Wednesday, February 13, 2013

मन हरि में तन जगत में, कर्मयोग येहि जान।
तन हरि में मन जगत में, यह महान अज्ञान।।

जिसका मन सदा श्यामसुंदर में ही अनुरक्त रहे,और शरीर से संसार का कार्य करे, वह कर्मयोग है। किन्तु जिसका मन संसार में अनुरक्त रहे ,एवं शरीर से भगवद्भक्ति करे ,वह पराकाष्ठा का मूर्ख है।
-------भक्ति शतक.
-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के श्रीमुख से.........
मन हरि में तन जगत में, कर्मयोग येहि जान।
 तन हरि में मन जगत में, यह महान अज्ञान।।

 जिसका मन सदा श्यामसुंदर में ही अनुरक्त रहे,और शरीर से संसार का कार्य करे, वह कर्मयोग है। किन्तु जिसका मन संसार में अनुरक्त रहे ,एवं शरीर से भगवद्भक्ति करे ,वह पराकाष्ठा का मूर्ख है।
-------भक्ति शतक.
-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के श्रीमुख से.........

 
 

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