Thursday, September 15, 2011

हमारो, दोउ प्यारी प्यारो |
एक गौर तनु एक नील-तनु, दोउ नैननि-तारो |
इक धारो नीलांबर अरु इक, पीतांबर धारो |
इक सोरह श्रृंगारहिं छवि इक, नटवर-छवि वारो |
इक भोरी अति इक अति चंचल, दोउ त्रिभुवन न्यारो |
... कह ‘कृपालु’ जब होति होड़ तब, कोउ नहिं कोउ हारो ||

भावार्थ- प्रिया-प्रियतम दोनों ही हमारे सर्वस्व हैं | एक गौर वर्ण और एक नील वर्ण के हैं तथा दोनों ही मेरी आँखों के तारों के समान हैं | एक नीलाम्बर धारण किये हुए हैं एवं एक पीताम्बर धारण किये हुए हैं | एक सोलहों श्रृंगार से अलंकृत हैं, एवं एक नटवर वेष से अलंकृत हैं | एक स्वभावत: अत्यन्त भोली हैं, और एक स्वभावत: अत्यन्त चंचल हैं | दोनों ही संसार से निराले हैं, क्योंकि दिव्य चिन्मय हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं जब दोनों में किसी प्रकार की रसमयी होड़ हो जाती है तब कोई भी किसी से हार नहीं मानता क्योंकि स्वरूपत:, परमार्थत: दोनों एक ही हैं |


(प्रेम रस मदिरा युगल-माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति

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