Tuesday, September 20, 2011

हमको महापुरुष के किसी भी बहिरंग व्यवहार से उनको नहीं नापना है।
------श्री महाराजजी.


संत का केवल एक ही लक्ष्य होता है, जीव को ईश्वर की और ले जाना।
------श्री महाराजजी.




हम जो कुछ करते हैं वह गलत हो सकता है, किन्तु महापुरुष जो कुछ करता है ,"सही ही है" । ऐसा सोचना चाहिए।
-------श्री महाराजजी.


संसारी दोष कितने कम हुए, हमे इस पर हर समय दृष्टि रखनी है । हमारे स्वभाव मेँ अहमता, ममता कितनी कम हुई ,इस और ध्यान देना है । स्वाभिमान कितना कम हुआ,अपने अपमान का अनुभव होना कितना कम हुआ,आत्म-प्रशंसा कितनी अचछी लगती है । संसारी विषयों के अभाव मेँ कितना दुख होता है,उनके मिलने मेँ कितना सुख मिलता है, यह सब अपनी आध्यात्मिक उन्नति को नापने का सबसे बढ़िया पैमाना है।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.

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