गुरु कृपा (अकारून करुणा) अब अगर कोई कहता हे की महापुरुष तो हमको मिला जरुर,बोला भी प्यार भी किया,चिपटाया भी सब कुछ मिला लिकिन हमारा तो कोई लाभ हुआ नहीं | तो तुम्हारा लाभ इसलिए नहीं हुआ की तुमने उस कृपा को रिअलाइज नहीं किया | उसका मूल्य नहीं समझा | किस...ी को एक करोड़ की अंगूठी मिल जाये,उसे साधारण समझकर एसे ही रख दिया उसने, अब उसको अगर उसने मान लिया होता एक करोड़ की तो तुरंत लौंकर में बंद कर देता | लिकिन उसको पता ही नहीं उसका मूल्य इसलिए कोई महत्व नहीं हे उसके लिए उस अंगूठी का, उसको फिलिंग ही नहीं होती अरे हमारे पास इतनी कीमती एसी अंगूठी हे| येसे ही महापुरुष के मिलने पर जब कोई उसका मूल्यांकन नहीं करेगा,फील नहीं करेगा,अन्दर से महसूस नहीं करेगा,इतनी बड़ी चीज मिली हे तो उसका महत्व भी नहीं समझेगा | मान लो कोई वक्ती प्राईमिनिस्टर से मिलने को व्याकुल हे बात करने को, उसको चिपटाने को और प्राईमिनिस्टर भेष बदल करके गंदे कपडे पहन करके दाढ़ी बाढ़ी लगा करके आ जाये उसके पास और उससे चिपटना चाहे | तो वह यही करेगा," एँ क्या बदतमीजी हे गंवार |" अब वह नहीं समझ रहा हे की प्राईमिनिस्टर हे | तो वह एसा अपमान कर रहा हे | थोड़ी देर मैं अपना सब स्वांग बांग हटा करके और दो चार पुलिस वालों को लेकर के और ज़रा ठाट बाट से खडा हो जाये और वो कहे यही प्राईमिनिस्टर हे | अछा ये प्राईमिनिस्टर हे | " इनको छुना हे,कैसे छुएं इनको |" अब व्याकुलता बढ़ गयी यानी जान लेने पर उस बस्तु मैं विसेस आसक्ति हो जाती हे और न जानने पर वह वस्तु हमें मिली रहे हम लाभ नहीं ले पाते | हमारे लाभ न लेने की जो गलती हे वह हमारी हे,यह मतलब नहीं हे की वह महापुरुष नहीं हे| महापुरुष मिला हे हमको और इतना प्यार दुलार दिया हे फिर भी हमारा कल्याण क्यूँ नहीं हो रहा हे ? गौरांग महाप्रभु के पास एक प्रकांड तार्किक गया और कहता हे महाराज ! मैंने आपका संग भी किया लिकिन आपकी बुराई भी बहुत की हे | मैं बहुत बड़ा तार्किक हूँ,मेरे दिमाग मैं हमेशा शंका घुशी रहती हे | इसलिए मैं आपके कभी शरणागत नहीं हुआ, होता हूँ कभी-कभी फिर शंका हो जाती हे,"नहीं ये महापुरुष नहीं हो सकते,ये महापुरुष होंगे जरुर, नहीं नहीं यह महापुरुष क्या हैं लिकिन कोई विसेस जरुर हे | महापुरुष तो नहीं कह सकते | हाँ लिकिन यह कह सकते हैं, हे कोई ख़ास हैं " | एसे ही बिचार बदला करते हैं तो महाप्रभु जी ने कहा की देखो एसा हे की शंका करने वाला जो होता हे उसका उद्धार तो बहुत देर मैं होता हे | आखिर महाराज जी कितने जन्म मैं होगा उद्धार | वहां एक पीपल का बड़ा पेड़ था,गौरांग महाप्रभु ने कहा "इस पेड़ मैं जितने पत्ते हैं उतने जन्म लगेन्गे तुम्हारे उद्धार मैं | वो बिभोर हो गया इस बात पर | उसने विस्वास कर लिया की गौरांग महाप्रभु महापुरुष हैं,इनका ये वाक्य गलत नहीं हो सकता जितनी इस पेड़ पर पत्ते हैं उतनी जन्म के बाद मेरा उद्धार होगा अबश्य | महाप्रभु जी ने इस आशय से नहीं कहा था उन्होंने एसे ही कह दिया था की भाई तुम तर्कशील हो तुम्हारे उद्धार मैं उतने जन्म लग जायेंगे जितने पेड़ पर पत्ते हैं | अब उसमें एक करोड़ पत्ते