Sunday, October 2, 2011

यह समझे रहना है की हमारे प्रेमास्पद श्री कृष्ण सर्वत्र है एवं सर्वदा है .विश्व में एक परमाणु भी ऐसा नहीं है, जहाँ उसका निवास न हो. जैसे तिल में तेल व्याप्त होता है ऐसे ही भगवान भी सर्वव्यापक है. उनको कोई भी स्थान या काल अपवित्र नहीं कर सकता.वरन वे ही अपवित्र को पवित्र कर देते है .


भजु मन जीवन धन नन्दनन्दन.
बीतयो जाय जीवन बिनु प्रेम धन.
जीवन धन बिनु नही चह जीवन.
भजु मन क्षण क्षण जीवन धन. 


मेरे महाराजजी प्यारे,मेरे गिरिधर प्यारे.
जोई महाराजजी प्यारे , सोई गिरिधर प्यारे.
भज महाराजजी प्यारे,भज गिरिधर प्यारे.
जहँ महाराजजी प्यारे,तहँ गिरिधर प्यारे.






भगवान योगमाया के पर्दे में रहते हैं और जीव माया के पर्दे में, अत: भगवान के साकार रूप में सामने खड़े होने पर भी हम उन्हें अपनी भावना के अनुसार ही देख पाते हैं।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.



 

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