Tuesday, September 6, 2011

ओं माँ श्यामा तेरी जो चरण शरण आये!
माया की कौन कहे मायापति घबराये!
वनचरिन आचरन को श्रुति निंदित बतराये,
सहचरि करि उन सबको निज भुज भरि उर लाये!
तव पद रज पावन को पद्माहूँ ललचाये,
...
ब्रज लता विटप बननो ब्रह्माहूँ मन भाये!
तेरी अनुकम्पा ते शिव गोपी बनि आये,
सनकादि ब्रह्मज्ञानी तन लतन पतन पाये!
चाहत "कृपालु" मेरी तेरी ही कहलाये,
भूले भटके कबहूँ तव सेवा मिल जाए!
तुम्हरी महिमा श्यामा, शयामहुं नहिं जानि सके,
धरि रूप अनंत थके, नहि ओर छोर पाये!
कोऊ साधन बल तुहम्हरी, पदरज नहिं पाइ सके ,
बिनु हेतु “कृपालु" तुम्हें, तुम्हरे जन बतलाये!

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