Tuesday, October 11, 2011

साधक का प्रश्न: 'महाराजजी' आप कहते है कि, मानव शरीर के पश्चात मानवेतर योनियों में जन्म लेना पड़ता है। क्या कोई ऐसी स्थिति है जब किसी के बारे में यह कहा जा सके कि इस जन्म में उसे मानव देह मिलेगी?

श्री महाराजजी: जिस व्यक्ति का चिंतन आधे से अधिक समय में भगवदीय हो जायेगा। उसके बारे में यह निश्चित है कि अगला जन्म उसको 'मनुष्य' का ही मिलेगा।




एक अन्य साधक का प्रश्न: हम आश्रम के लिए दान द्वारा धनार्जन कि सेवा करते हैं। उसी से संबंधित विचार आते रहते हैं। भगवान का रूपध्यान नहीं होता, हमारी क्या गति होगी?

श्री महाराजजी: वह चिंतन भी, उसी लक्ष्य से संबंधित होने के कारण,साधना ही है। सेवा ही साधना है, और सेवा ही सिद्धि। सेवा के द्वारा अंत:करण की शुद्धि होती है। अत: साधना है। अंत:करण की शुद्धि के बाद भगवदप्राप्ति पर गोलोक में जो सेवा प्राप्त होती है, वही सिद्धि है।

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