Wednesday, September 7, 2011

प्रभु जी ! भले बुरे हम तेरे |
उदर भरे पर महा आलसी, सोवत साँझ सवेरे |
काम क्रोध अरु ममता तृष्णा, रहत सदा नित घेरे |
माया-वश सब जनम गमायो, भटक फिरे बहुतेरे |
तुम बिनु कौन सहायक मेरो, बैरी बहुत घनेरे |
...
दास ‘कृपालु’ आस तजि सब की, भये श्याम के चेरे ||
भावार्थ- हे श्यामसुन्दर ! हम अच्छे या बुरे जैसे भी हैं तुम्हारे हैं | पेट भरने पर अत्यन्त आलस्य से युक्त होकर सांयकाल से प्रात:काल तक सोते रहते हैं | हे नाथ ! काम, क्रोध, ममता, एवं लालच आदि ने मेरे ऊपर पूर्ण अधिकार जमा रखा है | आपकी माया के वशीभूत होकर सारा जीवन इधर-उधर भटक कर व्यर्थ ही गँवा दिया है | तुमको छोड़कर दूसरा कोई भी मेरी सहायता करने वाला नहीं है | सभी स्वजन बनकर शत्रु की भाँति स्वार्थ सिद्ध करना चाहता हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं, सभी आशाओं को छोड़कर एवं सबसे संबन्ध तोड़ कर श्यामसुन्दर के दास हो गये हैं |

(प्रेम रस मदिरा दैन्य-माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति

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