Sunday, September 25, 2011




श्री राधाकृष्णभ्याम नम:
श्री गुरवे नम: श्री गुरवे नम: श्री गुरवे नम:!

हे परम प्रियतम पूर्णतम पूरुषोत्तम श्री कृष्ण! तुमसे विमुख होने के कारण अनादिकाल से हमने अनंतानंत दुख पाये एवं पा रहे हैं। पाप करते करते अंत:करण इतना मलिन हो चुका है कि रसिकों द्वारा यह जानने पर भी कि तुम अपनी भुजाओं को पसारे अपनी वात्सल्यमयी दृष्टि से हमारी प्रतीक्षा कर रहे हो, तुम्हारी शरण में नहीं आ पाता।
हे अशरण शरण! तुम्हारी कृपा के बिना तुम्हें कोई जान भी तो नहीं सकता।ऐसी स्थिति मेँ,हे अकारण करुण! पतितपावन श्रीकृष्ण! तुम अपनी अहैतुकी कृपा से ही हमको अपना लो। हे करुणा सागर! हम भुक्ति-मुक्ति आदि कुछ नहीं मांगते ,हमें तो केवल तुम्हारे निष्काम प्रेम की ही एकमात्र चाह है।
...
हे नाथ! अपने विरद की और देखकर इस अधम को निराश न करो। हे जीवनधन! अब बहुत हो चुका,अब तो तुम्हारे प्रेम के बिना यह जीवन मृत्यु से भी अधिक भयानक है। अतएव:
प्रेम भिक्षां देहि, प्रेम भिक्षां देहि, प्रेम भिक्षां देहि।
साकेत बिहारी श्री राघवेंद्र सरकार की जय।
वृन्दावन बिहारी श्री यादवेन्द्र सरकार की जय।
श्रीमद सद्गुरु सरकार की जय।
जय-जय श्री राधे जय-जय श्री राधे जय-जय श्री राधे।

--------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.

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