Saturday, October 15, 2011



सुनो सब जीव हमारी बात |
‘यमेवैष वृणुते’ मम वाणी, विश्व विदित विख्यात |
याको अर्थ शरण ह्वै जोइ भज, सोइ मोहिं पाइ सकात |
‘गुह्याद् गुह्यतमं’ गीता में, कह्यो गुप्त मत तात |
ताको अर्थ इहै मन बुधि दै, भजहु मोहिं दिन रात |
... करहु ‘कृपालु’ भजन तुम निशिदिन, देहु तर्क धरि पात ||

भावार्थ- भगवान् जीवों से कहते हैं कि जीवात्माओं ! तुम लोग हमारी बात सुनो ! ‘यमेवैष वृणुते’ यह मेरी वेद वाणी विश्वविदित है, जिसका वास्तविक अर्थ यह है कि जो जीव मेरी शरण होकर मेरी भक्ति करता है, वही मुझे प्राप्त कर सकता है | और मैंने गीता में जो अत्यन्त गुप्त मत अर्जुन को बताया है, उसका भी भाव यही है कि जो मन बुद्धि का समर्पण करके मेरी भक्ति करता है, मैं उसी पर कृपा करता हूँ | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अब तुम निरन्तर भजन करो, तर्क कुतर्क समाप्त कर दो |

(प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त-माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.

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