Monday, October 17, 2011

मानवदेह देव दुर्लभ है। अत: अमूल्य है। इसी देह में साधना हो सकती है। अत: उधार नहीं करना है। तत्काल साधना में जुट जाना है। निराशा को पास नहीं फटकने देना है। मन को सद्गुरु एवं शास्त्रों के आदेशानुसार ही चलाना है। अभ्यास एवं वैराग्य ही एकमात्र उपाय है। सदा यही विश्वास बढ़ाना है कि वे अवश्य मिलेंगे। उनकी सेवा अवश्य मिलेंगी।
-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।


सब साधन जनु देह सम, रूपध्यान जनु प्राण।
खात गीध अरु स्वान जनु ,कामादिक शव मान।।

श्री कृष्ण प्राप्ति की समस्त साधनाएँ (यम,नियम,कर्म,योग,ज्ञान,व्रतादि) प्राणहीन शव के समान हैं। यदि रूपध्यान रहित हैं। वेद से लेकर रामायण तक सभी ग्रंथ एक स्वर से कहते हैं कि भगवान का ध्यान करना चाहिए।

------(भक्ति-शतक), जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।






मन की निर्मलता की कसौटी है- भगवत विषय में मन का लगाव। यह कसौटी क्ष्रेष्ठ है। ईश्वरीय तत्त्व को पाने के लिये हमारे मन में कितनी छटपटाहट है।यही मन की निर्मलता की सबसे बड़ी कसौटी है।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

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