महापुरुष के कार्यों में बुद्धि का प्रयोग करना गलत है। थोड़ा सा प्रतिकूल चिंतन हुआ और सावधान नहीं हुआ यानि उसने यह नहीं सोचा कि उनका तो प्रत्येक कार्य करुणा के कारण ही होता है। फिर उनसे गलत काम कैसे हो सकता है? बार-बार इस अनुकूल चिंतन से अपने को सावधान करते रहना होगा, एक क्षण का विपरीत चिंतन भी घोर पतन में डाल सकता है। महापुरुष कभी रसिकता में अटपटे कार्य करते हैं,कभी जीव को विपरीत परिस्थिति देकर भी परखते हैं। यदि निष्कामता का सिद्धान्त साथ में रखोगे तो कभी बुरा न लगेगा।
------श्री महाराजजी.
------श्री महाराजजी.
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