Monday, October 3, 2011

हे! कृपामयी राधे, मेरे ऊपर भी तो कृपा करो, मुझ पर कृपा करने से तुम्हारे कृपा के भंडार मे कोई कमी नहीं आएगी अपितु तुम्हारे यश का ही विस्तार होगा
हे! राधे, तुम्हारा तन, मन, प्राण सब कृपा द्वारा ही निर्मित है। तुम तो कृपा का ही एक दूसरा स्वरूप हो। राधे ! कृपा करने के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य तुम नहीं कर सकती कृपा किए बिना तुमसे रहा भी नहीं जाता, जिस प्रकार संसार मे मछ्ली जल से ही जीवित रहती है उसी प्रकार कृपा ही तुम्हारा जीवन है अर्थात तुमने जीवन धारण ही कृपा करने के लिए किया है संसार मे सुर, नर, मुनि भी कृपा करते देखे जाते हैं परंतु वे बिना कारण के कृपा नहीं कर सकते।

- जगद्गुरू श्री कृपालुजी महाराज.





मेरो प्रियतम कुंज बिहारी.....................

मेरो साँचो सजन मेरो नंदनंदन, वे मेरे सजन मैं उनकी दुल्हन।
मेरो प्रियतम सत चित आनंदघन,बिनु नंदनंदन नहिं कल पल छन।
मेरो रोम रोम चह पिय परसन,करु ऐसों यतन होवे मधुर मिलन।
चह मधुर मिलन,मन नन्द सुवन,तु 'कृपालु' को सजन अपनाओ दुल्हन।।
-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.

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