Monday, February 11, 2013

किशोरी तोरे, चरनन की बलि जाऊँ |
जिन युग – चरण अरुणिमा – उपमा, पचिहारी नहिं पाऊँ |
जपा गुलाल प्रवाल आदि की, उपमा देत लजाऊँ |
मृदुता में गुलाब नवनी की, समता लखि न सकाऊँ |
जिन चरनन को चापत हरि नित, का महिमा मैं गाउँ |
यह ‘कृपालु’ की चाह रैन दिन, चरनन ध्यान लगाऊँ ||

भावार्थ - हे किशोरी जी ! मैं तुम्हारे चरणों की बलैया लेता हूँ | इन चरणकमलों की लालिमा की उपमा ढूँढकर थक गया, कहीं नहीं पाता | इन्द्र वधूटी ( एक लाल रंग का बरसाती कीड़ा ), गुलाल एवं आम के नये पते आदि की उपमा देने में लज्जा लगती है | कोमलता में गुलाब एवं मक्खन भी फीके लगते हैं | जिन चरणों को निरंतर ही श्रीकृष्ण दबाया करते हैं, उन चरणों की महिमा मैं क्या कहूँ ? ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि मेरी यही अभिलाषा है कि मैं दिन – रात इन्हीं चरणों का ध्यान किया करूँ |


( प्रेम रस मदिरा श्रीराधा – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
किशोरी तोरे, चरनन की बलि जाऊँ |
जिन युग – चरण अरुणिमा – उपमा, पचिहारी नहिं पाऊँ |
जपा गुलाल प्रवाल आदि की, उपमा देत लजाऊँ |
मृदुता में गुलाब नवनी की, समता लखि न सकाऊँ |
जिन चरनन को चापत हरि नित, का महिमा मैं गाउँ |
यह ‘कृपालु’ की चाह रैन दिन, चरनन ध्यान लगाऊँ ||


भावार्थ  -  हे किशोरी जी ! मैं तुम्हारे चरणों की बलैया लेता हूँ | इन चरणकमलों की लालिमा की उपमा ढूँढकर थक गया, कहीं नहीं पाता | इन्द्र वधूटी ( एक लाल रंग का बरसाती कीड़ा ), गुलाल एवं आम के नये पते आदि की उपमा देने में लज्जा लगती है | कोमलता में गुलाब एवं मक्खन भी फीके लगते हैं | जिन चरणों को निरंतर ही श्रीकृष्ण दबाया करते हैं, उन चरणों की महिमा मैं क्या कहूँ ? ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि मेरी यही अभिलाषा है कि मैं दिन – रात इन्हीं चरणों का ध्यान किया करूँ |

 
( प्रेम रस मदिरा   श्रीराधा   –  माधुरी )
   जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

 

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