Tuesday, February 12, 2013

 
जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाप्रभु की कुछ विशेषताएँ........

1- ये पहले जगद्गुरु हैं जिनका कोई गुरु नहीं है और वे स्वयं जगद्गुरुतम हैं ।

2 - ये पहले जगद्गुरु हैं जिन्होंने एक भी शिष्य नहीं बनाया किन्तु इनके लाखों अनुयायी हैं ।
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3 - ये पहले जगद्गुरु हैं जिनके जीवन काल में ही जगद्गुरुतम उपाधि की पचासवीं वर्षगाँठ मनाई गई हो ।

4 - ये पहले जगद्गुरु हैं जिन्होंने ज्ञान एवं भक्ति दोनों में सर्वोच्चता प्राप्त की व् दोनों का मुक्तहस्त से दान कर रहे हैं ।

5- ये पहले जगद्गुरु हैं जो विदेशों में भी स्वयं प्रचारार्थ गये ।

6- ये पहले जगद्गुरु हैं जिन्होंने पूरे विश्व में श्री राधाकृष्ण की माधुर्य भक्ति का धुआंधार प्रचार किया एवं सुमधुर श्री राधे नाम को विश्वव्यापी बना दिया ।

7- सभी महान सन्तों ने मन से ईश्वर भक्ति की बात बतायी है , जिसे , ध्यान , सुमिरन , स्मरण या मेडीटेशन आदि नामों से बताया गया है ।श्री कृपालु जी ने प्रथम बार एस ध्यान को ' रूपध्यान ' नाम देकर स्पष्ट किया कि ध्यान की सार्थकता तभी है जब हम भगवान् के किसी मनोवांछित रूप का चयन करके उस रूप पर ही मन को टिकाये रहें। मन को भगवान् के किसी एक रूप पर केन्द्रित करने का नाम ही ध्यान या मन से भक्ति करना है , क्योंकि भगवान् के ही एक रूप पर मन को न टिकने से , मन यत्रतत्र संसार में ही भागता रहेगा। भगवान् को तो देखा नहीं तो फिर उनके रूप का ध्यान कैसे किया जाय , उसका क्या विज्ञान है , उसका अभ्यास कैसे करना है , आदि बातों को - भक्तिरसामृत सिन्धु , नारद भक्ति सूत्र , ब्रह्मसूत्र आदि के द्वारा प्रमाणित करते हुए श्री कृपालु जी महाराज ने प्रथम बार अपने ग्रन्थ ' प्रेम रस सिद्धान्त ' में बड़े स्पष्ट रूप से समझाया है।

8- ये पहले जगद्गुरु हैं जो ९० वर्ष की आयु में भी समस्त उपनिषदों , भागवत आदि पुराणों , ब्रह्मसूत्र , गीता आदि से प्रमाणों के नम्बर इतनी तेज गति से बोलते हैं कि श्रोताओं को स्वीकार करना पड़ता है कि ये श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ वास्तविक महापुरुष हैं ।
 

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