Saturday, February 23, 2013

कमर कस कर जिद कर लो कि मुझे अपने प्राणवल्लभ श्रीकृष्ण से मिलना ही है। इसी जन्म में ही, नहीं-नहीं इसी वर्ष, नहीं-नहीं आज ही मिलना है। यह व्याकुलता बढ़ाना ही वास्तविक साधना है। इस प्रकार यह व्याकुलता इतनी बढ़ जाय कि अपने प्रियतम से मिले बिना एक क्षण भी युग के सामान बीतने लगे, बस यही साधना की चरम सीमा है। इसी सीमा पर भगवत्कृपा, गुरु कृपा द्वारा दिव्य प्रेम मिलेगा।
--- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज.
कमर कस कर जिद कर लो कि मुझे अपने प्राणवल्लभ श्रीकृष्ण से मिलना ही है। इसी जन्म में ही, नहीं-नहीं इसी वर्ष, नहीं-नहीं आज ही मिलना है। यह व्याकुलता बढ़ाना ही वास्तविक साधना है। इस प्रकार यह व्याकुलता इतनी बढ़ जाय कि अपने प्रियतम से मिले बिना एक क्षण भी युग के सामान बीतने लगे, बस यही साधना की चरम सीमा है। इसी सीमा पर भगवत्कृपा, गुरु कृपा द्वारा दिव्य प्रेम मिलेगा।
 --- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज.


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