PREM RAS MADIRA.....प्रकीर्ण माधुरी...Padd no-21.श्री राधे हमारी सरकार,फिकिर मोहि काहे की|
हित अधम उधारन देह धरे,
बिनु कारन दिनन नेह करे,
जब ऐसी दया दरबार ,फिकिर मोहि काहे की|
...तुक निज-जन क्रंदन सुनी पावे,
तजि श्यामाहू निज जन पह धावे,
जब ऐसी सरल सुकुमार,फिकिर मोहि काहे की|
भृकुटी नित ताकत ब्रह्मा जाकी,
ताकि शरनाई डर काकी,
जब ऐसी हमारी सरकार,फिकिर मोहि काहे की|
जो आरत "मम स्वआमीनी!" भकैई ,
तेहि पुतरिन सम आखिन राखै|
जब ऐसे "कृपालु" रिझवार ,फिकिर मोहि काहे की||
जब किशोरी जी हमारी स्वामिनी है तब मुझे किस बात की चिंता है?
जो पतितो के उद्धार के लिए ही अवतार लेती है ,औरअकारण ही दीनो से प्रेम करती है.
जब हमारी स्वामिनी के दरबार में इतनी अपार दया है,तब मुझे किस बात की चिंता है.
हमारी स्वामिनी जी अपने शरणागत की थोड़ी भी करुण पुकार सुनते ही अपने प्राणेश्वर श्यामसुंदर को भी छोड़कर अपने जन के पास तत्क्षण अपनी सुधि-बुधि भूलकर दौड़ आती है.
जब हमारी किशोरी जी इतनी सुकुमार और सरल स्वभाव की है,तब मुझे किस बात की चिंता है.
ब्रह्म श्रीकृष्ण भी जिनकी बोहे देखते रहते है अर्थात प्यारे श्यामसुंदर भी जिनके संकेत से चलते है,उनके शरण में जाकर फिर किसका भय है.
जब ऐसे स्वामिनी जी हमारी रक्षा करने वाली तब मुझे किस बात की चिंता है.
जो शरणागत होकर दृढ़ निष्ठापूर्वक "मेरी स्वामिनी जी!" ऐसा कह देता है,उसे स्वामिनी जी अपनी आंखोंकी पुतली के सामान रखती है.
"श्री कृपालुजी" कहते है----- की जब हमारी स्वामिनी जी शरणागत से इतना प्यार करती है तब मुझे किस बात की चिंता है
हित अधम उधारन देह धरे,
बिनु कारन दिनन नेह करे,
जब ऐसी दया दरबार ,फिकिर मोहि काहे की|
...तुक निज-जन क्रंदन सुनी पावे,
तजि श्यामाहू निज जन पह धावे,
जब ऐसी सरल सुकुमार,फिकिर मोहि काहे की|
भृकुटी नित ताकत ब्रह्मा जाकी,
ताकि शरनाई डर काकी,
जब ऐसी हमारी सरकार,फिकिर मोहि काहे की|
जो आरत "मम स्वआमीनी!" भकैई ,
तेहि पुतरिन सम आखिन राखै|
जब ऐसे "कृपालु" रिझवार ,फिकिर मोहि काहे की||
जब किशोरी जी हमारी स्वामिनी है तब मुझे किस बात की चिंता है?
जो पतितो के उद्धार के लिए ही अवतार लेती है ,औरअकारण ही दीनो से प्रेम करती है.
जब हमारी स्वामिनी के दरबार में इतनी अपार दया है,तब मुझे किस बात की चिंता है.
हमारी स्वामिनी जी अपने शरणागत की थोड़ी भी करुण पुकार सुनते ही अपने प्राणेश्वर श्यामसुंदर को भी छोड़कर अपने जन के पास तत्क्षण अपनी सुधि-बुधि भूलकर दौड़ आती है.
जब हमारी किशोरी जी इतनी सुकुमार और सरल स्वभाव की है,तब मुझे किस बात की चिंता है.
ब्रह्म श्रीकृष्ण भी जिनकी बोहे देखते रहते है अर्थात प्यारे श्यामसुंदर भी जिनके संकेत से चलते है,उनके शरण में जाकर फिर किसका भय है.
जब ऐसे स्वामिनी जी हमारी रक्षा करने वाली तब मुझे किस बात की चिंता है.
जो शरणागत होकर दृढ़ निष्ठापूर्वक "मेरी स्वामिनी जी!" ऐसा कह देता है,उसे स्वामिनी जी अपनी आंखोंकी पुतली के सामान रखती है.
"श्री कृपालुजी" कहते है----- की जब हमारी स्वामिनी जी शरणागत से इतना प्यार करती है तब मुझे किस बात की चिंता है
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