हों ,१० करोड़ पत्ते हों | महाप्रभु पत्ते नहीं गिन रहे थे,उन्होंने एसे ही कह दिया, लिकिन उसने विस्वास कर लिया की ये वाक्य महापुरुष का हे इसलिए होकर रहेगा | अगर महापुरुष कभी कह दे "तू मेरा हे",इतने का मुल्य अगर कोई जीव जान ले मान ले तो भगव्तप्राप्ति हो जाए | उसे फिर कुछ करना ही नहीं | लिकिन जब उसने इसका मुल्य नहीं सोचा | पति भी कहता हे की "तू मेरी हे",भाई भी कहता हे "तू मेरी हे",गुरुजी भी कह दिया की "तू मेरी हे",तो क्या ख़ास बात हो गयी,कोई ख़ास बात थोड़े ही हे| तुलसीदासजी अपनी विनय पत्रिका मैं कहते हैं की राम ! तू एक बार कह दे की "तू मेरा हे"बस मैं कुछ और चाहता ही नहीं हूँ,भगव्तप्राप्ति,दुख प्राप्ति,आनंद प्राप्ति,परमानंद प्राप्ति मैं कुछ माँन्गूगा नहीं| इसी आनंद मैं बिभोर रहूँगा सदा की तूने कह दिया की "तू मेरा हे"| तो उस तार्किक ने महाप्रभु की इस बात पर विस्वास कर लिया और विस्वास करते ही महाप्रभु जी का वाक्य बदल गया उन्होने कहा की तेरा उद्धार तो इसी जन्म मैं हो जाएगा| अब वह विस्वास किए जा रहा हे हर वाक्य पर की “अरे इसी जन्म मैं उद्धार हो जाएगा मेरा” अब वह कंट्रोल से बाहर हो गया| महाप्रभु जी ने,उसके भाव को नोट किया| महापुरुष और भगवान तो वर्तमान स्थिति देखते हैं की किस कक्षा मैं ये पहुँचा हे पिछला रेकॉर्ड नहीं देखते हैं किसी का,की पीछे तुमने क्या किया| वॉ वर्तमान देखते हैं| अब उसका और विस्वास बढ़ गया,उसकी और शरणागती बढ़ गयी | तो महाप्रभु ने कहा नहीं,नहीं,तुम्हारा उद्धार तो आज ही हो जाएगा| ”आज ही हो जाएगा उद्धार” इतना एटोमिक वाक्य सुन करके वह गिरने लगा | महाप्रभु जी ने कहा –“ अभी कर देते हैं,हो गया तुम्हारा उद्धार ,जाओ| ” अब वही गौरांग महाप्रभु हैं उसको हमेशा मिलते थे कोई नये गौरांग महाप्रभु नहीं आए| कोई नया वह तार्किक नहीं आया लिकिन वर्तमान काल मैं उसकी जो शरणागती की स्थिति बन गयी उसने जो मुल्य समझ लिया,जो विस्वास कर लिया बस उसका दाम मिल गया,अकारण कृपा हो गयी उस पर | उसने कुछ कमाल कर दिया क्या ? कुछ दे दिया क्या महाप्रभु जी को ?जीव क्या देगा ?अगर जीव कहता हे मैने शरीर दिया| कितनी गंदगी भरी हुई हे शेरर मैं,मन दिया, बुद्धि दिया,वह तो और गंदे हैं | तुम्हारे पास हे क्या देने को जिसको महापुरुष छू सकैं,देख सकैं,कोई काम की चीज़ हो तो बताओ| जितनी मात्रा मैं हम महापुरुष के महापुरुस्त्व को मानेंगे उतना लाभ होगा,लिकिन नहीं भी मानेंगे तो भी लाभ होगा| थोड़ा होगा,लिकिन होगा| उनके दर्शन से भी हमें लाभ मिलता हे | श्रीकृष्ण के सामने जब नारद जी द्वारिका मैं पहुँचे तो नारद जी को श्रीकृष्ण ने सिंहासन पर बैठाया और नीचे बैठ गये और उन्होने कहा-आपके दर्शन से हमारे सब पाप नष्ट हो गये| आप कहेंगे भगवान का कौन सा पाप हे| भगवान जीवों की और से बोल रहे हैं एसा समझलो | महापुरुष के दर्शन से पाप नष्ट हो जाते हैं | महापुरुष का दर्शन हमको जो मिला वो किसी साधन से नहीं मिल सकता था,यह तो बहुत बड़ी बात हे,करुणावरुणाल श्री कृष्ण की असीम अनुकंपा के परिणाम स्वरूप प्रबृति कम हो जाती हे अतः हमारा वर्तमान भबिस्य सब मंगलमय