोचने मात्र से हमारा मन शुद्ध नहीं होगा। हाँ -यह हो सकता है कि बारबार सोचने से ,परलोक के भय से कुछ मात्रा में बहिरंग रूप से इन गुणो का दिखावा कर लें।
------श्री महाराजजी.
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