Friday, August 19, 2011


नंद महर-घर बजत बधाई |
जायो  पूत आजू नंदरानी,नाचत गावत लोग लुगाई,                                                                                    दूध दही   माखन की कांदो, सब मिलि भादों मास मचाई |
बाजत झाँझ मृदंग उपंगहिं , वीना वेनु शंख शहनाई |
छिरकत चोवा चंदन थिरकत, करि जयकार कुसुम बरसाई |
शिव समाधि बिसराई भजे ब्रज, देखन के मिस कुँवर कन्हाई |
...याचक भये अयाचक सिगरे, हम 'कृपालु' धनि ब्रजरज पाई |

गोकुल में नंदराय बाबा के घर में श्रीकृष्ण के अवतार लेने के उपलक्ष्य में बधाई बज रही हे | ( यद्दपि श्रीकृष्ण का अवतार मथुरा में लीला-रूप से देवकी के गर्भ से हुआ था, एवं अर्धरात्रि के ही समय वसुदेव श्रीकृष्ण को उनकी योगमाया के सहारे यशोदा के पास सुला आये, एवं उसी समय यशोदा के गर्भ से उत्तपन योगमाया को अपने साथ ले आये थे, किन्तु प्रकट रूप से यह रहस्य यशोदा भी नहीं जानती थी |

केवल वसुदेव, देवकी ही जानते थे | अतएव समस्त गोकुल-ग्राम-वासियों को यही ज्ञान रहा कि आज रात को यशोदा के ही गर्भ से श्रीकृष्ण जन्म हुआ हे |) समस्त गोकुल के नर-नारी नाचते-गाते हुए आनन्द विभोर होकर कह रहे हें कि आज नन्दरानी के लाल हुआ ( नन्द के आनन्द भये, जे कन्हेया लाल की ) |

भादों के महीने में कृष्ण-पक्ष की नवमी तिथि पर समस्त नर-नारियों ने दूध, दही, मक्खन आदि को छिडकते हुए सारे गोकुल में कीचड़-ही-कीचड़ कर दी (दधी-कांदो) | झाँझ, मृदंग, उपंग, वीणा, मुरली, शंख, शहनाई आदि विविध प्रकार के बाजे बजने लगे | चोवा, चान्दन आदि सुगन्धित द्रव्यों को एक दुसरे पर छिडकते हुए नाच-नाचकर पुष्प-वर्षा करते हुए कन्हेया की जयकारें करने लगे |

शंकर जी भी अपनी निर्विकल्प समाधि भुलाते हुए अपने इष्टदेव, प्रेमावतार यशोदा के लाल कुँवरकन्हेया के दर्शन के लिय शिवलोक से भागे-भागे गोकुल चले आये | जिसने जो कुछ भी माँगा उस याचक को वही दिया गया | 'श्री कृपालु जी' कहते हें कि जिनको बड़ी-बड़ी चीजें मिलीं वह अपनी जानें, हम तो ब्रज की धुल ही पाकर कृतार्थ हो गये |

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