Monday, October 17, 2011



सुनो मन ! यह वेदन को सार |
कहत ‘ रसो वै स: ’ यह वेदन, या पर करिय विचार |
रसिक शिरोमणि ब्रह्म श्याम बिनु, रस न पाउ संसार |
‘उपासते पुरुषं’ येहि श्रुति को, इहै अर्थ उर धार |
सकल कामनाहीन दीन बनि, भजिये नंदकुमार |
...
तब ‘कृपालु’ तुम पाव प्रेम रस, बस गोलोक मझार ||

भावार्थ- अरे मन ! सब वेदों का यही निष्कर्ष है | वेद में जो ‘रसो वै स:’ कहा गया है, इस पर गम्भीर विचार कर | इसका भाव यही है कि रसिक शिरोमणि ब्रह्म श्यामसुन्दर के बिना संसार में कहीं भी वास्तविक सुख नहीं है | ‘ उपासते पुरुषम् ’ इस श्रुति का भी यही अर्थ है कि समस्त कामनाओं से रहित होकर नंद कुमार का भजन करो | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि तभी उनकी कृपा से तू प्रेम रस पा सकेगा एवं पश्चात् सदा के लिये गोलोक में निवास करेगा |

(प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त-माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.

No comments:

Post a Comment