Friday, October 7, 2011

"ठाकुर युगल किशोर हमारों, चाकर हम पिय प्यारी के।
गुरु सेवा ही धर्म हमारों, दास न हम श्रुतिचारी के"।।

संयोग और वियोग में 'वियोग' बड़ा है। संयोग में प्रियतम एक ही स्थान पर दिखाई देता है, लैकिन वियोग में त्रिभुवन में दिखाई देता है।
------श्री महाराजजी.



गुरुवर से मिलने का 'वृन्दावन' इक बहाना है, गुरुवर की शरण बिना ,फीका सारा जमाना है।
वृन्दावन की गलियों में, वृन्दावन के धामों में,"श्यामा-श्याम धाम" ही मेरा अपना ठिकाना है।
तुमने कहा 'खोटा' खरों में ही चल पायेगा, खरे-खरे छांट लिये, खोटे को भी चलना है।
सुबह का भूला हूँ, शाम घर पहुँचा हूँ, जिंदगी 'अमावस' है, इसे 'पूनम' बनाना है।
कितने प्यारे-प्यारे हो, आँखों के तारे हो, गुरुवर जैसा कोई नहीं, देखा सारा जमाना है।
जहाँ-जहाँ जाते हो, 'रस' बरसाते हो, 'गोविंद' बने 'गुरुवर', 'प्रेमरस' का ख़जाना है।
पतित ने दी अरजी, आगे अब तुम्हारी मरजी, तुम हो 'पतितपावन' अपना रिश्ता पुराना है।



बिना महापुरुष की शरणागति के और बिना महापुरुष की कृपा के भगवतप्राप्ति असंभव है।


साधक के जीवन में मुख्य चीज एट्मस्फीयर( वातावरण) है। साधक कुछ प्रयत्न करता है, आगे बढ़ता है,फिर प्रयत्न में ढिलाई कर देता है। इससे व्यवधान आ जाता है,जिससे साधक आगे नहीं बढ़ पाता है। जिंदा तो वह रहता है पर आगे बढ्ने की शक्ति उपार्जित नहीं कर पाता। जैसे बीज़ पर पानी डाला और बंद कर दिया। जब सूखने लगा तो थोड़ा पानी फिर डाल दिया। इससे वह सूखा तो नहीं परंतु बढ़ा भी नहीं। अत: निरंतर और अटूट प्रयत्न की आवश्यकता है। उसी की महत्व है।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।



वेदव्यास कहते है कि जितनी आराधनाएँ हैं, उपासनाएँ हैं- तामसी, उससे ऊंची राजसी, उससे ऊंची सात्विकी देवताओं की भक्ति, उससे ऊंची ब्रह्म की भक्ति, उससे ऊंची परमात्मा की भक्ति ,परमात्मा की भक्ति से ऊंची भगवान की और उनके अवतारों की भक्ति, और सबसे ऊंची भक्ति श्री राधाकृष्ण की, लेकिन श्री राधाकृष्ण की भक्ति से भी ऊंची है-उनके भक्तों की भक्ति।
भगवान के भक्तों की भक्ति से भगवान जितनी शीघ्रता से संतुष्ट होते हैं,अपनी भक्ति से नहीं।









मालिक तेरी रजा रहे, और तू ही तू रहे।
बाकी न 'मैं' रहूँ न मेरी 'आरजू' रहे।।


No comments:

Post a Comment