Monday, September 19, 2011

जग में रहो ऐसे गोविंद राधे ।
धर्मशाला में यात्री रहें ज्यों बता दे ॥
धर्मशाला को ही गोविंद राधे ।
निज घर मान लेना मूर्खता बता दे ॥
ऐसे ही जग को भी गोविंद राधे ।
...
अपना मान लेना है मूर्खता बता दे ॥
जग में रहो ऐसे गोविंद राधे ।
तन ते हो कर्म मन हरि में लगा दे ॥
जग में रहो ऐसे गोविंद राधे ।
गाय घास चरे बछड़ा ना भुला दे ॥
जग में रहो ऐसे गोविंद राधे ।
जल में रहे माखन ज्यों बता दे ॥
जग में रहो ऐसे गोविंद राधे ।
नाटक में ज्यों कोई पात्र बता दे ॥
जग में रहो ऐसे गोविंद राधे ।
ना हो शत्रु कोई ना ही मित्र बता दे ॥
जग में रहो ऐसे गोविंद राधे ।
राग द्वेष ना हो अभिनय ही करा दे ॥


!!!!जगद्गुरू श्री कृपालु जी महाराज!!!

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