वेद शास्त्र कहे संबंध अभिधेय प्रयोजन।
कृष्ण, कृष्ण भक्ति, प्रेम,तिन महाधन।।
श्रवण कीर्तन स्मरण ही है ,प्रमुख साधन प्यारे।
स्मरण ही को साधना का, प्राण मानो प्यारे।।
सकल दुख का मूल है इक, हरि विमुखता प्यारे।
हरिहि सन्मुखता है याकी, एक औषधि प्यारे।।
स्मरणयुक्त नित रोके माँगो,प्रेम हरि का प्यारे।
उनके सुख को मानु निज सुख लक्ष्य यह रखु प्यारे।।
श्री महाराजजी बताते हैं कि: तीन चीज़ प्रमुख है- 'हरि', 'गुरु' और 'हरि-गुरु' की मिलन वाली पावर, 'भक्ति'। इन तीनों में 'अनन्य' रहो।
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