Wednesday, September 11, 2013

कमर कस कर जिद कर लो कि मुझे अपने प्राणवल्लभ श्रीकृष्ण से मिलना ही है ! इसी जन्म में ही , नहीं - नहीं इसी वर्ष , नहीं - नहीं आज ही मिलना है ! यह व्याकुलता बढ़ाना ही वास्तविक साधना है ! इस प्रकार यह व्याकुलता इतनी बढ़ जाय कि अपने प्रियतम के बिना एक क्षण भी युग के सामान बीतने लगे , बस यही साधना की चरम सीमा है ! इसी सीमा पर भगवत्कृपा , गुरु कृपा द्वारा दिव्य प्रेम मिलेगा !

..............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु .

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