Saturday, February 9, 2013

हमारी श्यामा, रसिकन - मुकुट - मनी |
इन्द्राणी, रुद्राणी, वाणी, जेतिक मणिरमनी |
रूपध्यान साधे आराधे, राधे गजगमनी |
ब्रज महँ अस ब्रजरस बरसावति, लजत विकुंठ धनी |
भृकुटि - विलास लखत कमलापति, किमि कमला कमनी |
...
सोइ ‘कृपालु’ वनचरिन बनायो, प्रानसखी अपनी ||

भावार्थ - हमारी किशोरी जी समस्त रसिकों के शिरोमणि की भी शिरोमणि हैं | इन्द्राणी, पार्वती, सरस्वती इत्यादि जितनी भी श्री – शिरोमणि - रत्न हैं, वे सब रूपध्यान करते हुए हमारी किशोरी जी की निरन्तर उपासना करती हैं | हमारी किशोरी जी ब्रज में ब्रजांगनाओं के साथ ऐसा दिव्यरस बरसाती हैं कि उसे देखकर बैकुण्ठ के स्वामी महाविष्णु भी लज्जित हो जाते हैं | महालक्ष्मी की तो गणना ही क्या है, महालक्ष्मी के स्वामी महाविष्णु भी भयभीत होकर किशोरी जी के भृकुटि - विलास को देखते रहते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं वही किशोरी जी अकारण - करुण स्वभाव के कारण अशिक्षित वनचारियों को अपनी प्राणसखी बनाकर नित्य - रास में नित्य स्थान देती हैं |

( प्रेम रस मदिरा श्रीराधा – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
हमारी श्यामा, रसिकन - मुकुट - मनी |
इन्द्राणी, रुद्राणी, वाणी, जेतिक मणिरमनी | 
रूपध्यान साधे आराधे, राधे गजगमनी |
ब्रज महँ अस ब्रजरस बरसावति, लजत विकुंठ धनी |
भृकुटि - विलास लखत कमलापति, किमि कमला कमनी |
सोइ ‘कृपालु’ वनचरिन बनायो, प्रानसखी अपनी ||


भावार्थ  -  हमारी किशोरी जी समस्त रसिकों के शिरोमणि की भी शिरोमणि हैं | इन्द्राणी, पार्वती, सरस्वती इत्यादि जितनी भी श्री – शिरोमणि - रत्न हैं, वे सब रूपध्यान करते हुए हमारी किशोरी जी की निरन्तर उपासना करती हैं | हमारी किशोरी जी ब्रज में ब्रजांगनाओं के साथ ऐसा दिव्यरस बरसाती हैं कि उसे देखकर बैकुण्ठ के स्वामी महाविष्णु भी लज्जित हो जाते हैं | महालक्ष्मी की तो गणना ही क्या है, महालक्ष्मी के स्वामी महाविष्णु भी भयभीत होकर किशोरी जी के भृकुटि - विलास को देखते रहते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं वही किशोरी जी अकारण -   करुण स्वभाव के कारण अशिक्षित वनचारियों को अपनी प्राणसखी बनाकर नित्य - रास में नित्य स्थान देती हैं |


( प्रेम रस मदिरा   श्रीराधा – माधुरी )
  जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

 

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