महापुरुष कि चाहे घोर से घोर विपरीत क्रिया ही क्यों न मालूम पड़े ,उसमे अपनी बुद्धि नहीं लगानी चाहिए । उनकी हर क्रिया जीव कल्याण के लिए होती है,जिसमे कृपा ही कृपा छिपी होती है। मनुष्य अपनी मायिक बुद्धि से, इस दो अंगुल कि खोपड़ी से वास्तविक महापुरुष कि 'क्रियाओं मेँ छिपी कृपाओं' को कभी नहीं समझ सकता। उनकी तो हर क्रिया ही कृपा है ।
-------जगद्गुरू श्री कृपालुजी महाराज.
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