Friday, September 6, 2013

मानवदेह देव दुर्लभ है। अत: अमूल्य है। इसी देह में साधना हो सकती है। अत: उधार नहीं करना है। तत्काल साधना में जुट जाना है। निराशा को पास नहीं फटकने देना है। मन को सद्गुरु एवं शास्त्रों के आदेशानुसार ही चलाना है। अभ्यास एवं वैराग्य ही एकमात्र उपाय है। सदा यही विश्वास बढ़ाना है कि वे अवश्य मिलेंगे। उनकी सेवा अवश्य मिलेंगी।
........जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.

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