भला तुम कैसे हो भगवान |
प्रीति करत नित पर नारिन सों, लंपट नर उनमान |
पतिव्रत-धर्म मिटावत आपुहिं, आपुहिं करत बखान |
वेद वेध जब वेद न मानत, और कौन पुनि मान |
हरि कह ‘दैहिक धर्म पतिव्रत, ता फल स्वर्गहिं जान |
... यह ‘कृपालु’ परधर्म मोरि-रति, ता फल दिव्य महान’ ||
भावार्थ- एक भोली भाली सखी कहती है कि हे श्यामसुन्दर ! तुम भला भगवान् कैसे हो सकते हो ? तुम विषयासक्त मनुष्य की भाँति पर स्त्रियों से प्यार करते हो तथा स्वयं ही पतिव्रत धर्म की वेदों में प्रशंसा करते हुए स्वयं ही उसे नष्ट भी करते हो | वेदों से जानने योग्य भगवान् ही जब वेद को नहीं मानता तो फिर भला और कौन मानेगा | श्यामसुन्दर ने कहा सांसारिक पतियों से अनन्य प्रेम होना ही पतिव्रत धर्म है, जिसे दैहिक धर्म भी कहते हैं | इसका फल क्षणभंगुर स्वर्ग ही है एवं ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में परम पति परमेश्वर में अनन्य प्रेम होना ही परधर्म है, इसका फल अनन्त काल के लिए दिव्य पमानन्द प्राप्ति अथवा गोलोक प्राप्ति है |
(प्रेम रस मदिरा श्री कृष्ण-बाल लीला- माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.
प्रीति करत नित पर नारिन सों, लंपट नर उनमान |
पतिव्रत-धर्म मिटावत आपुहिं, आपुहिं करत बखान |
वेद वेध जब वेद न मानत, और कौन पुनि मान |
हरि कह ‘दैहिक धर्म पतिव्रत, ता फल स्वर्गहिं जान |
... यह ‘कृपालु’ परधर्म मोरि-रति, ता फल दिव्य महान’ ||
भावार्थ- एक भोली भाली सखी कहती है कि हे श्यामसुन्दर ! तुम भला भगवान् कैसे हो सकते हो ? तुम विषयासक्त मनुष्य की भाँति पर स्त्रियों से प्यार करते हो तथा स्वयं ही पतिव्रत धर्म की वेदों में प्रशंसा करते हुए स्वयं ही उसे नष्ट भी करते हो | वेदों से जानने योग्य भगवान् ही जब वेद को नहीं मानता तो फिर भला और कौन मानेगा | श्यामसुन्दर ने कहा सांसारिक पतियों से अनन्य प्रेम होना ही पतिव्रत धर्म है, जिसे दैहिक धर्म भी कहते हैं | इसका फल क्षणभंगुर स्वर्ग ही है एवं ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में परम पति परमेश्वर में अनन्य प्रेम होना ही परधर्म है, इसका फल अनन्त काल के लिए दिव्य पमानन्द प्राप्ति अथवा गोलोक प्राप्ति है |
(प्रेम रस मदिरा श्री कृष्ण-बाल लीला- माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.
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