होगा यदि हम उसका सही सही महत्व समझें | उसकी कृपा को रियलाइज़ करें| महापुरुष कोई भी व्यवहार करता हे जिब के साथ देखना,सुनना,सूंघना स्पर्श करना कोई भी विसय हमें महापुरुष का मिला ये उसकी बहुत बड़ी कृपा हे| इससे बहुत बड़ी कृपा हे की जिस बेद को जिस शास्त्र को,पुराण को जिस शीधांत को हम अरबौं बर्स पढ़कर भी नहीं समझ पाते,निर्णय नहीं ले पाते सिवाय कन्फ्यूज़न के,ये भी लिखा हे,ये भी लिखा हे,ये भी लिखा हे,क्या सही हे ? शंकराचार्य यह कहते हैं ,रामानुचार्य यह कहते हैं,निम्बाकाचार्य ये कहट हैं| ये जो हमारी उलझन अनंत जन्मो से बनी हुई हे| उसे महापुरुष ने सुलझा दिया समझाकर की ये एसी बात हे तुम्हे ये करना हे यह निर्णय लेना हे | ये अरबों बर्स मैं भी हम नहीं कर पाए,अरे अनंत जन्मो मैं भी नहीं कर पाए ये प्रमाण हे| उसने हमको तत्वज्ञान करवा दिया ये उसकी और भी बड़ी कृपा हे,हमारा परिश्रम बच गया| वरना हम पुस्तक पढ़ा करते,खोपड़ा भंजन किया करते शंका किया करते,अपराध किया करते प्रॅक्टिकल मैं हम चलते ही नहीं | माइक बुद्धि से क्या समझते ? हमारे ग्रंथों मैं बहुत विरोधाभास हे | अगर ग्रंथों को पढ़कर भगवान को समझने का प्रयास करेंगे तो और अधिक उलझ जाएँगे- “श्रुति पुराण कहेऊ उपाई,छूटे न अधिक अधिक अरूणाई |“ बिना तत्वज्ञान के हम साधना भी क्या करते,भगव्तप्राप्ति का तो प्रश्न ही नहीं हे| तर्क,कुतर्क संशय ही करते रहते,इसी मैं पूरा जीवन बीत जाता,मानव देह वर्थ हो जाता | साधना करते भी तो अपने अल्पज्ञान या ग़लत ज्ञान के अनुशार ही करते जिससे कोई लाभ न होता| इतना जप कर लो,इतना पाठ कर लो ,इतनी पूजा कर लो, तीर्थ मैं घूम आओ,इतना ये कर लो,इतना ये कर लो बस यही सब बहिरंग क्रियायें करते | तो तत्वज्ञान कराना यहा बहुत बड़ी गुरु कृपा हे| अनंत जन्मो तक माथा पच्ची करने के पशचात भी जो ज्ञान हमें ना मिलता वो हमारे गुरु ने इतने सरल और सहज रूप मैं हमें प्रदान कर दिया,अब इसके बाद हमारी ड्यूटी हे की उस तत्वज्ञान को बार बार चिंतन द्वारा पक्का करके उसके अनुसार प्रॅक्टिकल करें | अब हमने यहाँ लापरवाही की,एक ने कुछ परवाह की,एक ने और परवाह की,एक ने पूर्ण परवाह की,पूर्ण शरणागत हो गया,अब महापुरष ने तो अकारण कृपा सबके उपर की,सबको समझाया| लेकिन उसमें एक घोर संसारी ही रहा,एक थोड़ा बहुत आगे बढ़ा,एक कुछ ज़्यादा आगे बढ़ा एक सब कुछ त्याग करके २४ घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति पर | जो २४ घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति हेतु क्या उसके उपर विशस कृपा हुई,यह सोचना मूर्खता हे | कृपा तो सब पर बराबर हुई लेकिन तपे लोहे पर पानी पड़ा छ्न्न,जल गया और कमल के पत्ते पर पड़ा तो मोती की तरह चमकने लगा और वही अगर वही पानी अगर सीप मैं पड़ा स्वाती का तो मोती बन गया| पानी तो सब पर बराबर पड़ रहा हे लेकिन जैसा पात्र हे,जैसा मूल्य समझा जितना विश्यास किया जितना बैराग्य हे जिसको उसका बर्तन उतना बना,उसके हिसाब से उसने लाभ उठाया| तो महापुरूष की यह दूसरी बड़ी कृपा तत्वज्ञान करा देना |
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