Wednesday, October 5, 2011



मातु सुनु खरी खरी अब बात |
तुम्हरोइ लाल अनोखो जायो, तुमहिं अनोखी मात |
तुमहिं रहहु नँदगाँव आपने, हम सब है, अब जात |
गोरस मिस गो-रस मोहिं माँगत, कहि प्यारी मुसकात |
लोक-वेद-मर्याद मिटावत, सब सों जोरत नात |
...
सो ‘कृपालु’ ब्रजवास करे जो, धर्म देइ धरि पात ||

भावार्थ- एक सखी श्यामसुन्दर का उलाहना देते हुए मैया से कहती है कि आज मैं खरी-खरी सुनाने आयी हूँ | क्या मैया ! तेरा ही अनोखा लाला है और क्या तू ही अनोखी मैया है ? हम लोगों के भी तो लाला हैं और हम लोग भी तो मैया हैं | अब इस नंदग्राम में तुम ही रहो | हम सब लोग अब जा रहे हैं | यह तुम्हारा लाड़ला गोरस के माँगने के बहाने हम लोगों से तन मन माँगता है एवं ‘प्यारी’ कह कर मुस्कुराता है | लोक-वेद की सनातन मर्यादा को नष्ट करते हुए पर स्त्रियों से प्रेम प्रकट करता है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अरी सखी ! तू नहीं जानती ब्रजवास वही करता है जो धर्म-कर्म को ताक पर रख दे |

(प्रेम रस मदिरा श्री कृष्ण-बाल लीला- माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.

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